...तो छह महीने के लिए लटक गया भूमि अधिग्रहण बिल

नई दिल्ली : सरकार ने लोकसभा में जमीन अधिग्रहण बिल पर नौ संशोधन किए हैं, मगर उनसे भी सरकार की मुश्किलें हल नहीं हो रही है। इन संशोधनों में सोशल इंफ्रास्ट्रकचर को मंजूरी न लेने वाले सेक्टर से बाहर किया गया है। सिर्फ सरकारी संस्थाओं, निगमों के लिए ही जमीन ली जाएगी। राष्ट्रीय राजमार्ग, रेललाइन के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर जमीन का ही अधिग्रहण होगा, किसानों को जिले में शिकायत की सुविधा मिलेगी। विस्थापित परिवारों में से एक को नौकरी मिलेगी।

सरकार को लगता है कि इससे वह विपक्ष को खुश कर पाएगी, मगर ऐसा है नहीं। विपक्ष अभी भी एकजुट है और राज्यसभा में सरकार को मजा चखाने पर उतारू भी है। सरकार ने विस्थापित परिवारों में से एक को नौकरी देने की बात कहकर मुलायम सिंह को खुश करने की कोशिश की है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में भी इसी तरह का प्रावधान है। विपक्ष का कहना है कि जमीन लेने के लिए किसानों की अनुमति के लिए 70 फीसदी की मंजूरी को सरकार 80 फीसदी करे।

विपक्ष अपनी मांग पर अड़ा है और सरकार को विपक्ष के बहुमत के सामने झुकने के अलावा कोई चारा नहीं है। विपक्ष भूमि अधिग्रहण बिल को राज्यसभा की सेलेक्ट कमेटी को भेजने के पक्ष में है। कांग्रेस का आरोप है कि सरकार ने यूपीए के भूमि अधिग्रहण कानून को लागू ही नहीं किया और तुरंत एक अध्यादेश ले आई। यदि इस कानून के गुण-दोषों का पता ही नहीं चला तो इसमें कैसा संशोधन। यदि यह कानून चार-पांच साल पुराना होता तो शायद यह पता चल सकता था कि यूपीए के कानून से जमीन अधिग्रहण में दिक्कत हो रही है।

विपक्ष बीजेपी को यह भी याद दिला रहा है कि इसी पार्टी ने यूपीए के बिल को पास करने में सरकार के पक्ष में वोट किया था, तो अब साल भर के अंदर ऐसा क्या हो गया कि यह कानून खराब दिखने लगा। विपक्ष सरकार पर उद्योग घरानों के पक्ष में काम करने का आरोप लगा रहा है।

सरकार की दिक्कत यह है कि राज्यसभा में यह बिल पहले से ही मौजूद है, और लोकसभा से पारित बिल को राज्यसभा में लाने के लिए पहले पुराने बिल को वापिस लेना होगा, जो विपक्ष करने नहीं दे रहा। यदि वोटिंग की नौबत आई तो सरकार हार जाएगी। ऐसे में सरकार के पास विकल्प काफी कम हैं, क्योंकि ज्वाइंट सेशन बुलाने के लिए यह जरूरी है कि राज्यसभा भूमि अधिग्रहण बिल को पास न करे, मगर यह भी संभव नहीं हो पा रहा है।

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राज्यसभा में जो बिल है, यदि सरकार उसे वापिस नहीं ले पाती है, तो वह छह महीने में खुद-ब-खुद निष्क्रिय माना जाएगा, और तभी सरकार लोकसभा और राज्यसभा का साझा सत्र बुला पाएगी, यानि सरकार का मौजूदा भूमि अधिग्रहण बिल छह महीने के लिए लटक गया।