खास बातें
- गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार मामले में SIT रिपोर्ट में मोदी को क्लीन चिट दिए जाने पर जहां बीजेपी खेमा खुशी मना रहा है, वहीं इस रिपोर्ट पर कुछ सवाल भी उठ रहे हैं।
नई दिल्ली: गुलबर्ग दंगा मामले में एसआईटी की रिपोर्ट में मोदी को क्लीन चिट दिए जाने पर मोदी और बीजेपी खेमा जहां खुशी मना रहा है, वहीं इस रिपोर्ट पर कुछ सवाल भी उठ रहे हैं।
नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट देने वाली एसआईटी प्रमुख रहे आरके राघवन का कहना है कि रिपोर्ट सबूतों के आधार पर तैयार की गई है और उनकी ईमानदारी पर सवाल नहीं उठाए जा सकते। राघवन ने कहा कि उन्होंने अपना फर्ज निभाया है, लेकिन वह गलत भी हो सकते हैं। वहीं इस मामले में एमिकस क्यूरी राजू रामचंद्रन का कहना है कि सबूतों के आधार पर उन्होंने अलग से जांच की है और जब रिपोर्ट सार्वजनिक होगी तो सबको पता चल जाएगा। रामचंद्रन ने कहा कि अब कोर्ट के हाथ में यह है कि केस बंद होगा या नहीं। दूसरी ओर सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने एसआईटी की रिपोर्ट पर हैरानी जताई है। उनका कहना है कि यह रिपोर्ट शक पैदा करती है।
उधर, एसआईटी की रिपोर्ट ने गुजरात दंगों के दस साल बाद नरेन्द्र मोदी को फिर से अपने दाग धोने का एक मौका दे दिया। गुलबर्ग सोसायटी मामले में एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट से कानूनी लड़ाई के रास्ते भले ही बंद न हुए हों, लेकिन मोदी को राजनीतिक लड़ाई के लिए नए रास्ते जरूर मिल गए हैं। दंगों के बाद मोदी ने लगातार दो विधानसभा चुनाव जीते, हालांकि उनकी लोकप्रियता कुछ गिरी।
2002 के दिसम्बर में जब दंगों की तपन तेज थी, तब मोदी ने 126 सीटें जीतीं, लेकिन पांच साल बाद जब गुजरात थोड़ा सामान्य होने लगा तो 2007 में बीजेपी को 117 सीटें ही मिल पाईं। इस साल दिसंबर में फिर विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में यह रिपोर्ट मोदी को राजनीतिक ताकत देने के काम आ सकती है। अपने खिलाफ लगे हर आरोप को नरेंद्र मोदी गुजरात के सम्मान और अपमान का सवाल बनाते रहे हैं। जाहिर है इस कानूनी फैसले का भी वह पूरा सियासी इस्तेमाल करेंगे और बताएंगे कि उन पर लगाए गए आरोप गुजरात को बदनाम करने की साजिश थे।