रुद्रप्रयाग / पिथौरागढ़ / केदार घाटी:
उत्तराखंड में भारी बारिश और भयानक बाढ़ से मची तबाही, मौत और भोजन की कमी की डरावनी दास्तान गुरुवार को सामने आई। राज्य में विभिन्न जगहों पर करीब 70,000 लोग अभी भी फंसे पड़े हैं।
पिछले सप्ताह के अंत में हुई भयंकर वर्षा और अचानक आई बाढ़ से मची तबाही का असर साफ दिखने लगा है। अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि केदारनाथ की तीर्थयात्रा बहाल होने में तीन वर्ष या इससे ज्यादा समय लग सकते हैं।
केदारनाथ-बद्रीनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीडी सिंह ने बताया, "हम जो देख रहे हैं वह अत्यंत हृदय विदारक और अविश्वसनीय है। अगले तीन वर्ष तक हम चारधाम यात्रा के बहाल होने की उम्मीद नहीं करते।"
करीब 1000 वर्ष पूर्व आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित केदारनाथ तीर्थस्थल के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि विनाशकारी बाढ़ में तीर्थस्थल तो बच गया है, लेकिन इसके चारों तरफ सब कुछ तहस-नहस हो गया है।
अधिकारी ने कहा, "इसे चमत्कार कहा जाएगा कि नंदी की प्रतिमा और मंदिर में स्थित अन्य प्रतिमाएं जस की तस हैं। जिस समय आपदा आई उस समय मंदिर में शरण लेने वाले तीर्थयात्री भी सुरक्षित बच गए।" "लेकिन मंदिर के चारों तरफ हुआ विध्वंस डरावना है।" उन्होंने आगे कहा कि बाढ़ और बादल फटने से मरने वालों की संख्या आधिकारिक रूप से घोषित 150 से ज्यादा हो सकती है।
मंदिर से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित राम बाड़ा कथित रूप से तबाह हो चुका है। जिस समय बादल फटा उस समय राम बाड़ा में 5000 लोग मौजूद थे।
सेना, अर्द्धसैनिक और असैनिक अधिकारी राज्य में व्यापक राहत अभियान में जुटे हुए हैं, लेकिन एक अधिकारी ने कहा कि वायु मार्ग से राहत के काम में मौसम साथ नहीं दे रहा।
फंसे हुए अधिकांश लोगों को हरिद्वार के समीप ऋषिकेश लाया गया है। ऋषिकेश को जोशीमठ और उत्तरकाशी से जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग अब खुल चुका है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने बाढ़ आपदा को 'हिमालयी सुनामी' करार दिया है और कहा है कि वे मौत और तबाही के रूप को देख कर स्तब्ध हैं। उन्होंने कहा कि कई किलोमीटर सड़क बह चुकी है। कई पुल, घर, पानी की लाइन, नहरें, चेक डैम, बिजली की लाइन, बिजली घर और अन्य सरकारी व निजी संपत्ति गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं।
केदारनाथ के रास्ते में फंसे हुए तीर्थयात्रियों को निकालने के लिए 20 से ज्यादा हेलीकाप्टर लगाए गए हैं।
अधिकारियों ने कहा कि जहां खाली कराने का काम तेजी से चल रहा है, वहीं राज्य में विभिन्न जगहों पर अभी भी 70,000 से ज्यादा लोग फंसे हुए हैं।
सेना के एक अधिकारी ने कहा कि हम जहां तक संभव है बेहतर प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कुछ सीमाएं हैं।
बादल फटने और भयंकर वर्षा के कारण उत्पन्न आपदा के चार दिनों बाद भी विभिन्न स्थानों पर फंसे लोग भोजन पानी के लिए तरस रहे हैं।
लौट कर आए कई लोगों ने बताया कि फंसे हुए लोगों के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है और आपूर्ति नहीं होने से आलू चिप्स और मिनरल वाटर के दाम आसमान छू रहे हैं।
एक निजी हेलीकॉप्टर द्वारा बचाए गए उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला निवासी तीर्थयात्री ने बताया, "पेयजल, दवाएं और खाने की भयंकर कमी है। जैसी स्थिति है उसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।"
पांच लोगों के परिवार के साथ वापस लौटे तीर्थयात्री ने कहा कि देहरादून पहुंचने के लिए उन्हें 11 लाख रुपये देने पड़े। उन्होंने शिकायत की, "बिना कोई दया दिखाते हुए लोग दूसरों को लूट रहे हैं।" उन्होंने कहा कि हेलीकाप्टर से गिराए गए खाने के पैकेट नदियों में बह गए।
अधिकारियों ने कहा कि गुरुवार को हेलीकॉप्टरों से 20,000 खाने के पैकेट गिराए गए। गुप्तकाशी और घनसाली के बीच फंसी करीब 500 कारों को भी बाहर निकाला गया।
कुछ अधिकारियों ने इस बात की आशंका जाहिर की कि संभवत: हजारों लोग नदी की तेज धारा की चपेट में आकर बह गए या ध्वस्त भवनों के मलबे के नीचे दब गए।
पिछले सप्ताह के अंत में हुई भयंकर वर्षा और अचानक आई बाढ़ से मची तबाही का असर साफ दिखने लगा है। अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि केदारनाथ की तीर्थयात्रा बहाल होने में तीन वर्ष या इससे ज्यादा समय लग सकते हैं।
केदारनाथ-बद्रीनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीडी सिंह ने बताया, "हम जो देख रहे हैं वह अत्यंत हृदय विदारक और अविश्वसनीय है। अगले तीन वर्ष तक हम चारधाम यात्रा के बहाल होने की उम्मीद नहीं करते।"
करीब 1000 वर्ष पूर्व आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित केदारनाथ तीर्थस्थल के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि विनाशकारी बाढ़ में तीर्थस्थल तो बच गया है, लेकिन इसके चारों तरफ सब कुछ तहस-नहस हो गया है।
अधिकारी ने कहा, "इसे चमत्कार कहा जाएगा कि नंदी की प्रतिमा और मंदिर में स्थित अन्य प्रतिमाएं जस की तस हैं। जिस समय आपदा आई उस समय मंदिर में शरण लेने वाले तीर्थयात्री भी सुरक्षित बच गए।" "लेकिन मंदिर के चारों तरफ हुआ विध्वंस डरावना है।" उन्होंने आगे कहा कि बाढ़ और बादल फटने से मरने वालों की संख्या आधिकारिक रूप से घोषित 150 से ज्यादा हो सकती है।
मंदिर से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित राम बाड़ा कथित रूप से तबाह हो चुका है। जिस समय बादल फटा उस समय राम बाड़ा में 5000 लोग मौजूद थे।
सेना, अर्द्धसैनिक और असैनिक अधिकारी राज्य में व्यापक राहत अभियान में जुटे हुए हैं, लेकिन एक अधिकारी ने कहा कि वायु मार्ग से राहत के काम में मौसम साथ नहीं दे रहा।
फंसे हुए अधिकांश लोगों को हरिद्वार के समीप ऋषिकेश लाया गया है। ऋषिकेश को जोशीमठ और उत्तरकाशी से जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग अब खुल चुका है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने बाढ़ आपदा को 'हिमालयी सुनामी' करार दिया है और कहा है कि वे मौत और तबाही के रूप को देख कर स्तब्ध हैं। उन्होंने कहा कि कई किलोमीटर सड़क बह चुकी है। कई पुल, घर, पानी की लाइन, नहरें, चेक डैम, बिजली की लाइन, बिजली घर और अन्य सरकारी व निजी संपत्ति गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं।
केदारनाथ के रास्ते में फंसे हुए तीर्थयात्रियों को निकालने के लिए 20 से ज्यादा हेलीकाप्टर लगाए गए हैं।
अधिकारियों ने कहा कि जहां खाली कराने का काम तेजी से चल रहा है, वहीं राज्य में विभिन्न जगहों पर अभी भी 70,000 से ज्यादा लोग फंसे हुए हैं।
सेना के एक अधिकारी ने कहा कि हम जहां तक संभव है बेहतर प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कुछ सीमाएं हैं।
बादल फटने और भयंकर वर्षा के कारण उत्पन्न आपदा के चार दिनों बाद भी विभिन्न स्थानों पर फंसे लोग भोजन पानी के लिए तरस रहे हैं।
लौट कर आए कई लोगों ने बताया कि फंसे हुए लोगों के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है और आपूर्ति नहीं होने से आलू चिप्स और मिनरल वाटर के दाम आसमान छू रहे हैं।
एक निजी हेलीकॉप्टर द्वारा बचाए गए उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला निवासी तीर्थयात्री ने बताया, "पेयजल, दवाएं और खाने की भयंकर कमी है। जैसी स्थिति है उसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।"
पांच लोगों के परिवार के साथ वापस लौटे तीर्थयात्री ने कहा कि देहरादून पहुंचने के लिए उन्हें 11 लाख रुपये देने पड़े। उन्होंने शिकायत की, "बिना कोई दया दिखाते हुए लोग दूसरों को लूट रहे हैं।" उन्होंने कहा कि हेलीकाप्टर से गिराए गए खाने के पैकेट नदियों में बह गए।
अधिकारियों ने कहा कि गुरुवार को हेलीकॉप्टरों से 20,000 खाने के पैकेट गिराए गए। गुप्तकाशी और घनसाली के बीच फंसी करीब 500 कारों को भी बाहर निकाला गया।
कुछ अधिकारियों ने इस बात की आशंका जाहिर की कि संभवत: हजारों लोग नदी की तेज धारा की चपेट में आकर बह गए या ध्वस्त भवनों के मलबे के नीचे दब गए।
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