New Delhi:
ऐसा लगता है कि खेल मंत्रालय अब भारतीय क्रिकेट बोर्ड को सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जवाबदेह मानने लगा है क्योंकि इस आशय का आवेदन बीसीसीआई को भेजा गया है। केंद्रीय सूचना आयोग ने हाल ही में खेल महासंघों से जुड़े कई फैसलों के तहत बीसीसीआई को सार्वजनिक इकाई माना है जिस पर आरटीआई एक्ट लागू होता है। वैसे 2008 में सूचना आयुक्त पद्मा बालसुब्रहमण्यम ने अपने फैसले के तहत बीसीसीआई को इस नियम के दायरे से बाहर रखा था। खेल मंत्रालय के ताजा आदेश (26 अक्तूबर 2010) में हालांकि केरल उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला दिया गया है जिसमें केरल क्रिकेट संघ के अधिकारियों को जन सेवक करार दिया है। उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील हालांकि उच्चतम न्यायालय में खारिज कर दी गई थी। खेल मंत्रालय में संयुक्त सचिव इंजेती श्रीनिवास ने एक आरटीआई याचिका के जवाब में कहा, केरल उच्च न्यायालय ने राज्य क्रिकेट संघ से जुड़े मामले में व्यवस्था दी थी कि पद पर बने रहने के कारण महासंघों को जनता के प्रति जवाबदेह होना होगा। उच्चतम न्यायालय ने भी उच्च न्यायालय की इस व्यवस्था में दखल देने से इनकार कर दिया। उनसे पूछा गया था कि क्या उच्चतम न्यायालय बीसीसीआई अधिकारियों को जन सेवक मानता है। मंत्रालय में अपीली अधिकारी श्रीनिवास ने जन सूचना अधिकारी को बीसीसीआई से जुड़े सवालों संबंधी याचिकायें बोर्ड तक ही पहुंचाने के निर्देश दिए हैं। आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल ने खेल मंत्रालय से यह जानना चाहता था कि बीसीसीआई को उससे क्या मदद मिल रही है, बीसीसीआई का संविधान और पिछले दो साल का बजट क्या है।