राजनीति के कई उतार-चढ़ाव देख चुके हैं सिद्धारमैया, बीजेपी के लिए कठिन चुनौती

कर्नाटक में जनता के नेता के रूप में पहचान बनाने वाले सिद्धारमैया ने लोहिया के विचारों से प्रभावित होकर 1983 में शुरू किया था राजनीतिक सफर

राजनीति के कई उतार-चढ़ाव देख चुके हैं सिद्धारमैया, बीजेपी के लिए कठिन चुनौती

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बीजेपी के सामने कठिन चुनौती खड़ी की है.

खास बातें

  • पूर्व में दो बार उप मुख्यमंत्री रहे पर मुख्यमंत्री नहीं बन सके थे
  • कांग्रेस के घोर विरोधी रहे पर जद(एस) से निकाले जाने पर कांग्रेस में ही गए
  • पारम्परिक सीट चामुंडेश्वरी के अलावा बादामी सीट से भी लड़ रहे हैं चुनाव
नई दिल्ली:

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया विधानसभा चुनाव में बीजेपी की कठिन चुनौती का सामना कर रहे हैं. देश की सबसे बड़े राजनीतिक पार्टी बन चुकी भारतीय जनता पार्टी के लिए भी कर्नाटक चुनाव आसान नहीं है क्योंकि यहां उसका मुकाबला सिद्धारमैया के रूप में एक ऐसे नेता से है जिसने राजनीति का लंबा सफर तय किया है. जनता के नेता के रूप में अपनी अलग पहचान बनाने वाले सिद्धारमैया के कारण ही बीजेपी को यहां काफी पसीना बहाना पड़ रहा है.        

कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतकर जहां अपने विजय रथ को गति देने की जुगत लगा रही है वहीं कांग्रेस इस समर में फतह पाकर अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही है. बीजेपी की ओर से पीएम नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह सहित अन्य दिग्गज नेताओं के आरोपों के तीर सीएम सिद्धारमैया को छलनी करने की कोशिश करते रहे हैं. दूसरी तरफ सिद्धारमैया इन दिग्गजों का डटकर मुकाबला कर रहे हैं. उन्होंने पीएम मोदी, अमित शाह और सीएम पद के प्रत्याशी येदियुरप्पा को मानहानि का नोटिस भेजा है.भगवान के नाम पर वोट मांगने वाली बीजेपी का मुकाबला यहां एक ऐसे नेता (सिद्दारमैया) से हो रहा है जो पूरी तरह नास्तिक है.  

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मैसूर जिले के सिद्दरामनहुंडी गांव के एक किसान परिवार में 12 अगस्त 1948 को जन्मे  सिद्धारमैया की 10 साल की उम्र तक कोई औपचारिक शिक्षा नहीं हुई थी. मैसूर विश्वविद्यालय से साइंस में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने यहीं से लॉ की डिग्री प्राप्त की.उनके परिवार में उनकी पत्‍नी पार्वती, दो पुत्र राकेश और यतीन्द्र हैं. फिल्मों में कुछ रोल कर चुके राकेश अपने पिता की मदद भी करते हैं. यतीन्द्र डॉक्टर हैं. सिद्धारमैया ईश्वर को नहीं मानते हैं. मुख्यमंत्री बनने पर जब शपथ लेने का मौका आया तो उन्होंने 'ईश्वर' की जगह 'सच्चाई' के नाम पर शपथ ग्रहण की थी.

सिद्धारमैया वकालत करने के साथ-साथ कानून के शिक्षक भी रहे हैं. साल 1980 से 2005 तक करीब ढाई दशक तक जनता दल (सेक्युलर) के सदस्य रहे सिद्दारमैया कांग्रेस के घोर विरोधी के रूप में जाने जाते थे. मुख्यमंत्री के रूप में एचडी देवगौड़ा और जेएच पटेल के कार्यकाल के दौरान सिद्दारमैया वित्तमंत्री बने. उन्होंने सात बार राज्य का बजट पेश किया. वे जद (एस) की राज्य इकाई के अध्यक्ष रहे और दो बार कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री भी रहे. लेकिन कहा जाता है कि नियति जिसे जहां ले जाती है, वह वहां पहुंच जाता है. कर्नाटक के तीसरे सबसे बड़े जातीय समुदाय कुरूबा से आने वाले सिद्धारमैया पिछड़े वर्ग के नेता के रूप में उभरने लगे थे लेकिन एचडी देवगौड़ा अपने पुत्र एचडी कुमारस्वामी में पार्टी नेतृत्व का भविष्य देख रहे थे. वर्ष 2004 में बनी कांग्रेस और जनता दल (एस) की गठबंधन सरकार में सिद्धारमैया को डिप्टी सीएम बनाया गया. इसके अगले ही साल 2005 में पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा के जनता दल (एस) से उनको निष्कासित कर दिया गया. इन हालात में उन्होंने उसी पार्टी का दामन थामा जिससे वे लंबे अरसे से दो-दो हाथ करते रहे थे. वर्ष 2006 में वे अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए.

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जनता दल (एस) से निष्कासित किए जाने के बाद सिद्दारमैया राजनीति से संन्यास लेकर फिर से वकालत करना चाहते थे. खुद को धन जुटाने में अक्षम मानते हुए उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाने से इनकार कर दिया था. इस दौरान कांग्रेस के अलावा बीजेपी ने भी उन्हें अपनी ओर खींचने की कोशिश की थी. बीजेपी की विचारधारा से असहमति के कारण उन्होंने अपनी कांग्रेस की ओर कदम बढ़ाए.  

कांग्रेस में आने के कुछ वर्षों बाद ही सिद्धारमैया की महत्वाकांक्षा तब पूरी हुई जब वे मुख्यमंत्री बने. उन्होंने 13 मई 2013 को कर्नाटक के 22 वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. वास्तव में साल 2004 में गठबंधन सरकार में ही उनकी सीएम बनने की महत्वाकांक्षा थी जो कहा जाता है कि देवगौड़ा ने पूरी नहीं होने दी थी और कांग्रेस के एन धरमसिंह को सीएम बनवा दिया था. साल 1996 में भी वे न सिर्फ मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थे बल्कि उनकी स्थिति भी मजबूत थी, लेकिन फिर भी इस पद से वंचित रहे.

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सिद्धारमैया डॉ राममनोहर लोहिया के समाजवाद से काफी प्रभावित रहे हैं. सन 1983 में सिद्दारमैया लोकदल से मैसूर की चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट पर जीते थे. बाद में वे सत्तारूढ़ जनता पार्टी में शामिल हो गए थे. बाद में उन्हें सेरीकल्चर मंत्री बनाया गया. दो साल बाद मध्यावधि चुनाव में वे फिर जीते और रामकृष्ण हेगड़े की सरकार में पशुपालन और पशु चिकित्सा मंत्री बनाए गए. सिद्दारमैया को सन 1989 और 1999 के विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा. साल 2008 में वे कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस समिति की प्रचार समिति के अध्यक्ष बनाए गए. चामुंडेश्वरी क्षेत्र से साल 2013 में उन्होंने फिर चुनाव जीता और कांग्रेस विधायक दल के नेता निर्वाचित होकर मुख्यमंत्री बने.

मौजूदा विधानसभा चुनाव में सिद्धारमैया अपनी पारम्परिक सीट चामुंडेश्वरी के अलावा बादामी सीट पर भी मैदान में हैं.  चामुंडेश्वरी में उनका मुकाबला जद (एस) के जीटी देवेगौड़ा से है. बादामी सीट पर उनका मुकाबला बीजेपी के बी श्रीरामुलु से है.

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इस चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के अलावा जद (एस) के बीच मुख्य मुकाबला है. चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस और बीजेपी ने एक-दूसरे पर तीखे शब्द-बाण चलाए. आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला लगातार चला. आरोपों से आहत सिद्दारमैया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और कर्नाटक में पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा को मानहानि का नोटिस भेजा है. सिद्धारमैया ने कानूनी नोटिस में प्रधानमंत्री मोदी से चुनावी भाषणों के दौरान कांग्रेस सरकार पर लगाए गए आरोपों के लिए माफी मांगने की मांग की है. नोटिस में बीजेपी के चुनावी विज्ञापनों का हवाला दिया गया है. इस नोटिस में उनसे बिना शर्त माफी मांगने या 100 करोड़ रुपये के मानहानि मामले का सामना करने को कहा गया है.


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