यमुना को बचाने की मुहिम एक बार फिर से उफान पर है। हजारों लोगों की यमुना मुक्तिकरण पदयात्रा जो 15 मार्च को मथुरा जिले के कोसीकलां से शुरू हुई थी सौ किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय कर शुक्रवार को दिल्ली पहुंची। इस बड़ी मुहीम के पीछे मंशा मोदी सरकार पर यमुना नदी को बचाने को लेकर नई पहल शुरू करने के लिए दबाव बढ़ाने की है।
इस मुहीम में मथुरा और आस-पास के इलाकों के साथ-साथ महाराष्ट्र और गुजरात समेत देश के कई दूसरे राज्यों के लोग शामिल हैं। इनकी मांग है कि तत्काल हथिनीकुंड बैराज से यमुना में पानी छोड़ा जाए, जिससे यमुना को अविरल बनाया जा सके। उनकी नजर में जब तक साफ पानी यमुना में नहीं छोड़ा जाता, यमुना को बचाना मुश्किल होगा। इन लोगों का दावा है कि जब तक ऐसा नहीं होगा वो दिल्ली नहीं छोड़ेंगे।
यमुना मुक्तिकरण पदयात्रा में नौजवानों और बुजुर्गों के अलावा बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे भी शामिल हुए। दरअसल प्रदूषण और शहरीकरण की शिकार यमुना का सबसे ज्यादा खामियाजा इसके किनारे बसे लोगों को उठाना पड़ रहा है। पदयात्रियों की शिकायत है कि यमुना के प्रदूषित होने से इस पर निर्भर लोगों को कई तरह की चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। सिंचाई के लिए किसानों को पानी नहीं मिल रहा है, आम ज़रूरत के लिए पानी मिलना कम होता जा रहा है और स्वास्थय के लिए खतरा भी बढ़ता जा रहा है।
इतना ही नहीं यमुना बचाने की इस भावना के पीछे करोड़ों लोगों की धार्मिक आस्था भी है जो सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। कुछ दिन पहले उमा भारती ने इन पदयात्रियों की मांगों पर चर्चा के लिए उनसे मुलाकात की थी, लेकिन वो भी इन्हें मनाने में नाकाम रहीं।
दरअसल ये पदयात्री 'यमुना बचाओ अभियान' के तहत इससे पहले 2011 और 2013 में भी दिल्ली मार्च कर चुके हैं। हर बार केन्द्र सरकार ने कार्रवाई करने का आश्वासन दिया, लेकिन जमीन पर कोई पहल नहीं की। अब ये नई कवायद 2015 में फिर शुरू की गयी है मोदी सरकार पर दबाव बढ़ाने की।
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