
आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारी मंडल की बैठक आज लखनऊ में सारे दिन चलती रही। संघ यूपी में नई जमीन की तलाश में जुटा और इस हिसाब से उसकी यह बैठक काफी अहम मानी जा रही है। इस बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी शामिल हुए।
पिछली बार आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारी मंडल की बैठक 1992 में बाबरी मस्जिद गिरने के पहले लखनऊ में हुई थी। इस बार यह एक ऐसे मौके पर हो रही है, जब केंद्र में पहली बार बीजेपी की पूरी बहुमत की सरकार है, मोदी की लहर है, जिसका इस्तेमाल पार्टी विधानसभा चुनाव में भी कर रही है और अब नजर 2017 में होने राज्य के विधानसभा चुनाव पर भी है।
इस बैठक में संघ की बुनियाद मजबूत करने के उपायों पर बातचीत हुई। चूंकि संघ की ज्यादातर शाखाएं अब बंद हो चुकी हैं। अब ये शाखाएं सिर्फ कागज़ों पर चलती हैं या गाहे-बगाहे त्योहार की तरह... जबकि एक वक्त ऐसा था जब यूपी के तमाम जिलों में नमालूम कितने पार्कों और मैदानों में अलस्सुबह संघ के गढ़वेश धारी कार्यकर्ता कसरत करते नज़र आते थे। लेकिन अब नए युवा उससे कम जुड़ रहे हैं और इसलिए संघ मोदी लहर में बीजेपी को वोट देने वाले उन नौजवानों को अब अपने से जोड़ना चाहता है, जिनका बीजेपी या आरएसएस से कभी कोई वास्ता नहीं रहा है।
हाल में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिले दलित वोटों से संघ काफी उत्साहित है और अब उनकी नजर यूपी में दलित वोटों पर है, जो राज्य में 21 फीसदी हैं। कांठ में दलित मंदिर से लाउड स्पीकर हटाने के मुद्दे को लेकर बीजेपी ने बड़ा आंदोलन चलाया था, जिससे उन्हें वहां दलितों का काफी समर्थन भी मिला। रक्षा बंधन के मौके पर संघ की महिला शाखा दुर्गा वाहिनी की महिलाओं को अपने अपने इलाके में 'दलित भाइयों' को राखी बांधने के निर्देश दिए गए थे। जाहिर है कोशिश मायावति के दलित वोट में सेंध लगाने की है। इस सम्मेलन में दलित वोट भी एक मुद्द है।
इस बैठक में तथाकथित धर्मांतरण पर भी चिंता जताई गई। जिन लोगों का 'बहला-फुसला' कर धर्म परिवर्तन करा लिया गया है, उन्हें फिर हिंदू धर्म में शामिल करने के मुद्द पर बात हुई और आदिवासियों के बीच संघ के कामों पर चर्चा हुई।
लखनऊ में हो रही संघ की यह बैठक अभी दो दिन और चलेगी।