यह ख़बर 01 मई, 2012 को प्रकाशित हुई थी

सेना तय करे, फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपियों के खिलाफ सुनवाई कैसे हो : कोर्ट

खास बातें

  • उच्चतम न्यायालय ने सेना के प्राधिकारियों से यह तय करने को कहा कि क्या जम्मू कश्मीर और असम में फर्जी मुठभेड़ में लोगों को मार डालने के आरोपी, सैन्य अधिकारियों के खिलाफ सुनवाई नियमित आपराधिक अदालतों में की जानी चाहिए या उनके खिलाफ कोर्ट मार्शल की कार्रवाई ह
नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को सेना के प्राधिकारियों से यह तय करने को कहा कि क्या जम्मू कश्मीर और असम में फर्जी मुठभेड़ में लोगों को मार डालने के आरोपी, सैन्य अधिकारियों के खिलाफ सुनवाई नियमित आपराधिक अदालतों में की जानी चाहिए या उनके खिलाफ कोर्ट मार्शल की कार्रवाई होनी चाहिए।

न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने कहा कि अगर सेना के अधिकारी कोर्ट मार्शल की कार्रवाई नहीं चाहते तो सीबीआई केंद्र से सैन्य कर्मियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति मांग सकती है।

कुछ सैन्य अधिकारियों पर, जम्मू कश्मीर के पथरीबल में 12 साल पहले एक कथित सुनियोजित गोलीबारी में सात लोगों को मार डालने के मामले में, लिप्त होने का आरोप है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर आरोपी अधिकारियों के खिलाफ नियमित आपराधिक अदालतों में मुकदमा चलाया जाता है तो केंद्र को मुकदमा चलाने के लिए सीबीआई के आग्रह पर, तीन माह के अंदर विचार करना चाहिए।

पीठ ने इससे पहले अपना फैसला 23 अप्रैल तक सुरक्षित रख लिया था रिपीट था। मामले पर जिरह समाप्त करते हुए अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल हरिन रावल और सीबीआई की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक भान ने दोहराया कि कथित फर्जी मुठभेड़ में लिप्त सैन्य अधिकारियों को अभियोजन से छूट नहीं है।

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सीबीआई ने पूर्व में विशेष पीठ से कहा था कि यह ‘‘सोच समझ कर की गई हत्या का मामला है और आरोपी अधिकारी कठोर सजा के हकदार हैं।’’