उत्तर प्रदेश और बिहार की बाढ़ ने सरकारी सतर्कता की कलई खोल दी

उत्तर प्रदेश और बिहार की बाढ़ ने सरकारी सतर्कता की कलई खोल दी

बिहार में बाढ़ का दृश्य.

खास बातें

  • मिहिर शाह कमेटी की रिपोर्ट में बाढ़ प्रबंधन की व्यवस्था पर कई सवाल
  • देश में बाढ़ की समय रहते चेतावनी की कोई सटीक व्यवस्था नहीं
  • केंद्रीय जल आयोग और नए बांध बनाने का इच्छुक
नई दिल्ली:

यूपी-बिहार में आई बाढ़ ने फिर से एक बार बाढ़ों से निबटने और वक्त पर उनकी चेतावनी दे पाने के सरकारी इंतजामों की कलई खोलकर रख दी है. लाखों लोग इसलिए फंसे हुए हैं कि क्योंकि उन्हें वक्त रहते सही खबर नहीं मिल पाई. दरअसल जिस तरह से प्रशासन हर तरफ राहत-बचाव के काम में जूझता नजर आ रहा है उससे साफ है कि वह इतनी बड़ी त्रासदी के लिए तैयार नहीं था और न ही उसे इस बात का अंदाजा था कि इस साल बाढ़ इस कदर कहर बरपाने वाली है.

जाहिर है...अगर सरकारी एजेंसियों ने समय रहते बाढ़ की चेतावनी दी होती तो लोगों को इतना सब भुगतना नहीं पड़ता. जल संसाधन मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट में मिहिर शाह कमेटी ने देश में बाढ़ प्रबंधन की मौजूदा व्यवस्था पर कई सवाल उठाए हैं. अपनी रिपोर्ट में मिहिर शाह ने आगाह किया है कि देश में बाढ़ की चेतावनी देने की मौजूदा व्यवस्था में काफी खामियां हैं. इसकी वजह से बाढ़ से होने वाले खतरे के बारे में प्रभावित लोगों को समय पर जानकारी नहीं पहुंच पा रही है. इससे जान-माल का नुकसान हो रहा है.

कमेटी ने कहा है बड़े बांधों में भारी निवेश के अलावा, भारत ने छोटे-छोटे करीब 35,000 किलोमीटर से ज्यादा के तटबंध बना डाले हैं. लेकिन जल्द ही इनकी क्षमता खत्म होने वाली है. बाढ़ बीमा के अलावा मौसम और बाढ़ का बेहतर अनुमान लगाने वाले तंत्र की जरूरत है.

लेकिन केंद्रीय जल आयोग और नए बांधों के हक में है. आयोग के अध्यक्ष जीएस झा ने एनडीटीवी से कहा, "बिहार और यूपी में बाढ़ के अनुभव के बाद यह महत्वपूर्ण हो गया है कि बिहार और यूपी में नए बांध बनाए जाएं. नदियों के पानी को संरक्षित रखने के लिए."

जाहिर है, बिहार और यूपी में जिस तरह से बाढ़ ने इस बार कहर बरपाया है वह कई सवाल खड़े कर रहा है.


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