नॉर्वे की प्रधानमंत्री एर्ना सोलबर्ग ने सोमवार को कहा कि भारत और पाकिस्तान बड़े देश हैं और वे बगैर किसी बाहरी मदद के खुद ही द्विपक्षीय तनावों को कम कर सकते हैं. यहां नार्वे के दूतावास में एक नए हरित परिसर का उद्घाटन करने के बाद उन्होंने मीडिया से बातचीत के दौरान यह बात कही. संघर्षों को सुलझाने की नॉर्वे की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए सोलबर्ग से पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि नॉर्वे ने विवादों के शांतिपूर्ण निपटारे के लिए मध्यस्थ के रूप में काफी काम किए हैं. लेकिन उनकी सरकार की स्पष्ट नीति रही है कि किसी के मदद मांगने पर ही उसकी मदद की जाए. उन्होंने कहा कि कोई भी बाहरी (व्यक्ति/देश) शांति नहीं ला सकता, ना ही बदलाव कर सकता है.
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उन्होंने कहा कि अगर व्यापक वार्ता के लिए भारत और पाकिस्तान में कोई गतिविधि हो रही है तो अन्य देश मदद कर सकते हैं लेकिन उसकी प्रक्रिया वार्ता के साझेदार देश ही तय करेंगे. भारत में नियुक्त नॉर्वे के राजदूत निल्स रैगनर काम्सवाग ने बाद में एक ट्वीट में यह स्पष्ट किया कि सोलबर्ग ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थ बनने की पेशकश नहीं की है. जब सोलबर्ग से यह पूछा गया कि क्या कश्मीर घाटी में सैन्य समाधान संभव है, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘‘मैं व्यक्तिगत रूप से यह नहीं मानती कि सैन्य तरीके से समस्याओं का हल हो सकता है. मैं शांतिपूर्ण समाधान में विश्वास रखती हूं. मैं शांतिवार्ता में महिलाओं और युवाओं की हिस्सेदारी में यकीन रखती हूं.''
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सोलबर्ग तीन दिवसीय दौरे पर सोमवार सुबह भारत आई हैं. वह मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगी. सोलबर्ग ने स्वच्छ भारत मिशन का जिक्र करते हुए कहा कि सतत विकास की चुनौतियों से निपटने के लिए इस अभियान की जरूरत थी.
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