शरद पवार (फाइल फोटो)
मुंबई:
एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने अपनी अब तक की छवि के बिलकुल विपरीत भूमिका अपना ली है. पवार एट्रोसिटी कानून में संशोधन की मांग कर रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में पवार के संवाददाता सम्मेलनों में यह मुद्दा प्रमुखता से रहा है. अब तक शरद पवार अपने आपको हमेशा पिछड़ों के हितैषी के रूप में पेश करते रहे थे.
रविवार को औरंगाबाद में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पवार से जब पूछा गया कि एट्रोसिटी कानून को लेकर उनका क्या कहना है? इस पर उन्होंने कहा कि अगर सवर्ण समाज के गुस्से का कारण एट्रोसिटी का कानून दिखता है और उसमें कुछ गलत है तो सुधार होना चाहिए. पवार से यह प्रश्न अहमदनगर के कोपर्डी में हुए महिला अत्याचार के मामले में किया गया था. कोपर्डी में एक एक सवर्ण लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और निर्मम हत्या के बाद महाराष्ट्र में जगह-जगह मोर्चे निकल रहे हैं. कोपर्डी मामले में आरोपी दलित हैं. इसके खिलाफ जारी आंदोलनों को मराठा क्रांति मोर्चा का नाम दिया गया है. महाराष्ट्र की शासक जमात मराठा के प्रतिनिधि इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं.
पवार ने कहा है कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक अधिनियम में बदलाव हो. पवार का यह रुख मराठाओं को एनसीपी से जोड़ने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन इस मुद्दे पर न कांग्रेस पवार के साथ है न अन्य वे विपक्षी दल जो, कभी पवार के साथ थे.
कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री नसीम खान ने एनडीटीवी इंडिया से कहा कि एट्रोसिटी कानून दलितों पर होने वाले अत्याचार को रोकने के साथ उस समाज में सुरक्षा की भावना लाता है. उसे हटाना ठीक नहीं होगा.
उधर केंद्रीय सामाजिक न्याय राज्यमंत्री रामदास आठवले ने नई दिल्ली में संवाददाता सम्मेलन कर पवार की मांग का खुलकर विरोध किया. उन्होंने कहा कि पवार की मांग उचित नहीं, कानून नहीं हटेगा. आठवले ने याद दिलाया कि एट्रोसिटी कानून में जब संशोधन हुआ तब शरद पवार संसद सदस्य थे. छुआछूत रोकने के लिए संविधान की धारा 17 के तहत 1989 में एट्रोसिटी कानून संसद ने मंजूर किया था, ताकि दलितों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार पर नकेल कसी जाए.
रविवार को औरंगाबाद में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पवार से जब पूछा गया कि एट्रोसिटी कानून को लेकर उनका क्या कहना है? इस पर उन्होंने कहा कि अगर सवर्ण समाज के गुस्से का कारण एट्रोसिटी का कानून दिखता है और उसमें कुछ गलत है तो सुधार होना चाहिए. पवार से यह प्रश्न अहमदनगर के कोपर्डी में हुए महिला अत्याचार के मामले में किया गया था. कोपर्डी में एक एक सवर्ण लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और निर्मम हत्या के बाद महाराष्ट्र में जगह-जगह मोर्चे निकल रहे हैं. कोपर्डी मामले में आरोपी दलित हैं. इसके खिलाफ जारी आंदोलनों को मराठा क्रांति मोर्चा का नाम दिया गया है. महाराष्ट्र की शासक जमात मराठा के प्रतिनिधि इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं.
पवार ने कहा है कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक अधिनियम में बदलाव हो. पवार का यह रुख मराठाओं को एनसीपी से जोड़ने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन इस मुद्दे पर न कांग्रेस पवार के साथ है न अन्य वे विपक्षी दल जो, कभी पवार के साथ थे.
कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री नसीम खान ने एनडीटीवी इंडिया से कहा कि एट्रोसिटी कानून दलितों पर होने वाले अत्याचार को रोकने के साथ उस समाज में सुरक्षा की भावना लाता है. उसे हटाना ठीक नहीं होगा.
उधर केंद्रीय सामाजिक न्याय राज्यमंत्री रामदास आठवले ने नई दिल्ली में संवाददाता सम्मेलन कर पवार की मांग का खुलकर विरोध किया. उन्होंने कहा कि पवार की मांग उचित नहीं, कानून नहीं हटेगा. आठवले ने याद दिलाया कि एट्रोसिटी कानून में जब संशोधन हुआ तब शरद पवार संसद सदस्य थे. छुआछूत रोकने के लिए संविधान की धारा 17 के तहत 1989 में एट्रोसिटी कानून संसद ने मंजूर किया था, ताकि दलितों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार पर नकेल कसी जाए.
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