प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि भले ही दलील दी जा रही हो कि सबरीमला मंदिर के भगवान अय्यप्पा का ब्रहमचर्य चरित्र हो लेकिन वह इस तथ्य पर अनजान बनकर नहीं रह सकते. कोर्ट ने कहा कि हमें पता है कि दस से 50 साल के आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर मासिक धर्म के शारीरिक आधार पर पाबंदी है.प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने हालांकि पीपुल फार धर्म और एनजीओ चेतना की इस दलील को प्रभावशाली बताया कि भगवान अय्यप्पा को वैधानिक व्यक्ति होने के कारण संविधान के तहत अपने ब्रहमचर्य चरित्र को संरक्षित रखने का अधिकार है.
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सीजेआई ने कहा कि आपकी (वकील) दलीलें प्रभावशाली हैं, मैं यह स्वीकार करता हूं. पीठ ने कहा लेकिन अदालत इस मामले के इस तथ्य पर अनजान बनकर नहीं रह सकते कि महिलाओं के एक वर्ग को शारीरिक कारणों (मासिक धर्म) से अनुमति नहीं दी जा रही. पाबंदी को चुनौती देने वाली इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने पूछा कि क्या एक आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर सबरीमला मंदिर में पाबंदी धार्मिक संप्रदाय की जरूरी और अभिन्न परंपरा है.
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गौरतलब है कि इससे पहले केरल के सबरीमला के प्रसिद्ध भगवान अयप्पा मंदिर में प्रवेश करने की इच्छुक महिलाओं के लिए आयु का कोई वास्तविक प्रमाण दिखाना जरूरी करने की बात कही गई थी. इस मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष तक उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है.मंदिर का प्रबंधन करने वाले त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड (टीडीबी) ने ऐसे समय में आयु प्रमाण-पत्र अनिवार्य करने का फैसला लिया है जब यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है और महिला श्रद्धालु प्रतिबंध को तोड़ते हुए मंदिर में प्रवेश की कोशिश कर रही हैं.
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तीन महीने तक चलने वाली वार्षिक तीर्थयात्रा का अंतिम चरण 14 जनवरी को मकराविलक्कु उत्सव के साथ खत्म होगा. महिलाओं के उस समूह को मंदिर में प्रवेश से रोका जाता है जिन्हें माहवारी होती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान अयप्पा एक ‘नास्तिक ब्रह्मचारी’थे.
VIDEO: मंदिर किसी की निजी संपत्ति नहीं- सुप्रीम कोर्ट
टीडीबी के अध्यक्ष ए पद्मकुमार ने कहा कि सबरीमला मंदिर में प्रवेश के लिए होने वाली जांच के दौरान आधार कार्ड समेत कोई भी वास्तविक प्रमाण स्वीकार किया जाएगा.(इनपुट भाषा से)
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सीजेआई ने कहा कि आपकी (वकील) दलीलें प्रभावशाली हैं, मैं यह स्वीकार करता हूं. पीठ ने कहा लेकिन अदालत इस मामले के इस तथ्य पर अनजान बनकर नहीं रह सकते कि महिलाओं के एक वर्ग को शारीरिक कारणों (मासिक धर्म) से अनुमति नहीं दी जा रही. पाबंदी को चुनौती देने वाली इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने पूछा कि क्या एक आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर सबरीमला मंदिर में पाबंदी धार्मिक संप्रदाय की जरूरी और अभिन्न परंपरा है.
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गौरतलब है कि इससे पहले केरल के सबरीमला के प्रसिद्ध भगवान अयप्पा मंदिर में प्रवेश करने की इच्छुक महिलाओं के लिए आयु का कोई वास्तविक प्रमाण दिखाना जरूरी करने की बात कही गई थी. इस मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष तक उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है.मंदिर का प्रबंधन करने वाले त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड (टीडीबी) ने ऐसे समय में आयु प्रमाण-पत्र अनिवार्य करने का फैसला लिया है जब यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है और महिला श्रद्धालु प्रतिबंध को तोड़ते हुए मंदिर में प्रवेश की कोशिश कर रही हैं.
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तीन महीने तक चलने वाली वार्षिक तीर्थयात्रा का अंतिम चरण 14 जनवरी को मकराविलक्कु उत्सव के साथ खत्म होगा. महिलाओं के उस समूह को मंदिर में प्रवेश से रोका जाता है जिन्हें माहवारी होती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान अयप्पा एक ‘नास्तिक ब्रह्मचारी’थे.
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टीडीबी के अध्यक्ष ए पद्मकुमार ने कहा कि सबरीमला मंदिर में प्रवेश के लिए होने वाली जांच के दौरान आधार कार्ड समेत कोई भी वास्तविक प्रमाण स्वीकार किया जाएगा.(इनपुट भाषा से)
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