आम बजट पेश किए जाने के तीन दिन बाद देश के वित्तीय हिसाब-किताब में लगभग दो लाख करोड़ रुपये के 'सुराख' को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं.
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रथिन रॉय ने इस गड़बड़ी की तरफ सबसे पहले ध्यान दिलाया. उन्होंने 'बिज़नेस स्टैंडर्ड' में लिखा, आर्थिक सर्वेक्षण तथा आम बजट का अध्ययन करने के दौरान उन्होंने पाया कि वर्ष 2018-19 के लिए राजस्व अनुमान, दूसरे शब्दों में सरकार की आय, आर्थिक सर्वेक्षण में बजट की तुलना में पूरा एक फीसदी कम है.
यह एक फीसदी भी 1.7 लाख करोड़ रुपये बनता है.
बजट में रिवाइज़्ड एस्टिमेट (RE), यानी संशोधित अनुमान का इस्तेमाल किया जाता है, जो यह बताता है कि सरकार को कितनी आय की उम्मीद है, जबकि आर्थिक सर्वेक्षण में जिन आंकड़ों का इस्तेमाल होता है, उन्हें प्रोविज़नल एक्चुअल्स (PA), यानी प्रावधानिक वास्तविक कहा जाता है, जो सरकारी खातों के अपडेटेड और ज़्यादा वास्तविक आंकड़े होते हैं.
बजट में इस्तेमाल किया गया रिवाइज़्ड एस्टिमेट बताता है कि 2018-19 के दौरान 17.3 लाख करोड़ रुपये का राजस्व आया, जबकि आर्थिक सर्वेक्षण में अपडेट किए जा चुके प्रोविज़नल आंकड़े बताते हैं कि सरकार की आय कहीं कम रही, 15.6 लाख करोड़ रुपये, यानी 1.7 लाख करोड़ रुपये कम.
आर्थिक सर्वे और बजट के आंकड़ों में अंतर कैसे?
प्रतिशत के लिहाज़ से (GDP के प्रतिशत के रूप में कुल राजस्व) बजट में रिवाइज़्ड एस्टिमेट 9.2 फीसदी बताया गया, जबकि आर्थिक सर्वेक्षण में दिया गया अपडेटेड आंकड़ा इसे एक फीसदी कम, यानी 8.2 प्रतिशत बताता है.
यह असंगति सरकार के व्यय में भी नज़र आती है. बजट में व्यय को 2018-19 के दौरान 24.6 लाख करोड़ रुपये बताया गया है, जबकि आर्थिक सर्वेक्षण का ज़्यादा सटीक आंकड़ा बताता है कि सरकार ने सिर्फ 23.1 लाख करोड़ रुपये खर्च किए, यानी 1.5 लाख करोड़ रुपये कम.
इस कमी की वजह - कर राजस्व में कमी. एक ओर बजट के मुताबिक, सरकार को पिछले साल विभिन्न करों से 14.8 लाख करोड़ रुपये की आय की उम्मीद थी, लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण के अपडेटेड आंकड़ों के मुताबिक, सरकार को इस मद में सिर्फ 13.2 लाख करोड़ रुपये हासिल हुए.
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वित्त मंत्रालय को भेजे गए सवालों का फिलहाल कोई जवाब हासिल नहीं हुआ है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (National Statistical Commission) के पूर्व अध्यक्ष तथा भारत के पहले चीफ स्टैटिस्टिशियन प्रणब सेन ने NDTV से कहा, "यह निश्चित रूप से चिंता का विषय है..." उन्होंने कहा, "जैसा मैं समझता हूं, आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े वास्तविकता के ज़्यादा करीब होते हैं... बजट में दिखाए गए आंकड़े कहीं ज़्यादा हैं... अब समस्या यह पैदा होती है कि अगर आपको वित्तीय घाटा लक्ष्य हासिल करना होगा, तो बजट में कहीं न कहीं भारी कटौती करनी होगी... इससे मंत्रालय की योजनाएं गड़बड़ा जाएंगी..."
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज़ के सेंटर फॉर स्टडीज़ एंड प्लानिंग में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर जयति घोष का कहना है, "यदि प्रावधानिक वास्तविक आंकड़े दुरुस्त हैं, तो एकमात्र उपाय है, नया बजट लेकर आया जाए..."
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