उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि किशोर न्याय कानून के आदर्शों और अनुपालन में अंतर है और किशोर अपराध को रोकने के लिए वंचित और गरीब लोगों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है क्योंकि यह दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियां ही नाबालिग को उत्पीड़न और हिंसा में धकेल देती हैं. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यह बात यहां आयोजित राष्ट्रीय किशोर न्याय परामर्श कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने कहा कि यह अनिवार्य रूप से स्वीकार्य किया जाना चाहिए कि कानून के उल्लंघन में फंसे बच्चे न केवल अपराधी होते हैं बल्कि कई मामलों में उनपर ध्यान देने और उनकी रक्षा करने की जरूरत होती है. उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास अद्भुत कानून है, लेकिन आदर्श और कानून को लागू करने में अंतर है... बच्चों को कई बार विरासत में अपराध मिलता है. वे दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में पैदा हुए होते हैं जिन्हें उत्पीड़न और हिंसा में धकेल दिया जाता है.''
‘बाल सरंक्षण सुधार : बच्चों के प्रति जवादेही की मजबूती की ओर' पर बालते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि यह विषय उनके लिए निजी है क्योंकि वह और उनकी पत्नी दो दिव्यांग युवा बच्चियों के पालक माता-पिता हैं जो उत्तारखंड के गांव में बड़ी हुईं. न्यायमूर्ति ने कहा कि संस्थाओं का मानक सुनिश्चित करना अहम है और उन्होंने मुजफ्फरपुर और पनवेल आश्रय गृह का उदाहरण दिया जहां नाबालिग बच्चियों का कथित रूप से यौन उत्पीड़न किया गया था.
मादक पदार्थ के कारोबार में शामिल बच्चों के बारे में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि वे दोषी होने की बजाय इस कारोबार के पीड़ित हैं. उन्होंने कहा कि आर्थिक संसाधनों से वंचित होने और किशोर अपराध में गहरा संबंध है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो के हालिया आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015 में 42.39 में किशोर अपराधियों की पारिवारिक आय 25,000 रुपये से कम थी. वहीं 28 फीसदी बाल अपराधियों की पारिवारिक आय 25,000 से 50000 के बीच थी. केवल दो से तीन फीसदी बाल अपराधी उच्च आयवर्ग के थे.
उन्होंने कहा, ‘‘इससे साबित होता है कि किशोर न्याय कानून के अंतर्गत आने वाले बच्चों को आर्थिक मदद दने और उनपर योजनागत तरीके से ध्यान देने की जरूरत है. इसलिए किशोर अपराध को रोकने के लिए वंचित और गरीबी पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है.''
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और सरंक्षण) कानून-2000 के प्रभावी होने के 19 साल बाद भी इसे प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जा सका है. उन्होंने कहा कि अगर योजनाएं लागू नहीं होती तो कागजी खानापूर्ति करने का कोई औचित्य नहीं है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं