नई दिल्ली:
गुड गवर्नेंस और पारदर्शिता के लिए लागू सूचना अधिकार अधिनियम (RTI) का देश में बुरा हाल है. जनता को न समय से जनहित से जुड़ीं सूचनाएं मिल रही हैं और न ही सूचना देने में आनाकानी करने वाले अफसरों पर जुर्माना ही लग पा रहा है. इस वजह से केंद्र से लेकर राज्य के सूचना आयोगों में शिकायतों की 'बाढ़' दिख रही है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया (Transparency International India) ने गुरुवार (11 अक्टूबर) को जारी ताजा रिपोर्ट में आरटीआई को लेकर चौंकाने वाली रिपोर्ट पेश की है. पहली बार सामने आए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2005-16 के बीच आयोगों को 18 लाख से ज्यादा (18,47,314) शिकायतें पहुंचीं. ये शिकायतें सेकंड अपील के तौर पर पहुंचीं. यानी पहली अर्जी पर जब सरकारी मुलाजिमों ने सूचना नहीं दी तो आवेदकों को शिकायत के साथ दूसरी अपील करनी पड़ी.
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देश में 12 अक्टूबर को आरटीआई डे की पूर्व संध्या पर जारी इस रिपोर्ट ने देश में इस महत्वाकांक्षी कानून की बदतर हालत की पोल-खोल कर रख दी है. सबसे ज्यादा शिकायतें राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक से सामने आईं. 2005-16 के बीच देश में 2.25 करोड़ लोगों ने आरटीआई डालकर तमाम सूचनाएं मांगी. मगर समय से सूचनाएं देने में बरती गई कोताही से आयोगों तक भारी संख्या में शिकायतें पहुंचीं. बता दें कि यूपीए सरकार में 15 जून 2005 को संसद में पास हुआ आरटीआई एक्ट 12 अक्टूबर 2005 को अमल में आया था, तब से देश में आरटीआई दिवस मनाया जाता है.
सूचना आयुक्तों के 48 पद खाली
केंद्र और राज्य सरकारें सूचना अधिकार कानून के क्रियान्वयन को लेकर कितनी गंभीर हैं, यह जानने के लिए केंद्रीय और राज्य सूचना आयोग में आयुक्तों के पदों की संख्या देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है. केंद्रीय और राज्यों के आयोग में सूचना आयुक्तों के कुल 156 पद हैं. मगर इसमें से 48 पद लंबे समय से खाली हैं. चौंकाने वाली बात है कि जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश और नगालैंड में तो मुख्य सूचना आयुक्त का पद ही खाली है. 29 में से सिर्फ 12 राज्यों में ही सूचना आयुक्तों के पद पूरी तरह भरे हैं.
3 माह की मेहनत और 400 आरटीआई
पहली बार देश में आरटीआई को लेकर आधिकारिक आंकड़ें सामने आए हैं. एनडीटीवी से यह कहना है संस्था के डायरेक्टर आरएन झा का. संस्था पिछले साल इस रिपोर्ट की पहली किश्त जारी कर चुकी है. देश भर के सभी राज्यों से आरटीआई अर्जियों से जुड़े विभिन्न स्तर के आधिकारिक आंकड़े सामने लाने में ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल इंडिया (TII) को काफी मेहनत करनी पड़ी. डायरेक्टर रमानाथ झा के नेतृत्व में टीम ने तीन महीने में आरटीआई की हालत पर यह रिपोर्ट तैयार की है. देश के सभी राज्यों से आंकड़े जुटाने के लिए संस्था को चार सौ आरटीआई आवेदन डालने पड़े.
एनडीटीवी से बातचीत में संस्था के डायरेक्टर झा कहते हैं, "रिपोर्ट से देश में आरटीआई की बदतर तस्वीर सामने आई है. गड़बड़ियां कई स्तर से हैं. सरकार का मकसद पारदर्शिता को बढ़ावा देने का होना चाहिए, मगर फिलहाल ऐसी इच्छाशक्ति न केंद्र के स्तर से और न ही राज्यों के स्तर से दिख रही है. जब ऊपर से उदासीनता है तो निचले स्तर पर और उदासीनता लाजिमी है. 18 लाख से ज्यादा सेकंड अपील होना इस बात की पुष्टि करता है कि आरटीआई एक्ट को लेकर किस हद तक लापरवाही बरती जा रही है. जनता को सूचनाएं नहीं दीं जा रहीं हैं." राम नाथ झा के मुताबिक सूचना आयुक्त भी लापरवाह अफसरों पर अर्थदंड नहीं लगा रहे, जिससे अफसर इस एक्ट को गंभीरता से नहीं ले रहे.
यूपी सबसे बेपरवाह
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने सभी राज्यों से आरटीआई अर्जियों का आधिकारिक आंकड़ा जुटाया. मगर यूपी ने कई बार मांगे जाने पर भी अर्जियों से जुड़ा कोई आंकड़ा नहीं दिया. न ही नियमानुसार यूपी का सूचना आयोग एनुअल रिपोर्ट ही उपलब्ध करा सका. संस्था के मुताबिक कुल 29 में से सिर्फ 10 राज्यों ने ही अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार की. वहीं छत्तीसगढ़ इकलौता राज्य रहा, जिसने 2005-2017 तक की रिपोर्ट वेबसाइट पर अपडेट की. जबकि सभी राज्यों को आरटीआई को लेकर वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना अनिवार्य है.
लापरवाह अफसरों पर नहीं हो रही कार्रवाई
निर्धारित अवधि में सूचना न देने पर अफसरों पर 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा है. एक साल में ढाई करोड़ अर्जियां और 18 लाख से अधिक शिकायतों के बावजूद सिर्फ 11356 मामलों में ही सूचना आयुक्तों ने पेनाल्टी लगाई. जिससे मात्र एक करोड़ 93 लाख 24 हजार रुपये ही पेनाल्टी लग पाई.
VIDEO: क्या सूचना के अधिकार का कानून बीमार पड़ गया है?
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देश में 12 अक्टूबर को आरटीआई डे की पूर्व संध्या पर जारी इस रिपोर्ट ने देश में इस महत्वाकांक्षी कानून की बदतर हालत की पोल-खोल कर रख दी है. सबसे ज्यादा शिकायतें राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक से सामने आईं. 2005-16 के बीच देश में 2.25 करोड़ लोगों ने आरटीआई डालकर तमाम सूचनाएं मांगी. मगर समय से सूचनाएं देने में बरती गई कोताही से आयोगों तक भारी संख्या में शिकायतें पहुंचीं. बता दें कि यूपीए सरकार में 15 जून 2005 को संसद में पास हुआ आरटीआई एक्ट 12 अक्टूबर 2005 को अमल में आया था, तब से देश में आरटीआई दिवस मनाया जाता है.
सूचना आयुक्तों के 48 पद खाली
केंद्र और राज्य सरकारें सूचना अधिकार कानून के क्रियान्वयन को लेकर कितनी गंभीर हैं, यह जानने के लिए केंद्रीय और राज्य सूचना आयोग में आयुक्तों के पदों की संख्या देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है. केंद्रीय और राज्यों के आयोग में सूचना आयुक्तों के कुल 156 पद हैं. मगर इसमें से 48 पद लंबे समय से खाली हैं. चौंकाने वाली बात है कि जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश और नगालैंड में तो मुख्य सूचना आयुक्त का पद ही खाली है. 29 में से सिर्फ 12 राज्यों में ही सूचना आयुक्तों के पद पूरी तरह भरे हैं.
3 माह की मेहनत और 400 आरटीआई
पहली बार देश में आरटीआई को लेकर आधिकारिक आंकड़ें सामने आए हैं. एनडीटीवी से यह कहना है संस्था के डायरेक्टर आरएन झा का. संस्था पिछले साल इस रिपोर्ट की पहली किश्त जारी कर चुकी है. देश भर के सभी राज्यों से आरटीआई अर्जियों से जुड़े विभिन्न स्तर के आधिकारिक आंकड़े सामने लाने में ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल इंडिया (TII) को काफी मेहनत करनी पड़ी. डायरेक्टर रमानाथ झा के नेतृत्व में टीम ने तीन महीने में आरटीआई की हालत पर यह रिपोर्ट तैयार की है. देश के सभी राज्यों से आंकड़े जुटाने के लिए संस्था को चार सौ आरटीआई आवेदन डालने पड़े.
एनडीटीवी से बातचीत में संस्था के डायरेक्टर झा कहते हैं, "रिपोर्ट से देश में आरटीआई की बदतर तस्वीर सामने आई है. गड़बड़ियां कई स्तर से हैं. सरकार का मकसद पारदर्शिता को बढ़ावा देने का होना चाहिए, मगर फिलहाल ऐसी इच्छाशक्ति न केंद्र के स्तर से और न ही राज्यों के स्तर से दिख रही है. जब ऊपर से उदासीनता है तो निचले स्तर पर और उदासीनता लाजिमी है. 18 लाख से ज्यादा सेकंड अपील होना इस बात की पुष्टि करता है कि आरटीआई एक्ट को लेकर किस हद तक लापरवाही बरती जा रही है. जनता को सूचनाएं नहीं दीं जा रहीं हैं." राम नाथ झा के मुताबिक सूचना आयुक्त भी लापरवाह अफसरों पर अर्थदंड नहीं लगा रहे, जिससे अफसर इस एक्ट को गंभीरता से नहीं ले रहे.
यूपी सबसे बेपरवाह
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने सभी राज्यों से आरटीआई अर्जियों का आधिकारिक आंकड़ा जुटाया. मगर यूपी ने कई बार मांगे जाने पर भी अर्जियों से जुड़ा कोई आंकड़ा नहीं दिया. न ही नियमानुसार यूपी का सूचना आयोग एनुअल रिपोर्ट ही उपलब्ध करा सका. संस्था के मुताबिक कुल 29 में से सिर्फ 10 राज्यों ने ही अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार की. वहीं छत्तीसगढ़ इकलौता राज्य रहा, जिसने 2005-2017 तक की रिपोर्ट वेबसाइट पर अपडेट की. जबकि सभी राज्यों को आरटीआई को लेकर वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना अनिवार्य है.
लापरवाह अफसरों पर नहीं हो रही कार्रवाई
निर्धारित अवधि में सूचना न देने पर अफसरों पर 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा है. एक साल में ढाई करोड़ अर्जियां और 18 लाख से अधिक शिकायतों के बावजूद सिर्फ 11356 मामलों में ही सूचना आयुक्तों ने पेनाल्टी लगाई. जिससे मात्र एक करोड़ 93 लाख 24 हजार रुपये ही पेनाल्टी लग पाई.
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