पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
नई दिल्ली:
कर्नाटक का समर अपने शबाब पर है. राज्य में 12 मई को होने वाले चुनाव के लिए सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. पीएम मोदी भी रण में उतर चुके हैं. हों भी क्यों न...कर्नाटक को वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों का अहम पड़ाव जो माना जा रहा है. कर्नाटक ऐसा राज्य है जिसके रण में तमाम सूरमा अपने भाग्य आजमा चुके हैं. आज हम आपको ऐसे ही एक किस्से के बारे में बता रहे हैं जिसमें सिर्फ एक 'नारे' ने पूरी चुनावी तस्वीर बदल थी.
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'एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमगलूर-चिकमगलूर' :
राजनीति में 'नारों' की अहम भूमिका होती है और कई बार ये निर्णायक साबित होते हैं. ऐसा ही एक नारा देश की राजनीति में वर्ष 1978 के उपचुनावों में आया था और बहुत चर्चित हुआ. वह नारा था 'एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमगलूर-चिकमगलूर'. यह नारा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए गढ़ा गया था. वह उप चुनाव में कर्नाटक के चिकमगलूर से पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल के खिलाफ उम्मीदवार थीं. वह दौर इमरजेंसी के तत्काल बाद का था और इंदिरा गांधी के खिलाफ चौतरफा विरोध की लहर थी. ऐसे में इंदिरा गांधी के लिए एक सुरक्षित सीट तलाशी जा रही थी और चिकमगलूर पर जाकर वह तलाश खत्म हुई. इस सीट पर पहले से ही कांग्रेस का कब्जा था और चंद्र गौड़ा प्रतिनिधित्व कर रहे थे. उन्होंने इंदिरा गांधी के लिए सीट छोड़ दी.
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लड़ाई काफी कठिन थी और जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन इंदिरा गांधी हर हाल में जीतना चाहती थीं. ऐसे में पार्टी की तरफ से रणनीति तैयार की गई. एक ऐसे नारे की जरूरत महसूस की गई जो इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व को तो दर्शाता ही हो. साथ ही विरोधियों का मनोबल तोड़ सके. इसी जरूरत से 'एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर-चिकमंगलूर' नारे का जन्म हुआ. उस चुनाव में इंदिरा गांधी ने हर दिन 17-18 घंटे प्रचार किया और अंतत: उन्होंने 77 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में इंदिरा गांधी के खिलाफ लड़ रहे 26 उम्मीदवारों की तो जमानत जब्त हो गई थी.
किसने गढ़ा था यह नारा :
राजनीति में इंदिरा गांधी की वापसी के लिए जिस 'नारे' ने जमीन तैयार की थी उसे दक्षिण भारत के कांग्रेसी नेता देवराज उर्स ने लिखा था. इस नारे का सिर्फ कर्नाटक ही नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति पर अहम प्रभाव पड़ा और कांग्रेस को इसका फायदा मिला. धीरे-धीरे कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की.
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वर्ष 1996 तक चिकमगलूर पर रहा कांग्रेस का कब्जा :
चिकमगलूर के उप चुनावों में जीत के बाद यह एक तरीके से कांग्रेस का गढ़ बन गया और करीब 18 वर्षों तक लगातार इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. 1996 के चुनावों में कांग्रेस का यह किला दरका और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. यह सीट जनता दल के खाते में गई. उसके बाद वर्ष 1998, 1999, 2004 और 2009 में यह सीट भाजपा के खाते में गई. हालांकि 2012 के उप चुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर जीत दर्ज की, लेकिन 2014 के चुनावों में फिर भाजपा ने अपना कब्जा जमा लिया.
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'एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमगलूर-चिकमगलूर' :
राजनीति में 'नारों' की अहम भूमिका होती है और कई बार ये निर्णायक साबित होते हैं. ऐसा ही एक नारा देश की राजनीति में वर्ष 1978 के उपचुनावों में आया था और बहुत चर्चित हुआ. वह नारा था 'एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमगलूर-चिकमगलूर'. यह नारा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए गढ़ा गया था. वह उप चुनाव में कर्नाटक के चिकमगलूर से पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल के खिलाफ उम्मीदवार थीं. वह दौर इमरजेंसी के तत्काल बाद का था और इंदिरा गांधी के खिलाफ चौतरफा विरोध की लहर थी. ऐसे में इंदिरा गांधी के लिए एक सुरक्षित सीट तलाशी जा रही थी और चिकमगलूर पर जाकर वह तलाश खत्म हुई. इस सीट पर पहले से ही कांग्रेस का कब्जा था और चंद्र गौड़ा प्रतिनिधित्व कर रहे थे. उन्होंने इंदिरा गांधी के लिए सीट छोड़ दी.
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लड़ाई काफी कठिन थी और जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन इंदिरा गांधी हर हाल में जीतना चाहती थीं. ऐसे में पार्टी की तरफ से रणनीति तैयार की गई. एक ऐसे नारे की जरूरत महसूस की गई जो इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व को तो दर्शाता ही हो. साथ ही विरोधियों का मनोबल तोड़ सके. इसी जरूरत से 'एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर-चिकमंगलूर' नारे का जन्म हुआ. उस चुनाव में इंदिरा गांधी ने हर दिन 17-18 घंटे प्रचार किया और अंतत: उन्होंने 77 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में इंदिरा गांधी के खिलाफ लड़ रहे 26 उम्मीदवारों की तो जमानत जब्त हो गई थी.
किसने गढ़ा था यह नारा :
राजनीति में इंदिरा गांधी की वापसी के लिए जिस 'नारे' ने जमीन तैयार की थी उसे दक्षिण भारत के कांग्रेसी नेता देवराज उर्स ने लिखा था. इस नारे का सिर्फ कर्नाटक ही नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति पर अहम प्रभाव पड़ा और कांग्रेस को इसका फायदा मिला. धीरे-धीरे कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की.
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वर्ष 1996 तक चिकमगलूर पर रहा कांग्रेस का कब्जा :
चिकमगलूर के उप चुनावों में जीत के बाद यह एक तरीके से कांग्रेस का गढ़ बन गया और करीब 18 वर्षों तक लगातार इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. 1996 के चुनावों में कांग्रेस का यह किला दरका और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. यह सीट जनता दल के खाते में गई. उसके बाद वर्ष 1998, 1999, 2004 और 2009 में यह सीट भाजपा के खाते में गई. हालांकि 2012 के उप चुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर जीत दर्ज की, लेकिन 2014 के चुनावों में फिर भाजपा ने अपना कब्जा जमा लिया.
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