
लड़ाकू विमान तेजस (फाइल फोटो)
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रक्षा मंत्री और वायुसेना प्रमुख कार्यक्रम में शिरकत नहीं करेंगे
सुखोई या रफाल से नहीं की जा सकती तुलना
स्क्वॉड्रन का नाम 'फ्लाइंग डैगर' यानि 'उड़ती हुई कटार'
दो लड़ाकू विमानों के साथ वायुसेना का एक स्क्वॉड्रन
गौरतलब है कि 33 साल बाद लाइट कॉम्बेट एयरकाफ्ट यानि कि एलसीए एक जुलाई को दो विमान के साथ वायुसेना में शामिल होने जा रहा है। यह पहली बार होगा कि दो लड़ाकू विमानों के साथ वायुसेना का एक स्क्वॉड्रन तैयार हो रहा है। हालांकि बाद में अगले मार्च तक इस बेड़े में छह और तेजस शामिल हो जाएंगे। फिर भी पूरा स्क्वॉड्रन तैयार नहीं होगा। इसके लिए कम से कम 16 से 18 लड़ाकू विमान चाहिए। ऐसा होने में कम से कम दो साल तो लग ही जाएंगे। बात यहीं नहीं खत्म होती है। अभी तक तेजस को उड़ान के लिए इनसियल ऑपरेशनल क्लियरेन्स यानि आईओसी ही मिली है। अभी फाइनल ऑपरेशनल क्लियरेन्स यानि कि एफओसी मिलने में देर है, शायद इस साल के अंत तक मिल जाए। यह वह पैमाना होता है जिसके पूरा करने पर ही लड़ाकू विमान लड़ाई के लिए फिट माना जाता है। भले ही वायुसेना प्रमुख अरुप राहा खुद 17 मई को इस पर उड़ान भर चुके हैं और इसे एक बढ़िया लड़ाकू विमान करार दे चुके हैं लेकिन वायुसेना के दिमाग में हिचक या शंका तो जरूर बनी हुई है। यही वजह है कि वायुसेना में शामिल होने जा रहे कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दक्षिण वायुसेन कमांड के प्रमुख एयर मार्शल जसबीर वालिया होंगे।
'मारुति की कीमत पर मर्सीडीज की क्षमता की उम्मीद'
बावजूद वायुसेना की अनदेखी के इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि तेजस इतना भी गया गुजरा नहीं है कि इसको तवज्जो न दिया जाए। इतने बड़े दिन को इतना छोटा बना दिया जाए। तेजस को बनाने वाली हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड के एक अधिकारी ने कहा कि आप मारुति की कीमत पर मर्सीडीज की क्षमता की उम्मीद नहीं कर सकते। एक तेजस की कीमत आएगी करीब 250 करोड़ रुपए। आप मिग-21 की जगह पर तेजस को शामिल कर रहे हैं और आप इसकी तुलना सुखोई से लेकर रफाल से कर रहे हैं? यह कैसे हो सकता है। आप वक्त दीजिए। बेशक इस विमान में कुछ दिक्कत हैं लेकिन धीरे-धीरे वह दूर कर ली जाएंगी। इसके लिए जरूरी है कि आप इसे दिल से अपनाएं।
ध्यान रहे कि जब पहली बार देश से बाहर तेजस ने बहरीन एयर शो में उड़ान भरी तो दुनियाभर के लोगों ने दांतों तले उंगली दबा ली थी। हालांकि वायुसेना ने इस स्क्वॉड्रन का नाम तो फ्लाइंग डैगर रखा है यानि 'उड़ती हुई कटार' लेकिन लगता है कि जब कटार की धार तीखी नहीं होगी तब तक वायुसेना इसे दिल से नहीं अपनाएगी।
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