मोदी सरकार के श्रम सुधार की योजना पर संघ परिवार में अंदरूनी गतिरोध खुलकर सामने आ गया है. आरएसएस से जुड़े भारतीय मज़दूर संघ ने देश के करीब 50 करोड़ मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा मुहैया करने के लिए श्रम मंत्रालय की प्रस्तावित सोशल सिक्योरिटी कोड के चौथे ड्राफ्ट (बीएमएस) को ख़ारिज कर दिया है. बीएमएस का मानना है कि इसमें संगठित और असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा के अलग-अलग पैमाने तय किए गए हैं जो उसे स्वीकार नहीं है.
केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों पर संघ परिवार से जुड़े संगठनों ने उठाए सवाल
हमने भारतीय मजदूर संघ के नेता गिरीश आर्य से सवाल पूछा कि आपको लगता है कि देश के सभी वर्करों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने की सोच इस सोशल सिक्योरिटी कोड के ड्राफ्ट से कमज़ोर होती है? जवाब में उन्होंने कहा, 'श्रम मंत्रालय ने सोशल सिक्योरिटी फॉर ऑल के प्रिंसिपल को कमजोर कर दिया है. ड्राफ्ट सोशल सिक्योरिटी कोड में वर्कर्स का क्लासिफिकेशन किया गया है. हम इसके खिलाफ हैं.
आरएसएस से जुड़ा मजदूर संगठन भी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों से नाराज
भारतीय मज़दूर संघ का ये भी मानना है की मौजूदा ईपीएफ और ईएसआई की व्यवस्था से किसी भी तरह का छेड़छाड़ उसे मंज़ूर नहीं है. उधर इस मसले पर लेफ्ट-समर्थित मज़दूर संघ सीटू भी भारतीय मज़दूर संघ के साथ खड़ा हो गया है. सीटू से जुड़े कंस्ट्रक्शन वर्कर्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया ने 5 दिसंबर को संसद मार्च का कॉल दिया है, जिस दौरान प्रस्तावित सोशल सिक्योरिटी कोड के खिलाफ एक करोड़ कंस्ट्रक्शन वर्करों के हस्ताक्षर लोकसभा स्पीकर को सौपें जाएंगे. साफ़ है कि सोशल सिक्योरिटी कोड के चौथे ड्राफ्ट के खिलाफ मज़दूर संघों के इस विरोध से निपटना सरकार के लिए आसान नहीं होगा.
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