नई दिल्ली:
पूर्व दूरसंचार मंत्री सुखराम को झटका देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1996 के दूरसंचार घोटाला में उनकी दोषसिद्धि और तीन साल के कारावास की सजा को बरकरार रखा। दोषसिद्धि के खिलाफ सुखराम की अपील को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति जी पी मित्तल की पीठ ने दूरसंचार विभाग के पूर्व उप महानिदेशक रूनू घोष और हैदराबाद स्थित एडवांस्ड रेडियो मास्ट्स :एआरएम: के प्रबंध निदेशक पी रामा राव की भी दोषसिद्धि को बरकरार रखा। 1996 का दूरसंचार घोटाला हैदराबाद स्थित फर्म को ऊंची दरों पर सरकार को दूरसंचार उपकरणों की आपूर्ति का ठेका देने से संबंधित है। अदालत ने घोष और राव की क्रमश: दो साल और तीन साल के कारावास की सजा को बरकरार रखा। उन्हें जुलाई 2002 में निचली अदालत ने यह सजा सुनाई थी। अदालत ने तीनों को सजा काटने के लिए निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि इस उद्देश्य के लिए वे पांच जनवरी 2012 को निचली अदालत के समक्ष उपस्थित हों। पीठ ने अपने 120 पन्नों के आदेश में सुखराम को उपकरण की आपूर्ति का ठेका एआरएम को देने की साजिश करने के आरोपों से बरी कर दिया। हालांकि, उसने साजिश के आरोप में घोष और राव की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। अदालत ने हालांकि घोटाले में वित्तीय लाभ के लिए अपने आधिकारिक पद के दुरुपयोग करने के लिए सुखराम की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। साथ ही अदालत ने आपराधिक कदाचार के आरोप में भी उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा। उच्च न्यायालय ने उनकी दोषसिद्धि को हाल में ही निचली अदालत द्वारा 1990 के दशक के मध्य में सुखराम के दूरसंचार मंत्री रहने के दौरान दूरसंचार विभाग को दूरसंचार केबलों की आपूर्ति से संबंधित एक अन्य मामले में उन्हें दोषी ठहराए जाने के बाद बरकरार रखा है। निचली अदालत ने 1996 में एक अन्य निजी फर्म को लुभावना ठेका देने के एवज में तीन लाख रुपये की रिश्वत लेने के लिए पांच साल के कारावास की सजा सुनाई थी। बाद में उच्च न्यायालय ने उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगा दी थी और उन्हें जमानत दी थी।