लालू यादव के दो बेटों में राजनीतिक कौशल रखने वाले, तेजस्वी यादव (Tejashvi Yadav) पहली बार जनता की नजरों में वर्ष 2015 में पहली बार आए थे, जब उन्होंने नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के साथ गठबंधन सरकार में उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. लेकिन वह 2019 के चुनाव में फेल रहे. क्या इस बार कुछ अलग होगा ? तेजस्वी यादव भले ही तीन बड़े विपक्षी दलों की नुमाइंदगी वाले महा गठबंधन की अगुवाई कर रहे हों. लेकिन राजद नेता तेजस्वी के पास उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी नीतीश कुमार की तरह हथियार नहीं हैं.
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नीतीश के साथ भाजपा की पूरी ताकत और मशीनरी है- इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसी बड़ी ताकत, उनके मंत्रिमंडल के अहम सहयोगी और योगी आदित्यनाथ प्रमुख हैं- इससे उलट तेजस्वी का प्रचार तंत्र वन मैन शो की तरह है. स्टार प्रचारकों और पिता के साथ करिश्माई नेता लालू प्रसाद यादव की गैर मौजूदगी में 31 साल के तेजस्वी एक सहज और अनुभवी राजनेता बनकर उभरे हैं, जिन्होंने अघोषित तौर पर राजद में लालू का उत्तराधिकारी माना गया है.
जनता के बीच जाकर बात करने की कला
पीएम मोदी से अलग चुनावी रैलियों में उन्हें अचानक भीड़ के बीच लोगों से बात करते देखा जाता है. जब वह जनता के बीच सवाल दागते हैं कि नौकरी चाहिए तो भीड़ की हुंकार सुनाई पड़ती है. फिर वह तफ्सील से बताते हैं कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो किस तरह पहली कैबिनेट बैठक में दस लाख नौकरियों के आदेश पर हस्ताक्षर करेंगे. उन्होंने सितंबर में चुनाव के काफी पहले ही इसकी घोषणा कर दी थी. लेकिन एनडीए के नेताओं को अब यह अहसास हुआ है कि आर्थिक संकट के बीच जनता में इस वादे का कितना गहरा असर पड़ा है. हालांकि खुले तौर पर एनडीए के नेता यही कह रहे हैं कि तेजस्वी को 2019 के राष्ट्रीय चुनाव से ज्यादा वोट हासिल नहीं होंगे.
हाजिरजवाबी के लिए मशहूर
तेजस्वी 2015 में डिप्टी सीएम बनते वक्त चर्चा में आए थे, जब नीतीश ने राजद के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी. लेकिन 2017 में नीतीश ने फिर पाला बदल लिया और राजद विपक्ष में खिसक गया.तेजस्वी ने 2018 में उस वक्त कमान संभाली जब लालू यादव की भ्रष्टाचार के मामल में गिरफ्तारी हो गई. अपनी हाजिरजवाबी से तेजस्वी ने जल्द ही सियासी पैठ मजबूत कर ली. वहीं उनके लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप अलग-अलग पोशाकों और पत्नी के साथ विवादों के कारण सुर्खियों में रहे.
2019 के आम चुनाव में करारी हार
हालांकि अपनी मुखर आवाज और टीवी पंडितों की उम्मीदों के विपरीत तेजस्वी यादव 2019 के आम चुनाव में बुरी तरह फ्लॉप रहे. राज्य की 40 लोकसभा सीटों में उन्हें एक भी हासिल नहीं हो सकी. वह करीब एक महीने तक राजनीतिक परिदृश्य से गायब रहे और फिर जून में सामने आए. उसके बाद से तेजस्वी ने धीरे-धीरे "चाचा" नीतीश कुमार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.
रैलियों में जुट रही भारी भीड़
तेजस्वी की रैलियों में इस बार लगातार भारी भीड़ जुट रही है. इस चुनाव में तेजस्वी के करीबियों का कहना है कि इस बार वह हर चीज पर खुद बारीकी से नजर रख रहे हैं. जीतन राम मांजी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश मल्लाह को गठबंधन से बाहर जाने देना, उनका सोचा-समझा कदम था. उन्हें अहसास हो गया था कि इन दलों का वोट राजद की अगुवाई वाले गठबंधन को ट्रांसफर नहीं हो रहा. अगर वे अलग-अलग लड़ते हैं तो एनडीए के पारंपरिक वोट बैंक में ही सेंध लगाएंगे.
सोच समझकर वाम दलों से हाथ मिलाया
सर्वे और फीडबैक के आधार पर तेजस्वी ने वाम दलों से हाथ मिलाया, जो मध्य बिहार में उनकी पार्टी के उम्मीदवारों की मदद कर सकते हैं. हालांकि कांग्रेस के साथ उनके गठबंधन में खामियां रहीं. उन्हें आगे जाकर कांग्रेस को 70 सीटें देना स्वीकार किया, कथित तौर पर प्रियंका गांधी के दखल के बाद.
विरोधियों को किया मजबूर
उन्होंने राजद के पोस्टरों से अपने माता-पिता की तस्वीरें भी हटा दीं, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे. एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने माना है कि अब वे 10 से 15 मिनट तक वोटरों का लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के शासनकाल की याद दिलाते हैं, खासकर युवा वोटरों को उन दिनों के बारे में बताते हैं. यहां तक कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अपने भाषणों में जंगलराज शब्द का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
नीतीश को खुली बहस की चुनौती
अपनी बुद्धि और वाकशैली पर भरोसा रखने वाले तेजस्वी हर वक्त नीतीश को खुली बहस की चुनौती देते हैं. वह नौवीं कक्षा तक उनकी शिक्षा और 2019 की करारी हार तक के सवालों का सधा जवाब देते हैं. तेजस्वी एक दिन में 12 रैलियां तक कर रहे हैं.विरोधी दल के अनुभवहीन और अपरिपक्व जैसे तमगों पर तेजस्वी पूछते हैं कि तो फिर नीतीश ने 2015 में उन्हें उप मुख्यमंत्री क्यों बनाया था. माता-पिता पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर तेजस्वी तपाक से बोलते हैं कि कोई भी नीतीश सरकार में मंत्री रहने के दौरान उनके विभाग में कोई गड़बड़ी हुई हो तो बताए.
दागियों को टिकट देने पर दी सफाई
रैलियों और मीडिया से बातचीत में तेजस्वी लगातार कह रहे हैं कि नीतीश कुमार मानसिक और शारीरिक रूप से थक चुके हैं. इसका जवाब भी नीतीश को देना पड़ा है.अनंत सिंह जैसे बाहुबली और दुष्कर्म के आरोपियों को टिकट देने के सवाल पर तेजस्वी कहते हैं कि आरोपों पर कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाना चाहिए. वो नीतीश कुमार की पार्टी से ऐसे लोगों को टिकट मिलने पर भी सवाल उठाते हैं.
ऐसा राज्य जहां सब कुछ जाति और वोटिंग पैटर्न एमवाई जैसे समीकरणों के आधार पर तय होता रहा हो, यह चुनाव तय करेगा कि भीड़ के साथ अपने कनेक्शन को तेजस्वी किस तरह वोटों में तब्दील कर पाते हैं और क्या रोजगार देने और आर्थिक स्थिति सुधारने के उनके चुनावी वादों को लगातार धार देने का मतदाताओं पर भी असर पड़ता है.
हालांकि परिणाम चाहे कुछ भी हों, कटु आलोचक भी निजी तौर पर यह मानने लगे हैं कि बिना रुके इस धुआंधार प्रचार के जरिये तेजस्वी 2015 में कहीं भी न होने से 2019 में कुछ करने की स्थिति से 2020 में सबके बीच तक पहुंच चुके हैं. वह बिहार की राजनीति में लंबा टिकने वाले हैं.
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