सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर से न्यायिक मतभेद का मामला सामने आया है. सुप्रीम कोर्ट ने तीन जजों की बेंच द्वारा तीन जजों के बेंच के ही आदेश को ओवररूल करने पर चिंता जताई. बेंच ने इशारा किया कि जमीन अधिग्रहण के इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाएगा. सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने देश के सभी हाईकोर्ट से आग्रह किया है कि फिलहाल वो जमीन अधिग्रहण मामले में उचित मुआवजे को लेकर कोई भी फैसला ना सुनाए. सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की बेंच के सामने लगे मामलों की सुनवाई भी टाली गई.
जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस कूरियन जोसफ और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने कहा कि वो आठ फरवरी के जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस ए के गोयल और जस्टिस एम एम शांतनागौदर की बेंच के फैसले से सहमत नहीं हैं. जस्टिस कूरियन जोसफ ने कहा कि बेंच जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच के फैसले की योग्यता पर नहीं जा रही है. हमारी चिंता न्यायिक अनुशासन को लेकर है.
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उन्होंने कहा कि जब एक बार तीन जजों की बेंच ने कोई फैसला दिया तो उसे सही करने के लिए चीफ जस्टिस से बड़ी बेंच बनाने का आग्रह किया जा सकता है. इस महान संस्था यानी कि सुप्रीम कोर्ट के सद्धांत से अलग नहीं जा सकते. अगर कोई फैसला गलत है तो उसे ठीक करने के लिए बडी बेंच बनाई जाती है और इस अभ्यास में वर्षों से पालन किया जाता है. अगर सुप्रीम कोर्ट एक है तो इसे एक बनाया भी जाना चाहिए और इसके लिए सचेत न्यायिक अनुशासन की आवश्यकता है. हमारी चिंता यह है कि न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा बेंच में न्यायिक अनुशासन का पालन नहीं किया गया.
जस्टिस लोकुर ने भी चिंता का भी समर्थन किया और कहा कि अगर पुराने फैसले को सही किया जाना था तो बड़ी बेंच ही इसके लिए सही तरीका है.
दरअसल 8 फरवरी को इंदौर विकास प्राधिकरण मामले में जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की बेंच ने यह आदेश दिया था कि जमीन अधिग्रहण के मामले में 2013 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 31 (1) के तहत अगर एक बार मुआवजे की राशि को बिना शर्त भुगतान किया गया है और जमीन मालिक द्वारा इसे अस्वीकार कर दिया गया है तो भी उसे भुगतान माना जाएगा. बेंच ने जमीन पर इंदौर विकास प्राधिकरण की भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को बरकरार रखा था. इस फैसले ने पहले के तीन जजों के फैसले को पलट दिया.
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हालांकि इससे पहले तीन जजों की एक अन्य बेंच ने पुणे नगर निगम द्वारा भूमि अधिग्रहण को इस आधार पर अलग रखा था क्योंकि जमीन के मालिकों ने मुआवजा नहीं लिया था. बुधवार को सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि इस फैसले से पूरे देश में अराजकता हुई है. नतीजतन उच्च न्यायालयों और इस अदालत द्वारा कई फैसले दिए जा रहे हैं, जो कि जमीन मालिकों के अधिकारों को प्रभावित करते हैं. उन्होंने बताया कि इससे पिछले कुछ सालों में तय हुए इस अदालत के कम से कम 5000 फैसलों को वापस लेना होगा और उनकी समीक्षा की जाएगी. यहां एक ही जैसे मामले में दो विरोधाभासी फैसले आए हैं. अब बेंच ने 7 मार्च को सुनवाई की अगली तारीख तय की है.
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जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस कूरियन जोसफ और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने कहा कि वो आठ फरवरी के जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस ए के गोयल और जस्टिस एम एम शांतनागौदर की बेंच के फैसले से सहमत नहीं हैं. जस्टिस कूरियन जोसफ ने कहा कि बेंच जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच के फैसले की योग्यता पर नहीं जा रही है. हमारी चिंता न्यायिक अनुशासन को लेकर है.
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उन्होंने कहा कि जब एक बार तीन जजों की बेंच ने कोई फैसला दिया तो उसे सही करने के लिए चीफ जस्टिस से बड़ी बेंच बनाने का आग्रह किया जा सकता है. इस महान संस्था यानी कि सुप्रीम कोर्ट के सद्धांत से अलग नहीं जा सकते. अगर कोई फैसला गलत है तो उसे ठीक करने के लिए बडी बेंच बनाई जाती है और इस अभ्यास में वर्षों से पालन किया जाता है. अगर सुप्रीम कोर्ट एक है तो इसे एक बनाया भी जाना चाहिए और इसके लिए सचेत न्यायिक अनुशासन की आवश्यकता है. हमारी चिंता यह है कि न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा बेंच में न्यायिक अनुशासन का पालन नहीं किया गया.
जस्टिस लोकुर ने भी चिंता का भी समर्थन किया और कहा कि अगर पुराने फैसले को सही किया जाना था तो बड़ी बेंच ही इसके लिए सही तरीका है.
दरअसल 8 फरवरी को इंदौर विकास प्राधिकरण मामले में जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की बेंच ने यह आदेश दिया था कि जमीन अधिग्रहण के मामले में 2013 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 31 (1) के तहत अगर एक बार मुआवजे की राशि को बिना शर्त भुगतान किया गया है और जमीन मालिक द्वारा इसे अस्वीकार कर दिया गया है तो भी उसे भुगतान माना जाएगा. बेंच ने जमीन पर इंदौर विकास प्राधिकरण की भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को बरकरार रखा था. इस फैसले ने पहले के तीन जजों के फैसले को पलट दिया.
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हालांकि इससे पहले तीन जजों की एक अन्य बेंच ने पुणे नगर निगम द्वारा भूमि अधिग्रहण को इस आधार पर अलग रखा था क्योंकि जमीन के मालिकों ने मुआवजा नहीं लिया था. बुधवार को सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि इस फैसले से पूरे देश में अराजकता हुई है. नतीजतन उच्च न्यायालयों और इस अदालत द्वारा कई फैसले दिए जा रहे हैं, जो कि जमीन मालिकों के अधिकारों को प्रभावित करते हैं. उन्होंने बताया कि इससे पिछले कुछ सालों में तय हुए इस अदालत के कम से कम 5000 फैसलों को वापस लेना होगा और उनकी समीक्षा की जाएगी. यहां एक ही जैसे मामले में दो विरोधाभासी फैसले आए हैं. अब बेंच ने 7 मार्च को सुनवाई की अगली तारीख तय की है.
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