
प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
दिल्ली हाइकोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि कॉल ड्रॉप्स पर मोबाइल ऑपरेटरों को हर्जाना देना ही होगा। न्यायालय ने मोबाइल सेवा प्रदाताओं की ओर से दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के उस आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया था, जिसमें कंपनियों को कॉल ड्रॉप पर हर्जाना देने का आदेश दिया गया था।
मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि दूरसंचार ऑपरेटरों को पहले तीन कॉल ड्रॉप्स पर उपभोक्ताओं को हर्जाना देना होगा। ट्राई ने 16 अक्टूबर, 2015 को अपनी हर्जाना नीति की घोषणा की थी, जिसके अनुसार एक दिन में तीन कॉल ड्रॉप्स होने पर मोबाइल उपभोक्ताओं के बैलेंस में एक रुपये जुड़ जाएगा। यह नीति पहली जनवरी, 2016 से प्रभावी है।
ट्राई ने कहा था कि यह नीति नियमित कॉल ड्रॉप्स को देखते हुए बनाई गई। वर्ष 2015 की पहली तिमाही में करीब 25,787 करोड़ ऑउटगोइंग फोन कॉल्स हुए, जिनमें से कॉल ड्रॉप्स की करीब 200 करोड़ शिकायतें मिलीं। ट्राई के मुताबिक, यह कुल फोन कॉल्स का 0.77 प्रतिशत था। इस दौरान सेवा प्रदाताओं ने 36,781 करोड़ रुपये की कमाई की।
मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि दूरसंचार ऑपरेटरों को पहले तीन कॉल ड्रॉप्स पर उपभोक्ताओं को हर्जाना देना होगा। ट्राई ने 16 अक्टूबर, 2015 को अपनी हर्जाना नीति की घोषणा की थी, जिसके अनुसार एक दिन में तीन कॉल ड्रॉप्स होने पर मोबाइल उपभोक्ताओं के बैलेंस में एक रुपये जुड़ जाएगा। यह नीति पहली जनवरी, 2016 से प्रभावी है।
ट्राई ने कहा था कि यह नीति नियमित कॉल ड्रॉप्स को देखते हुए बनाई गई। वर्ष 2015 की पहली तिमाही में करीब 25,787 करोड़ ऑउटगोइंग फोन कॉल्स हुए, जिनमें से कॉल ड्रॉप्स की करीब 200 करोड़ शिकायतें मिलीं। ट्राई के मुताबिक, यह कुल फोन कॉल्स का 0.77 प्रतिशत था। इस दौरान सेवा प्रदाताओं ने 36,781 करोड़ रुपये की कमाई की।
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