जज लोया (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
सीबीआई जज बीएच लोया की मौत के मामले में स्वतंत्र जांज की जाए या नहीं, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी की जांच वाली मांग की याचिका को ठुकरा दिया. साथ ही याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका में कोई दम नहीं है. कोर्ट ने इस याचिका में कोई तर्क नहीं पाया है. यही वजह है कि इस स्वतंत्र जांच वाली याचिका कोर्ट ने खारिज कर दिया. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने फैसला सुनाया है. बता दें कि कोर्ट को तय करना था कि लोया की मौत की जांच SIT से कराई जाए या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों के बयान पर हम संदेह नहीं कर सकते. कोर्च ने कहा कि राजनीतिक लड़ाई मैदान में की जानी चाहिए, कोर्ट में नहीं. कोर्ट ने माना है कि जज लोया की मौत प्राकृतिक है. कोर्ट ने कहा कि जनहित याचिका का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए.
SC ने फैसले में कहा...
पहले क्या कहा था कोर्ट ने
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये मामला गंभीर है और एक जज की मौत हुई है. मामले को गंभीरता से देख रहे हैं और तथ्यों को समझ रहे हैं. अगर इस दौरान अगर कोई संदिग्ध तथ्य आया तो कोर्ट इस मामले की जांच के आदेश देगा. सुप्रीम कोर्ट के लिए ये बाध्यकारी है. हम इस मामले में लोकस पर नहीं जा रहे हैं. चीफ जस्टिस ने दोहराया कि पहले ही कह चुके हैं कि मामले को गंभीरता से ले रहे हैं.
महाराष्ट्र सरकार ने किया था विरोध
सीबीआई जज बीएच लोया की मौत की स्वतंत्र जांच को लेकर दाखिल याचिका पर महाराष्ट्र सरकार मे जांच का पुरजोर विरोध किया था. महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को जजों को सरंक्षण देना चाहिए. ये कोई आम पर्यावरण का मामला नहीं है जिसकी जांच के आदेश या नोटिस जारी किया गया हो. ये हत्या का मामला है और क्या इस मामले में चार जजों से संदिग्ध की तरह पूछताछ की जाएगी. ऐसे में वो लोग क्या सोचेंगे जिनके मामलों का फैसला इन जजों ने किया है. सुप्रीम कोर्ट को निचली अदालतों के जजों को सरंक्षण देना चाहिए.
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये याचिका न्यायपालिका को सकेंडलाइज करने के लिए की गई है. ये राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश है। सिर्फ इसलिए कि सत्तारूढ पार्टी के अध्यक्ष हैं, आरोप लगाए जा रहे हैं, प्रेस कांफ्रेस की जा रही है. अमित शाह के आपराधिक मामले में आरोपमुक्त करने को इस मौत से लिंक किया जा रहा है. उनकी मौत के पीछे कोई रहस्य नहीं है. इसकी आगे जांच की कोई जरूरत नहीं है.
लोया की मौत 30 नवंबर 2014 की रात को हुई और तीन साल तक किसी ने इस पर उंगली नहीं उठाई. ये सारे सवाल कारवां की नवंबर 2017 की खबर के बाद उठाए गए जबकि याचिकाकर्ताओं ने इसके तथ्यों की सत्यता की जांच नहीं की 29 नवंबर से ही लोया के साथ मौजूद चार जजों ने अपने बयान दिए हैं और वो उनकी मौत के वक्त भी साथ थे. उन्होंने शव को एंबुलेंस के जरिए लातूर भेजा था. पुलिस रिपोर्ट में जिन चार जजों के नाम हैं उनके बयान पर भरोसा नहीं करने की कोई वजह नहीं है. इनके बयान पर भरोसा करना होगा।अगर कोर्ट इनके बयान पर विश्वास नहीं करती और जांच का आदेश देती है तो इन चारों जजों को सह साजिशकर्ता बनाना पड़ेगा. जज की मौत दिल के दौरे से हुई और 4 जजों के बयानों पर भरोसा ना करने की कोई वजह नहीं है. याचिका को भारी जुर्माने के साथ खारिज किया जाए.
कौन हैं याचिकाकर्ता
कांग्रेसी नेता तहसीन पूनावाला , महाराष्ट्र के पत्रकार बीएस लोने , बांबे लॉयर्स एसोसिएशन सहित अन्य द्वारा विशेष जज बीएच लोया की मौत की निष्पक्ष जांच की मांग वाली याचिकाएं दाखिल की गईं.
क्या है केस ?
VIDEO: सुप्रीम कोर्ट ने SIT जांच की मांग वाली याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों के बयान पर हम संदेह नहीं कर सकते. कोर्च ने कहा कि राजनीतिक लड़ाई मैदान में की जानी चाहिए, कोर्ट में नहीं. कोर्ट ने माना है कि जज लोया की मौत प्राकृतिक है. कोर्ट ने कहा कि जनहित याचिका का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए.
SC ने फैसले में कहा...
- जस्टिस लोया की मौत प्राकृतिक थी.
- सुप्रीम कोर्ट ने PIL के दुरुपयोग की आलोचना की.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा, PIL का दुरुपयोग चिंता का विषय.
- याचिकाकर्ता का उद्देश्य जजों को बदनाम करना है.
- यह न्यायपालिका पर सीधा हमला है.
- राजनैतिक प्रतिद्वंद्विताओं को लोकतंत्र के सदन में ही सुलझाना होगा.
- PIL शरारतपूर्ण उद्देश्य से दाखिल की गई, यह आपराधिक अवमानना है.
- हम उन न्यायिक अधिकारियों के बयानों पर संदेह नहीं कर सकते, जो जज लोया के साथ थे.
- ये याचिका आपराधिक अवमानना के समान
- ये याचिका सैंकेंडलस और आपराधिक अवमानना के समान, लेकिन हम कोई कार्रवाई नहीं कर रहे.
- याचिकाकर्ताओं ने याचिका के जरिए जजों की छवि खराब करने का प्रयास किया.
- ये सीधे सीधे न्यायपालिका पर हमला.
- जनहित याचिकाएं जरूरी लेकिन इसका दुरुपयोग चिंताजनक.
- कोर्ट कानून के शासन के सरंक्षण के लिए है.
- जनहित याचिकाओं का इस्तेमाल एजेंडा वाले लोग कर रहे हैं.
- याचिका के पीछे असली चेहरा कौन है पता नहीं चलता.
- तुच्छ और मोटिवेटिड जनहित याचिकाओं से कोर्ट का वक्त खराब होता है.
- हमारे पास लोगों की निजी स्वतंत्रता से जुड़े बहुत केस लंबित हैं.
पहले क्या कहा था कोर्ट ने
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये मामला गंभीर है और एक जज की मौत हुई है. मामले को गंभीरता से देख रहे हैं और तथ्यों को समझ रहे हैं. अगर इस दौरान अगर कोई संदिग्ध तथ्य आया तो कोर्ट इस मामले की जांच के आदेश देगा. सुप्रीम कोर्ट के लिए ये बाध्यकारी है. हम इस मामले में लोकस पर नहीं जा रहे हैं. चीफ जस्टिस ने दोहराया कि पहले ही कह चुके हैं कि मामले को गंभीरता से ले रहे हैं.
महाराष्ट्र सरकार ने किया था विरोध
सीबीआई जज बीएच लोया की मौत की स्वतंत्र जांच को लेकर दाखिल याचिका पर महाराष्ट्र सरकार मे जांच का पुरजोर विरोध किया था. महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को जजों को सरंक्षण देना चाहिए. ये कोई आम पर्यावरण का मामला नहीं है जिसकी जांच के आदेश या नोटिस जारी किया गया हो. ये हत्या का मामला है और क्या इस मामले में चार जजों से संदिग्ध की तरह पूछताछ की जाएगी. ऐसे में वो लोग क्या सोचेंगे जिनके मामलों का फैसला इन जजों ने किया है. सुप्रीम कोर्ट को निचली अदालतों के जजों को सरंक्षण देना चाहिए.
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये याचिका न्यायपालिका को सकेंडलाइज करने के लिए की गई है. ये राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश है। सिर्फ इसलिए कि सत्तारूढ पार्टी के अध्यक्ष हैं, आरोप लगाए जा रहे हैं, प्रेस कांफ्रेस की जा रही है. अमित शाह के आपराधिक मामले में आरोपमुक्त करने को इस मौत से लिंक किया जा रहा है. उनकी मौत के पीछे कोई रहस्य नहीं है. इसकी आगे जांच की कोई जरूरत नहीं है.
लोया की मौत 30 नवंबर 2014 की रात को हुई और तीन साल तक किसी ने इस पर उंगली नहीं उठाई. ये सारे सवाल कारवां की नवंबर 2017 की खबर के बाद उठाए गए जबकि याचिकाकर्ताओं ने इसके तथ्यों की सत्यता की जांच नहीं की 29 नवंबर से ही लोया के साथ मौजूद चार जजों ने अपने बयान दिए हैं और वो उनकी मौत के वक्त भी साथ थे. उन्होंने शव को एंबुलेंस के जरिए लातूर भेजा था. पुलिस रिपोर्ट में जिन चार जजों के नाम हैं उनके बयान पर भरोसा नहीं करने की कोई वजह नहीं है. इनके बयान पर भरोसा करना होगा।अगर कोर्ट इनके बयान पर विश्वास नहीं करती और जांच का आदेश देती है तो इन चारों जजों को सह साजिशकर्ता बनाना पड़ेगा. जज की मौत दिल के दौरे से हुई और 4 जजों के बयानों पर भरोसा ना करने की कोई वजह नहीं है. याचिका को भारी जुर्माने के साथ खारिज किया जाए.
कौन हैं याचिकाकर्ता
कांग्रेसी नेता तहसीन पूनावाला , महाराष्ट्र के पत्रकार बीएस लोने , बांबे लॉयर्स एसोसिएशन सहित अन्य द्वारा विशेष जज बीएच लोया की मौत की निष्पक्ष जांच की मांग वाली याचिकाएं दाखिल की गईं.
क्या है केस ?
- दरअसल 2005 में सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी कौसर बी को गुजरात पुलिस ने हैदराबाद से अगवा किया. आरोप लगाया गया कि दोनों को फर्जी मुठभेड में मार डाला गया.
- शेख के साथी तुलसीराम प्रजापति को भी 2006 में गुजरात पुलिस द्वारा मार डाला गया. उसे सोहराबुद्दीन मुठभेड का गवाह माना जा रहा था.
- 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल को महाराष्ट्र में ट्रांसफर कर दिया और 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रजापति और शेख के केस को एक साथ जोड़ दिया.
- शुरुआत में जज जेटी उत्पत केस की सुनवाई कर रहे थे लेकिन आरोपी अमित शाह के पेश ना होने पर नाराजगी जाहिर करने पर अचानक उनका तबादला कर दिया गया.
- फिर केस की सुनवाई जज बी एच लोया ने की और 1 दिसंबर 2014 में नागपुर में उनकी मौत हो गई। उस वक्त वो एक सहयोगी की बेटी की शादी में शामिल होने नागपुर गए थे और चार अन्य जजों के साथ नागपुर के रवि भवन में ठहरे थे.
- बाद में अमित शाह को इस केस से आरोपमुक्त कर दिया गया.
VIDEO: सुप्रीम कोर्ट ने SIT जांच की मांग वाली याचिका खारिज की
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