नई दिल्ली:
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि ये संभव नहीं है कि आपत्तिजनक लिंग परीक्षण संबंधित सारे विज्ञापनों की निगरानी सरकारी अधिकारी कर सकें. केंद्र सरकार ने कहा कि इंटरनेट का दायरा बहुत बड़ा है. इसकी निगरानी कर पाना संभव नहीं है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि फरवरी 18-26 के बीच के सात शिकायतें मिली हैं, जिनको वेबसाइट के पास भेज दिया है, ताकि वह इस पर कार्रवाई कर सके.
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वहीं माइक्रोसॉफ्ट की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि अभी तक आपत्तिजनक लिंग परीक्षण संबंधित विज्ञापन को लेकर उनके पास कोई शिकायत नहीं आई है. वहीं गूगल की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि जो भी आपत्तिजनक कंटेंट के बारे में उनको शिकायत मिली है उस पर उन्होंने कार्रवाई की है और उसे साइट से हटा लिया गया है.
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वहीं सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नोडल एजेंसी के बारे में सुझाव मांगे हैं कि वह साइट्स पर आपत्तिजनक लिंग परीक्षण सम्बंधित विज्ञापन को रोकने के लिए और क्या प्रभावी कदम उठा सकती है. सुप्रीम कोर्ट 24 नवंबर को मामले की अगली सुनवाई करेगा.
वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण से संबंधित विज्ञापनों का मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम सुनवाई की है. सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि कि ऐसे विज्ञापन ब्लॉक करने से क्या राइट टू इंफोरमेशन यानी सूचना प्राप्त करने के अधिकार का हनन होता है? हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जानकारी प्राप्त करना, बुद्धिमता और सूचना प्राप्त करना सभी का अधिकार है लेकिन ये भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इससे देश के किसी कानून का उल्लंघन ना होता हो. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सर्च इंजन गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को लिंग परीक्षण संबंधी जानकारियों को डिलीट करने के लिए अंदरूनी एक्सपर्ट कमेटी नियुक्त करने के आदेश दिए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने इन कंपनियों को कहा कि आपको देश के कानून का सम्मान और पालन करना होगा जो लिंग संबंधी परीक्षण पर रोक लगाता है. आप किसी देश के कानून का उल्लंघन नहीं कर सकते, आपको कानून के प्रति जवाबदेह होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इन मेटेरियल पर नजर रखने के लिए बनाई नोडल एजेंसी पर मुहर लगाई थी और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र एक हफ्ते के भीतर इस नोडल एजेंसी के बारे में प्रचार कर लोगों को जानकारी दें.
वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण से संबंधित विज्ञापनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हो रही है. पहले सुनवाई में आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट कहा था कि सर्च इंजन गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण पर दिए गए विज्ञापन 36 घंटे में डिलीट करने के आदेश दिए थे.
कोर्ट ने केंद्र को ऐसे विज्ञापनों की शिकायत दर्ज करने के लिए नोडल एजेंसी का गठन करने का आदेश भी दिया. यह एजेंसी शिकायतों को सर्च इंजनों को देगी और फिर सर्च इंजन ऐसी सूचनाओं और विज्ञापनों को 36 घंटे में हटाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ये भी तय करेगा कि क्या ये बैन सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे विज्ञापनों पर कड़ी नाराजगी जाहिर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे हालात हो गए हैं कि लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल रही हैं. लड़का कैसे होगा और लड़की कैसे होगी? ऐसी जानकारी की देश में कोई जरूरत नहीं. हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि वेबसाइट पैसा कमाएं या ना कमाएं, लेकिन ऐसे विज्ञापनों को इजाजत नहीं दी जा सकती जो देश में लिंगानुपात को प्रभावित करें. इन विज्ञापनों को वेबसाइटों के कॉरीडोर से देश में आने की मंजूरी नहीं देंगे. ये विज्ञापन सीधे-सीधे PNDT एक्ट का उल्लंघन हैं.
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वहीं माइक्रोसॉफ्ट की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि अभी तक आपत्तिजनक लिंग परीक्षण संबंधित विज्ञापन को लेकर उनके पास कोई शिकायत नहीं आई है. वहीं गूगल की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि जो भी आपत्तिजनक कंटेंट के बारे में उनको शिकायत मिली है उस पर उन्होंने कार्रवाई की है और उसे साइट से हटा लिया गया है.
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वहीं सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नोडल एजेंसी के बारे में सुझाव मांगे हैं कि वह साइट्स पर आपत्तिजनक लिंग परीक्षण सम्बंधित विज्ञापन को रोकने के लिए और क्या प्रभावी कदम उठा सकती है. सुप्रीम कोर्ट 24 नवंबर को मामले की अगली सुनवाई करेगा.
वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण से संबंधित विज्ञापनों का मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम सुनवाई की है. सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि कि ऐसे विज्ञापन ब्लॉक करने से क्या राइट टू इंफोरमेशन यानी सूचना प्राप्त करने के अधिकार का हनन होता है? हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जानकारी प्राप्त करना, बुद्धिमता और सूचना प्राप्त करना सभी का अधिकार है लेकिन ये भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इससे देश के किसी कानून का उल्लंघन ना होता हो. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सर्च इंजन गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को लिंग परीक्षण संबंधी जानकारियों को डिलीट करने के लिए अंदरूनी एक्सपर्ट कमेटी नियुक्त करने के आदेश दिए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने इन कंपनियों को कहा कि आपको देश के कानून का सम्मान और पालन करना होगा जो लिंग संबंधी परीक्षण पर रोक लगाता है. आप किसी देश के कानून का उल्लंघन नहीं कर सकते, आपको कानून के प्रति जवाबदेह होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इन मेटेरियल पर नजर रखने के लिए बनाई नोडल एजेंसी पर मुहर लगाई थी और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र एक हफ्ते के भीतर इस नोडल एजेंसी के बारे में प्रचार कर लोगों को जानकारी दें.
वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण से संबंधित विज्ञापनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हो रही है. पहले सुनवाई में आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट कहा था कि सर्च इंजन गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को वेबसाइटों पर लिंग परीक्षण पर दिए गए विज्ञापन 36 घंटे में डिलीट करने के आदेश दिए थे.
कोर्ट ने केंद्र को ऐसे विज्ञापनों की शिकायत दर्ज करने के लिए नोडल एजेंसी का गठन करने का आदेश भी दिया. यह एजेंसी शिकायतों को सर्च इंजनों को देगी और फिर सर्च इंजन ऐसी सूचनाओं और विज्ञापनों को 36 घंटे में हटाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ये भी तय करेगा कि क्या ये बैन सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे विज्ञापनों पर कड़ी नाराजगी जाहिर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे हालात हो गए हैं कि लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल रही हैं. लड़का कैसे होगा और लड़की कैसे होगी? ऐसी जानकारी की देश में कोई जरूरत नहीं. हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि वेबसाइट पैसा कमाएं या ना कमाएं, लेकिन ऐसे विज्ञापनों को इजाजत नहीं दी जा सकती जो देश में लिंगानुपात को प्रभावित करें. इन विज्ञापनों को वेबसाइटों के कॉरीडोर से देश में आने की मंजूरी नहीं देंगे. ये विज्ञापन सीधे-सीधे PNDT एक्ट का उल्लंघन हैं.
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