प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
भारतीय जवानों ने नियंत्रण रेखा के पार आतंकी शिविरों में जिस सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया है, उसमें इसरो द्वारा प्रक्षेपित कुछ ऐसे उपग्रहों ने भी मदद की, जो आकाश में इतना उंचा उड़ते हैं कि पाकिस्तानी उन्हें देख नहीं पाते. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) युद्ध नहीं लड़ता और यह पूरी तरह से एक असैन्य एजेंसी है. लेकिन देश को कुछ ऐसी क्षमताओं से यह लैस करता है, जो विश्व में उत्कृष्ट हैं.
पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों पर पैनी नजर रखने से लेकर सुदूर इलाकों में सटीक दिशासूचक संकेत देने और द्विमार्गी संचार सुविधा उपलब्ध करवाने तक इसरो ने एक ऐसा विशालकाय तंत्र बनाया है, जो दिन-रात सीमाओं की रक्षा में भारत की मदद करता है.
ज्यादातर भारतीय अपने देश की इस अंतरिक्ष एजेंसी की अदभुत क्षमताओं के बारे में नहीं जानते क्योंकि इसरो द्वारा मंगल और चांद पर भेजे गए अभियान ही ज्यादा चर्चा में रहे हैं. इसके बावजूद इसरो के 17 हजार कर्मचारी चुपचाप और लगातार 1.2 अरब भारतीयों के जीवन को सुरक्षित रखने के लिए योगदान देते रहते हैं. इसरो जरूरी मंच उपलब्ध करवाता है और प्रयोगकर्ता एजेंसियां इसके उत्पादों का इस्तेमाल करती हैं. इसका अर्थ यह है कि इसरो किसी भी संघर्ष में सीधे तौर पर भागीदारी नहीं करता.
आतंकी शिविरों पर पैनी नज़र रख सकता है भारत
इसरो के पूर्व अध्यक्ष के कस्तूरीरंगन कहते हैं, "अंतरिक्ष एजेंसी के पास प्रौद्योगिकी का भंडार है और सभी को समुचित तरीके से तैनात किया गया है. प्रत्येक प्रयोगकर्ता एजेंसी इनका इस्तेमाल सर्वोच्च लाभ लेते हुए कर रही है." साफ तस्वीरें भेजने वाले एक उपग्रह का इस्तेमाल शहरी नियोजन में किया जा सकता है, साथ ही साथ यह सीमा पार आतंकी शिविरों पर भी नजर रख सकता है. कस्तूरीरंगन कहते हैं कि उपग्रह से मिली तस्वीर दोस्त और दुश्मन में अंतर नहीं कर पाती. ऐसे में यह आंकलन प्रयोगकर्ता के हाथ में होता है.
इस बात में किसी को संदेह नहीं है कि इसरो की आंख-कान बनी प्रौद्योगिकियों ने पाक अधिकृत कश्मीर पर सर्जिकल स्ट्राइक करने में मदद की. आने वाले समय में यदि हमारी सीमाओं पर स्थिति बिगड़ती है तो ऐसे में भारतीय अंतरिक्षीय संपत्ति की भूमिका अहम हो जाएगी. इसरो के अध्यक्ष किरण कुमार ने कहा, "भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी अभी और भविष्य में भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा में मदद करने के मामले में कभी कमजोर नहीं पड़ेगी." आज पृथ्वी के चारों ओर की कक्षा में भारत के 33 उपग्रह हैं और एक उपग्रह मंगल की कक्षा में है. इनमें 12 संचार उपग्रह, सात दिशासूचक उपग्रह, 10 पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह और चार मौसम निरीक्षक उपग्रह हैं. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में यह उपग्रहों के सबसे बड़े जखीरे में से एक है. हर उपग्रह को किसी काम विशेष के लिए तैयार किया गया है और जब भी जरूरत पड़ती है, तब ये भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा में मदद करते हैं.
पाक पीएम के बंगले के बाहर खड़ी कारें गिनने की क्षमता
भारत के पास आकाश में कई पैनी नजरें हैं. सर्जिकल स्ट्राइक की तैयारी करने में इसरो के सर्वश्रेष्ठ कारटोसैट 2-श्रृंखला के उपग्रह ने एक अहम भूमिका निभाई. इसे हाल ही में 22 जून को प्रक्षेपित किया गया था.
धरती से 500 किलोमीटर से अधिक की उंचाई पर मौजूद यह उपग्रह पाकिस्तान की हर चीज को सावधानी के साथ देख सकता है और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बड़े बंगले में खड़ी कारों की संख्या तक को आसानी से गिन सकता है. आकाश में मौजूद भारत का यह दुर्जेय जासूस पाकिस्तान में कहीं भी खड़े किए गए प्रत्येक टैंक, ट्रक और लड़ाकू विमान को गिन सकता है. इसकी रेजोल्यूशन क्षमता लगभग 0.65 मीटर की है.
तेज स्पीड के बावजूद वीडियो बनाने में सक्षम
अपने इस चौकस उपग्रह के बारे में जानकारी देते हुए कुमार ने कहा, "कारटोसैट 2 श्रृंखला के पास एक मिनट का वीडियो लेने की अदभुत क्षमता है. अपनी 37 किलोमीटर प्रति सेकेंड की तेज गति के बावजूद यह एक मिनट के लिए किसी एक बिंदु पर फोकस कर सकता है." इसके अलावा पृथ्वी की तस्वीरें लेने वाले तीन अन्य उपग्रह- कारटोसैट-1, कारटोसैट-2 और रिसोर्ससैट-2 हैं, जो दिन के समय उच्च स्तरीय तस्वीरें उपलब्ध करवाते हैं.
इसके विपरीत, पाकिस्तान के पास ऐसी कोई क्षमता नहीं है क्योंकि उसका अंतरिक्ष कार्यक्रम बमुश्किल शुरू ही हुआ है. इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी माधवन नायर कहते हैं कि चीन के पास भी इतने अधिक रेजोल्यूशन वाले उपग्रह नहीं हैं. चीन के पास जो सबसे उत्कृष्ट रेजोल्यूशन की क्षमता है, वह पांच मीटर की है.
बादल के पार भी देख सकने की क्षमता
नायर ने कहा, "भारत ने अंतरिक्षीय प्रौद्योगिकी में भारी निवेश किया और अब वह उसके लाभ ले रहा है." भारत के कुछ ऐसे उपग्रह भी हैं, जिनके पास दिन-रात देख सकने की क्षमताएं हैं. ये उपग्रह "सिंथेटिक एपर्चर रडार सैटेलाइट" कहलाते हैं. कक्षा में ऐसे दो उपग्रह- आरआईसैट-1 और आरआईसैट-2 हैं. इन दोनों उपग्रहों की नजरों से कुछ भी बच नहीं सकता क्योंकि ये बादल के पार भी देख सकते हैं और रात में भी इनकी देखने की क्षमता सक्रिय रहती है. खासतौर पर आरआईसैट-2 इस श्रेणी का उत्कृष्ट उपग्रह है और इसका घूर्णनकाल तुलनात्मक रूप से कम है.
आतंकियों के शिविरों को पहुंचे नुकसान का आकलन रडार उपग्रहों के इस्तेमाल से काफी आसान हो जाएगा. ऐसा नहीं है कि ये उपग्रह असैन्य कार्यों में सहयोग नहीं करते. ये रडार उपग्रह बाढ़ पर नजर रखने के साथ-साथ दुर्घटनाग्रस्त हुए विमानों एवं हेलीकॉप्टरों की खोज के लिए भी तैनात किए जाते हैं.
सिर्फ अमेरिका और रूस के पास है यह क्षमता
भारत की क्षेत्रीय उपग्रह दिशासूचक प्रणाली नाविक (एनएवीआईसी) के सात उपग्रहों में से अंतिम उपग्रह को बीते 28 अप्रैल को प्रक्षेपित किया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रणाली के व्यापक लाभों के बारे में बताया था. यह प्रणाली अमेरिकी जीपीएस की तर्ज पर 20 मीटर की सटीकता के साथ दिशासूचक संकेत (नेविगेशन सिग्नल) देती है. इसका दायरा सीमा के हर ओर 1500 किलोमीटर तक फैला है. इससे पूरे साल हर क्षण संकेत भेजे जाते हैं. दक्षिण एशियाई क्षेत्र में ऐसी क्षमता सिर्फ अमेरिका और रूस के पास ही है. चीन अपनी उपग्रह दिशासूचक प्रणाली तैयार कर रहा है.
भारत के दुश्मनों को इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि जल्दी ही ये स्वदेशी जीपीएस सिग्नल देश के कमांडो को आतंकियों के सरगनाओं के हर ठिकाने तक ले जाएंगे. युद्ध की स्थिति में नाविक से मिलने वाले संकेत निश्चित तौर पर भारत को अपनी मिसाइलों का लक्ष्य निर्धारण करने में मदद करेंगे और दुश्मन को अभूतपूर्व नुकसान पहुंचाएंगे.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों पर पैनी नजर रखने से लेकर सुदूर इलाकों में सटीक दिशासूचक संकेत देने और द्विमार्गी संचार सुविधा उपलब्ध करवाने तक इसरो ने एक ऐसा विशालकाय तंत्र बनाया है, जो दिन-रात सीमाओं की रक्षा में भारत की मदद करता है.
ज्यादातर भारतीय अपने देश की इस अंतरिक्ष एजेंसी की अदभुत क्षमताओं के बारे में नहीं जानते क्योंकि इसरो द्वारा मंगल और चांद पर भेजे गए अभियान ही ज्यादा चर्चा में रहे हैं. इसके बावजूद इसरो के 17 हजार कर्मचारी चुपचाप और लगातार 1.2 अरब भारतीयों के जीवन को सुरक्षित रखने के लिए योगदान देते रहते हैं. इसरो जरूरी मंच उपलब्ध करवाता है और प्रयोगकर्ता एजेंसियां इसके उत्पादों का इस्तेमाल करती हैं. इसका अर्थ यह है कि इसरो किसी भी संघर्ष में सीधे तौर पर भागीदारी नहीं करता.
आतंकी शिविरों पर पैनी नज़र रख सकता है भारत
इसरो के पूर्व अध्यक्ष के कस्तूरीरंगन कहते हैं, "अंतरिक्ष एजेंसी के पास प्रौद्योगिकी का भंडार है और सभी को समुचित तरीके से तैनात किया गया है. प्रत्येक प्रयोगकर्ता एजेंसी इनका इस्तेमाल सर्वोच्च लाभ लेते हुए कर रही है." साफ तस्वीरें भेजने वाले एक उपग्रह का इस्तेमाल शहरी नियोजन में किया जा सकता है, साथ ही साथ यह सीमा पार आतंकी शिविरों पर भी नजर रख सकता है. कस्तूरीरंगन कहते हैं कि उपग्रह से मिली तस्वीर दोस्त और दुश्मन में अंतर नहीं कर पाती. ऐसे में यह आंकलन प्रयोगकर्ता के हाथ में होता है.
इस बात में किसी को संदेह नहीं है कि इसरो की आंख-कान बनी प्रौद्योगिकियों ने पाक अधिकृत कश्मीर पर सर्जिकल स्ट्राइक करने में मदद की. आने वाले समय में यदि हमारी सीमाओं पर स्थिति बिगड़ती है तो ऐसे में भारतीय अंतरिक्षीय संपत्ति की भूमिका अहम हो जाएगी. इसरो के अध्यक्ष किरण कुमार ने कहा, "भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी अभी और भविष्य में भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा में मदद करने के मामले में कभी कमजोर नहीं पड़ेगी." आज पृथ्वी के चारों ओर की कक्षा में भारत के 33 उपग्रह हैं और एक उपग्रह मंगल की कक्षा में है. इनमें 12 संचार उपग्रह, सात दिशासूचक उपग्रह, 10 पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह और चार मौसम निरीक्षक उपग्रह हैं. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में यह उपग्रहों के सबसे बड़े जखीरे में से एक है. हर उपग्रह को किसी काम विशेष के लिए तैयार किया गया है और जब भी जरूरत पड़ती है, तब ये भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा में मदद करते हैं.
पाक पीएम के बंगले के बाहर खड़ी कारें गिनने की क्षमता
भारत के पास आकाश में कई पैनी नजरें हैं. सर्जिकल स्ट्राइक की तैयारी करने में इसरो के सर्वश्रेष्ठ कारटोसैट 2-श्रृंखला के उपग्रह ने एक अहम भूमिका निभाई. इसे हाल ही में 22 जून को प्रक्षेपित किया गया था.
धरती से 500 किलोमीटर से अधिक की उंचाई पर मौजूद यह उपग्रह पाकिस्तान की हर चीज को सावधानी के साथ देख सकता है और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बड़े बंगले में खड़ी कारों की संख्या तक को आसानी से गिन सकता है. आकाश में मौजूद भारत का यह दुर्जेय जासूस पाकिस्तान में कहीं भी खड़े किए गए प्रत्येक टैंक, ट्रक और लड़ाकू विमान को गिन सकता है. इसकी रेजोल्यूशन क्षमता लगभग 0.65 मीटर की है.
तेज स्पीड के बावजूद वीडियो बनाने में सक्षम
अपने इस चौकस उपग्रह के बारे में जानकारी देते हुए कुमार ने कहा, "कारटोसैट 2 श्रृंखला के पास एक मिनट का वीडियो लेने की अदभुत क्षमता है. अपनी 37 किलोमीटर प्रति सेकेंड की तेज गति के बावजूद यह एक मिनट के लिए किसी एक बिंदु पर फोकस कर सकता है." इसके अलावा पृथ्वी की तस्वीरें लेने वाले तीन अन्य उपग्रह- कारटोसैट-1, कारटोसैट-2 और रिसोर्ससैट-2 हैं, जो दिन के समय उच्च स्तरीय तस्वीरें उपलब्ध करवाते हैं.
इसके विपरीत, पाकिस्तान के पास ऐसी कोई क्षमता नहीं है क्योंकि उसका अंतरिक्ष कार्यक्रम बमुश्किल शुरू ही हुआ है. इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी माधवन नायर कहते हैं कि चीन के पास भी इतने अधिक रेजोल्यूशन वाले उपग्रह नहीं हैं. चीन के पास जो सबसे उत्कृष्ट रेजोल्यूशन की क्षमता है, वह पांच मीटर की है.
बादल के पार भी देख सकने की क्षमता
नायर ने कहा, "भारत ने अंतरिक्षीय प्रौद्योगिकी में भारी निवेश किया और अब वह उसके लाभ ले रहा है." भारत के कुछ ऐसे उपग्रह भी हैं, जिनके पास दिन-रात देख सकने की क्षमताएं हैं. ये उपग्रह "सिंथेटिक एपर्चर रडार सैटेलाइट" कहलाते हैं. कक्षा में ऐसे दो उपग्रह- आरआईसैट-1 और आरआईसैट-2 हैं. इन दोनों उपग्रहों की नजरों से कुछ भी बच नहीं सकता क्योंकि ये बादल के पार भी देख सकते हैं और रात में भी इनकी देखने की क्षमता सक्रिय रहती है. खासतौर पर आरआईसैट-2 इस श्रेणी का उत्कृष्ट उपग्रह है और इसका घूर्णनकाल तुलनात्मक रूप से कम है.
आतंकियों के शिविरों को पहुंचे नुकसान का आकलन रडार उपग्रहों के इस्तेमाल से काफी आसान हो जाएगा. ऐसा नहीं है कि ये उपग्रह असैन्य कार्यों में सहयोग नहीं करते. ये रडार उपग्रह बाढ़ पर नजर रखने के साथ-साथ दुर्घटनाग्रस्त हुए विमानों एवं हेलीकॉप्टरों की खोज के लिए भी तैनात किए जाते हैं.
सिर्फ अमेरिका और रूस के पास है यह क्षमता
भारत की क्षेत्रीय उपग्रह दिशासूचक प्रणाली नाविक (एनएवीआईसी) के सात उपग्रहों में से अंतिम उपग्रह को बीते 28 अप्रैल को प्रक्षेपित किया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रणाली के व्यापक लाभों के बारे में बताया था. यह प्रणाली अमेरिकी जीपीएस की तर्ज पर 20 मीटर की सटीकता के साथ दिशासूचक संकेत (नेविगेशन सिग्नल) देती है. इसका दायरा सीमा के हर ओर 1500 किलोमीटर तक फैला है. इससे पूरे साल हर क्षण संकेत भेजे जाते हैं. दक्षिण एशियाई क्षेत्र में ऐसी क्षमता सिर्फ अमेरिका और रूस के पास ही है. चीन अपनी उपग्रह दिशासूचक प्रणाली तैयार कर रहा है.
भारत के दुश्मनों को इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि जल्दी ही ये स्वदेशी जीपीएस सिग्नल देश के कमांडो को आतंकियों के सरगनाओं के हर ठिकाने तक ले जाएंगे. युद्ध की स्थिति में नाविक से मिलने वाले संकेत निश्चित तौर पर भारत को अपनी मिसाइलों का लक्ष्य निर्धारण करने में मदद करेंगे और दुश्मन को अभूतपूर्व नुकसान पहुंचाएंगे.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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