मुंबई:
नवी मुंबई के दिघा में एमआईडीसी परिसर में बने अवैध निर्माणों पर सरकारी हथौड़ा चलना शुरू हो गया है। बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेशा के मुताबिक, 99 बिल्डिंगों को तोड़कर 23 अक्तूबर तक रिपोर्ट कोर्ट में सौंपी जानी है।
इन बिल्डिगों में लगभग 3300 फ्लैट हैं, जिसमें तकरीबन 20000 लोग रहते हैं। अदालत के इस फरमान के बाद उनके सामने अब सवाल खड़ा है कि जाएं तो जाएं कहां। कई लोगों का आरोप है कि वह यहां दो पीढ़ियों से रह रहे हैं, लेकिन चूंकि वो गरीब हैं, इसलिए ना तो कोर्ट, ना मीडिया और ना ही सरकार उनकी बात सुन रही है।
दिघा के प्रवीण का कहना है, 'हम यहां सालों से रह रहे हैं, अगर निर्माण अवैध था तो बिजली पानी के कनेक्शन क्यों मिले, कोई हमारी बात नहीं सुन रहा है। हमारे पास इतने साधन नहीं हैं कि हम कोर्ट में केस लड़ते रहें। अब हम कहां जाएंगे?
दिघा में 3 बिल्डिंगें केरू प्लाजा, शिवराम अपार्टमेंट, पार्वती अपार्टमेंट गिराए जा चुके हैं, प्रशासन ने दो निर्माणधीन इमारतें भी गिरा दी हैं, जबकि 96 बिल्डिंगें और उनमें बने हजारों फ्लैट अभी गिराए जाने बाकी हैं। ये घर एमआईडीसी की ज़मीन पर बने हैं और प्रशासन इन्हें अवैध घोषित कर चुका है।
यहां रहने वाले एक जनहित याचिका के बाद कोर्ट में केस हार चुके हैं। हालांकि लोगों का कहना है कि वह पीढ़ियों से दिघा में रह रहे हैं, उन्हें बिजली-पानी कनेक्शन मिला हुआ है। सालों पहले जब इलाके में झोपड़ियों और चॉल थे, तब उन्हें नियमन के लिए रसीद भी मिली थी। इनका कहना है कि कई परिवार ऐसे भी हैं, जिन्हें नवी मुंबई परियोजनाग्रस्त के तहत ज़मीन मिली हुई थी।
ना सिर्फ रिहाइशी इमारतें, बल्कि फैसले के बाद स्कूल और खुद नवी मुंबई महानगरपालिका के वॉर्ड ऑफिस पर भी कार्रवाई होनी है। दिघा के वॉर्ड अधिकार गणेश आढव ने कहा, 'हमें नोटिस मिली है हमने नवी मुंबई म्यूनिसिपल कमिश्नर पास उसे भेज दिया है।'
जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने अवैध निर्माण तोड़कर 23 अक्तूबर तक प्रशासन से रिपोर्ट सौंपने को कहा है। स्थानीय नेता इन इमारतों को बचाने के लिए महाराष्ट्र सरकार से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन फिलहाल सरकार ने कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए मामले से पल्ला झाड़ लिया है।
इन बिल्डिगों में लगभग 3300 फ्लैट हैं, जिसमें तकरीबन 20000 लोग रहते हैं। अदालत के इस फरमान के बाद उनके सामने अब सवाल खड़ा है कि जाएं तो जाएं कहां। कई लोगों का आरोप है कि वह यहां दो पीढ़ियों से रह रहे हैं, लेकिन चूंकि वो गरीब हैं, इसलिए ना तो कोर्ट, ना मीडिया और ना ही सरकार उनकी बात सुन रही है।
दिघा के प्रवीण का कहना है, 'हम यहां सालों से रह रहे हैं, अगर निर्माण अवैध था तो बिजली पानी के कनेक्शन क्यों मिले, कोई हमारी बात नहीं सुन रहा है। हमारे पास इतने साधन नहीं हैं कि हम कोर्ट में केस लड़ते रहें। अब हम कहां जाएंगे?
दिघा में 3 बिल्डिंगें केरू प्लाजा, शिवराम अपार्टमेंट, पार्वती अपार्टमेंट गिराए जा चुके हैं, प्रशासन ने दो निर्माणधीन इमारतें भी गिरा दी हैं, जबकि 96 बिल्डिंगें और उनमें बने हजारों फ्लैट अभी गिराए जाने बाकी हैं। ये घर एमआईडीसी की ज़मीन पर बने हैं और प्रशासन इन्हें अवैध घोषित कर चुका है।
यहां रहने वाले एक जनहित याचिका के बाद कोर्ट में केस हार चुके हैं। हालांकि लोगों का कहना है कि वह पीढ़ियों से दिघा में रह रहे हैं, उन्हें बिजली-पानी कनेक्शन मिला हुआ है। सालों पहले जब इलाके में झोपड़ियों और चॉल थे, तब उन्हें नियमन के लिए रसीद भी मिली थी। इनका कहना है कि कई परिवार ऐसे भी हैं, जिन्हें नवी मुंबई परियोजनाग्रस्त के तहत ज़मीन मिली हुई थी।
ना सिर्फ रिहाइशी इमारतें, बल्कि फैसले के बाद स्कूल और खुद नवी मुंबई महानगरपालिका के वॉर्ड ऑफिस पर भी कार्रवाई होनी है। दिघा के वॉर्ड अधिकार गणेश आढव ने कहा, 'हमें नोटिस मिली है हमने नवी मुंबई म्यूनिसिपल कमिश्नर पास उसे भेज दिया है।'
जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने अवैध निर्माण तोड़कर 23 अक्तूबर तक प्रशासन से रिपोर्ट सौंपने को कहा है। स्थानीय नेता इन इमारतों को बचाने के लिए महाराष्ट्र सरकार से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन फिलहाल सरकार ने कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए मामले से पल्ला झाड़ लिया है।
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