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This Article is From Jul 17, 2019

सुप्रीम कोर्ट के अतिरिक्त परिसर का लोकार्पण, मलबे और अन्य सामग्री से हुआ निर्माण

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि 100 अहम फैसलों के नौ भाषाओं में अनुवाद अब सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर आ गए हैं, यह शुभ शुरुआत

सुप्रीम कोर्ट के अतिरिक्त परिसर का लोकार्पण, मलबे और अन्य सामग्री से हुआ निर्माण
सुप्रीम कोर्ट के नए अतिरिक्त परिसर का बुधवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने लोकर्पण किया.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के नए अतिरिक्त परिसर का बुधवार को लोकार्पण हुआ. अब नौ क्षेत्रीय भाषाओं में सुप्रीम कोर्ट के फैसले अनुदित होंगे. 12 एकड़ मे बने इस परिसर को 20 लाख ब्लॉक्स से बनाया गया है. यह ब्लॉक्स मलबे और अन्य मटेरियल से बनाए गए हैं.

परिसर के लोकार्पण समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि 100 अहम फैसलों के नौ भाषाओं में अनुवाद अब सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर आ गए हैं. यह शुभ शुरुआत है. आगे भी लेबर, संपत्ति बंटवारे जैसे विवादों के जनता से जुड़े सुप्रीम और हाइकोर्ट्स के अहम फैसले अनुवाद होकर साइट पर आएंगे.  

राष्ट्रपति ने कहा कि राजेन्द्र बाबू ने सुप्रीम कोर्ट की मूल इमारत का उद्घाटन किया था. रजिस्ट्री, लाइब्रेरी, कन्वेंशन हाल, सभागार और रिकॉर्ड रूम हैं जो कला के उत्कृष्ट नमूने हैं. सौर ऊर्जा, पर्यावरण और जल संरक्षण इसका लक्ष्य है. नई शुरुआत को काफी आगे जाना है जिससे जनता को जल्दी और सटीक न्याय मिले. अभी सुप्रीम कोर्ट में पूरे 31 जज हैं और भविष्य में कोलेजियम और सरकार आपसी तालमेल से काम करते रहेंगे.

केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस मौके पर कहा कि यह भवन 931 करोड़ की लागत से बना है. यह इमारत भारतीय कला की ताक़त भी बताती है. सरकार 7000 करोड़ नए अदालत परिसर और मौजूद अदालतों के बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए खर्च कर रही है. आज भी सरकार ने 51 गैर जरूरी कानून खत्म किए हैं. अब तक सरकार ने 1500  पुराने कानून खत्म किए हैं. सरकार आल इंडिया ज्युडिशियल सर्विस पर भी विचार कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि पुरानी इमारत का भी ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक महत्व है. नई इमारत भी स्टेट ऑफ आर्ट है.  सुप्रीम कोर्ट हर फ्रंट पर काम करता है. हमारा न्याय के लिए कमिटमेंट है और इस बारे में हम कोई समझौता नहीं कर सकते.

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सीजेआई ने कहा कि बदलाव के पंख लगातार वैश्विक परिदृश्य को बदल रहे हैं. वर्क प्लेस पर कामकाज के पारंपरिक तौर तरीके बदल रहे हैं. हमें भी बदलना पड़ेगा लेकिन दूसरों की नकल से नहीं, अपने अंदाज में अपनी जरूरतों के मुताबिक.

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