द टाइगर स्पीक : दहाड़ते नहीं, देखने वालों की आंखें नम कर कर देते हैं हरिओम के बाघ

द टाइगर स्पीक : दहाड़ते नहीं, देखने वालों की आंखें नम कर कर देते हैं हरिओम के बाघ

प्रदर्शनी में शामिल एक कार्टून।

नई दिल्ली:

बाघ की दहाड़ के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन उसकी पीड़ा, उसके रुदन के बारे में कोई नहीं जानता। बाघ का रुदन तो मशहूर कार्टूनिस्ट हरिओम ने भी नहीं सुना होगा लेकिन उसकी पीड़ा को निश्चित ही गहरे तक महसूस किया है। हरिओम ने अपने कार्टूनों में बाघों की पीड़ा पूरी संवेदनशीलता के साथ जाहिर की है। बाघों पर केंद्रित उनके कार्टूनों की प्रदर्शनी 'द टाइगर स्पीक' से देखने वालों के मन में चुभन देती है और बाघों के प्रति सहानुभूति जगाती है।  

तीन दिन चलने वाली प्रदर्शनी 'द टाइगर स्पीक' का गुरुवार को उद्घाटन हुआ। आईटीओ में पियारे लाल भवन में चल रही इस प्रदर्शनी का उद्घाटन केंद्रीय खनन, इस्‍पात, श्रम एवं रोजगार मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किया। इस मौके पर राज्यसभा सांसद प्रभात झा भी मौजूद थे।


इंसान से बाघ का संवाद
हरिओम के कार्टूनों में बाघ खुद इंसान से बात कर रहा है। वह अपना दुखड़ा कुछ इस तरह रोता है कि उसे देखने वाला उस पर तरस खाए बगैर नहीं रह पाता। बाघों की गणना करते व्यक्ति से वह कहता है सिर्फ गिनती करना काफी नहीं है, हमारे घर को भी बचाओ, नहीं तो सिर्फ 'फूट प्रिंट' ही रह जाएंगे। एक कार्टून में बाघ मानवाधिकार आयोग के बोर्ड में संशोधन करके राष्ट्रीय जानवर अधिकार आयोग लिखता हुआ दिखता है। 'टू लेट' की तख्ती वाले एक घर के दरवाजे पर वह कहता है कि क्या हमें स्वीकार करेंगे, हमारा घर खो चुका है।

संसद सबसे माकूल घर....!
संसद भवन से सेव टाइगर...सेव टाइगर.. की आवाजें सुनकर बाघ अपने साथियों से कह रहा है यह जगह हमारे रहने के लिए सबसे माकूल मालूम पड़ती है। बाघ कहीं फेसबुक पर इंसान को फ्रेंडशिप की रिक्वेस्ट भेज रहा है तो कहीं टाइगर चाय, शेर बीड़ी और ढाबा शेरे पंजाब से रॉयल्टी की मांग करने का निश्चय कर रहा है। वह बीएसएफ से कह रहा है कि उसे भर्ती कर लो घुसपैठ रुक जाएगी।

बाघ मनुष्य होता तो क्या कहता?
इसी तरह के न जाने कितने जज्बात हैं जो हरिओम ने इस प्रदर्शनी में व्यक्त किए हैं। हरिओम बताते हैं कि अक्सर जंगलों से शहरों, बस्तियों में बाघों के आ धमकने की खबरें मिलती रही हैं। कभी वह पानी के लिए, कभी पेट न भरने पर शिकार के लिए आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि उनमें इन घटनाओं को लेकर जिज्ञासा जगी कि आखिर ऐसा क्या है कि बाघ जंगल छोड़कर शहरों की तरफ भाग रहे हैं? जब जाना तो यह भी कल्पना की कि यदि बाघ मनुष्य होता तो वह अपनी पीड़ा किस तरह व्यक्त करता। इन कार्टूनों में वही पीड़ा है।

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