पंजाब में यूरिया को लेकर मारामारी मची हुई है, और किसानों की लंबी-लंबी लाइनें लग रही हैं। जिनकी 'पहुंच' है, वे पड़ोसी राज्यों से यूरिया लाकर अपनी फसल बचा रहे हैं, बाकी बेबस हैं। पंजाब ने इस साल गेहूं खरीद का टारगेट 170 लाख टन निर्धारित किया है, लेकिन किसान खुद कह रहे हैं कि यूरिया न मिलने का पैदावार पर असर पड़ेगा, लेकिन दूसरी ओर बादल सरकार कह रही है कि राज्य में यूरिया की कमी नहीं है, और किसान ही ज़रूरत से ज़्यादा खरीद रहे हैं।
पटियाला के राजपुरा के गांव अजीजपर के किसान रुल्दा सिंह कहते हैं कि खेतों को यूरिया मिल जाता तो गेहूं की फसल घुटनों के बराबर होती। सुंदर सिंह ने 10 एकड़ में गेहूं बोया है, और बताते हैं, 'यूरिया तीन बार पड़ना चाहिए... लेकिन मैं सिर्फ एक बार डाल पाया हूं... फसल का नुकसान होगा... 20 से 22 क्विंटल की जगह सिर्फ 10 क्विंटल रह जाएगी...'
वैसे, पिछले हफ्ते फरीदकोट, फिरोज़पुर, मुक्तसर और बठिंडा के लिए आए यूरिया के 22 ट्रक गायब भी हो गए थे, और डीलर को पुलिस में एफआईआर दर्ज करवानी पड़ी। कांग्रेस का आरोप है कि अकाली दल के नेता ही यूरिया की कालाबाज़ारी कर रहे हैं, और सिर्फ पार्टी से जुड़े ज़मींदारों को यूरिया बांटा गया है। गिद्दरबाह से कांग्रेस एमएलए अमरिंदर सिंह वड़िंग ने आरोप लगाया कि यूरिया अकाली नेताओं के घर पर उतरा और उन्होंने 100-100 रुपये ऊपर लगाकर बेचा है।
जांच से पता चला कि ट्रकों पर लदे यूरिया के 9,000 बैग मुक्तसर के लंबी और गिद्दरबाह में बांट दिए गए। उल्लेखनीय है कि लंबी मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का विधानसभा क्षेत्र है। अब डीलर ने एफआईआर वापस ले ली है। उधर, ट्रक यूनियन पर भी अकाली दल का कब्ज़ा है। मुक्तसर ट्रक यूनियन के प्रधान लक्खी किंगरा ने कहा कि लोकल कांग्रेस के एमएलए ही इस स्थिति के लिए ज़िम्मेदार हैं। उन्होंने धमकी दी थी कि ट्रकों को आग लगा दो और बैग लूट लो, इसलिए हमने बैग लोकल ही बांट दिए, लेकिन दूसरे जिलों के हक़ का यूरिया मुख्यमंत्री के इलाके में क्यों बांट दिया गया, इसका जवाब न तो प्रशासन दे रहा है, न सरकार।
पिछले साल केंद्र सरकार ने नाप्था आधारित यूरिया उत्पादन पर से सब्सिडी हटा ली थी, जिसके चलते उत्पादन में आई कमी के कारण पंजाब को उसके कोटे का यूरिया नहीं मिल पाया।
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