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This Article is From Aug 25, 2016

''पंद्रह किमी चलकर म्हारे हरियाणा की बेटी साक्षी को देखने आए''

''पंद्रह किमी चलकर म्हारे हरियाणा की बेटी साक्षी को देखने आए''
नई दिल्ली: ''छोरी दूध पिए ते उसे मूंछ आ जाएगी.'' पहले इस कहावत को कहकर बड़े बुजुर्ग छोरियों को दूध नहीं पीने देते थे. बहादुरगढ़ में साक्षी मलिक के सम्मान समारोह में आगे की कतार में बैठे नंबरदार हुकुम सिंह ने बताया. ''लेकिन भाई अब वक्त बदल रहा है पंद्रह किमी चलकर म्हारे हरियाणा की बेटी साक्षी को देखने आए हैं. छोरियों ने म्हारे हरियाणा जे राज्य का नाम भी रोशन कर दिया.'' इतना कहकर होशियार सिंह मनोहर लाल खट्टर को देखने लगे जो साक्षी को ढाई करोड़ का बड़ा सा सांकेतिक चेक दे रहे थे.

इससे पहले कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक का सुबह साढ़े तीन बजे दिल्ली एयरपोर्ट पर स्वागत ढोल नगाड़ों से हुआ. हरियाणा के छह मंत्रियों की अगुवाई में उसका काफिला हरियाणा सदन पहुंचा जहां उसने पहली ख्वाहिश मां के हाथ के बने खाने की जताई.

हरियाणा के तमाम लोग और मीडिया के कैमरों के बीच साक्षी सुबह आठ बजे दिल्ली से अपने गांव मोखरा चलीं. हरियाणा के पहले पड़ाव बहादुरगढ़ में स्वागत की रातोंरात योजना बनी जिसकी तैयारी सुबह तक चलती रही. सड़कों पर झाड़ू चलने लगी और गुब्बारे लगे. साक्षी की कामयाबी के आगे मुख्यमंत्री ने घोषणाओं का अंबार लगा दिया.

उसके दो कोचों को दस-दस लाख रुपए देने के साथ उसके गांव में अब स्टेडियम तक बनेगा. यहीं कबड्डी के कोच देवेंद्र अपने बच्चों को साक्षी जैसा सपना दिखाने लाए थे. उनमें से एक बच्ची ऊषा थी जिसकी बहन को लड़की होने की वजह से परिवार ने उसका खेलना बंद करवा दिया. अब साक्षी की कामयाबी ने उसे नया हौसला दिया है. वह कहती है कि मैं फिर अपने पिता को समझाऊंगी कि मेरी बहन को खेलने दो वह भी साक्षी जैसा नाम रोशन करेगी.

साक्षी की कामयाबी हरियाणा में लड़कियों के बारे में समाज की सोच पर असर डाल रही है. लोग बताते हैं कि अब लड़कियां बाहर निकल रही हैं. साक्षी का बुधवार सुबह से शुरू हुआ सफर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था. सड़क के किनारे लोगों का हुजूम साक्षी की सफलता का गवाह बनना चाहता था. शाम पांच बजे वे अपने गांव मोखरा पहुंचीं. वहां सत्ता से लेकर विरोधी पार्टियों के नेता मंच पर अपनी जगह बनाने की जद्दोजहद करते दिख रहे थे. आम लोग घी के डिब्बे से लेकर ड्राई फ्रूट तक साक्षी को भेंट कर रहे थे.  इसी गांव की सन्नाटी गली में साक्षी के दादा का घर है. उसके दादा बदलू पहलवान से कुश्ती उसे विरासत में मिली.

साक्षी के गांव मोखरा में भारी बारिश के बावजूद लोगों का जुनून पहले शायद कभी नहीं दिखा. यह उस कंडक्टर पिता और आंगनबाड़ी में काम करने वाली मां के त्याग को भी दिखाती है जिसने छोटे कस्बे ऐर गांव के लोगों को एक सपना दिखाया है.

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