कानपुर में 12 से 15 जुलाई तक होनी है आरएसएस की बैठक (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारकों की चार दिन की बैठक अगले महीने उत्तर प्रदेश के कानपुर में होने जा रही है। उत्तर प्रदेश चुनावों से पहले होने वाली यह बैठक काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। ख़ास बात यह है कि बैठक में सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी भी शामिल होंगे जो पिछले एक वर्ष से अध्ययन अवकाश पर हैं।
सूत्रों के मुताबिक, प्रांत प्रचारकों की यह वार्षिक बैठक है जो हर साल अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के बाद जुलाई में होती है। इस बैठक में देश भर में तैनात आरएसएस के प्रांत प्रचारक हिस्सा लेते हैं। कानपुर में 12 से 15 जुलाई तक होने वाली इस बैठक में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी हिस्सा ले सकते हैं।
यूपी चुनाव बीजेपी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। आरएसएस भी इसमें पार्टी को पूरा सहयोग कर रहा है। खबरों के मुताबिक आरएसएस के वरिष्ठ नेता दत्तात्रेय होसबोले की लखनऊ में तैनाती इसी मक़सद से की गई है ताकि चुनाव की दृष्टि से संगठन को चाक-चौबंद किया जा सके। प्रांत प्रचारकों की बैठक में इस बारे में भी चर्चा हो सकती है।
साल भर बाद सुरेश सोनी की वापसी...
कानपुर बैठक में आरएसएस के संयुक्त महासचिव यानी सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी भी हिस्सा ले सकते हैं। सुरेश सोनी एक वर्ष के अध्ययन अवकाश पर हैं। सोनी ने करीब एक दशक तक बीजेपी और आरएसएस के बीच समन्वय की भूमिका निभाई। मगर केंद्र में अपने बूते बीजेपी की सरकार आने के कुछ समय बाद अक्तूबर 2014 में उनके दायित्व में परिवर्तन किया गया था।
अभी कृष्ण गोपाल यह ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। यह एक बेहद अहम ज़िम्मेदारी है क्योंकि सरकार और पार्टी की नीतियों और निर्णयों पर संघ के साथ विचार-विमर्श के लिए यह बीच की कड़ी है। हालांकि संघ ने पिछले अनुभवों को ध्यान में रखते हुए कृष्ण गोपाल के साथ संघ महासचिव भैय्याजी जोशी और दत्तात्रेय होसबोले को भी ये काम सौंपा है।
संघ ने पिछले साल जानकारी दी थी कि सोनी एक वर्ष के अध्ययन अवकाश पर जा रहे हैं। उनका यह अवकाश अब समाप्त हो रहा है। उन्हें अब संघ के भीतर ही कोई नया दायित्व दिया जाएगा। यह संभावना नहीं है कि बीजेपी के साथ समन्वय की ज़िम्मेदारी उन्हें फिर सौंपी जाए। ग़ौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान सरकार पर व्यापम घोटाले में आरएसएस के कई नेताओं के दबाव में काम करने का आरोप लगाया था और इसमें सुरेश सोनी का नाम भी लिया गया था। हालांकि एमपी सरकार ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया था।
सोरी की वापसी से आरएसएस के भीतरी समीकरणों पर भी असर पड़ेगा
सोनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद क़रीबी हैं। उनकी वापसी से आरएसएस के भीतरी समीकरणों पर भी असर पड़ेगा। बीजेपी में भी इसका असर देखा जा सकेगा। हाल ही में मोदी सरकार में कई सरकारी पदों और संस्थानों में नियुक्तियों पर विवाद हुआ है और यग माना जाता है कि ये नियुक्तियाँ संघ के इशारे पर हुईं। बीजेपी के भीतर मोर्चा खोल कर बैठे हुए सुब्रमण्यम स्वामी को बीजेपी लाकर राज्य सभा दिलवाने में भी संघ नेताओं की बड़ी भूमिका रही मगर अब इस फ़ैसले के औचित्य पर ही सवाल उठ रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक, प्रांत प्रचारकों की यह वार्षिक बैठक है जो हर साल अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के बाद जुलाई में होती है। इस बैठक में देश भर में तैनात आरएसएस के प्रांत प्रचारक हिस्सा लेते हैं। कानपुर में 12 से 15 जुलाई तक होने वाली इस बैठक में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी हिस्सा ले सकते हैं।
यूपी चुनाव बीजेपी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। आरएसएस भी इसमें पार्टी को पूरा सहयोग कर रहा है। खबरों के मुताबिक आरएसएस के वरिष्ठ नेता दत्तात्रेय होसबोले की लखनऊ में तैनाती इसी मक़सद से की गई है ताकि चुनाव की दृष्टि से संगठन को चाक-चौबंद किया जा सके। प्रांत प्रचारकों की बैठक में इस बारे में भी चर्चा हो सकती है।
साल भर बाद सुरेश सोनी की वापसी...
कानपुर बैठक में आरएसएस के संयुक्त महासचिव यानी सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी भी हिस्सा ले सकते हैं। सुरेश सोनी एक वर्ष के अध्ययन अवकाश पर हैं। सोनी ने करीब एक दशक तक बीजेपी और आरएसएस के बीच समन्वय की भूमिका निभाई। मगर केंद्र में अपने बूते बीजेपी की सरकार आने के कुछ समय बाद अक्तूबर 2014 में उनके दायित्व में परिवर्तन किया गया था।
अभी कृष्ण गोपाल यह ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। यह एक बेहद अहम ज़िम्मेदारी है क्योंकि सरकार और पार्टी की नीतियों और निर्णयों पर संघ के साथ विचार-विमर्श के लिए यह बीच की कड़ी है। हालांकि संघ ने पिछले अनुभवों को ध्यान में रखते हुए कृष्ण गोपाल के साथ संघ महासचिव भैय्याजी जोशी और दत्तात्रेय होसबोले को भी ये काम सौंपा है।
संघ ने पिछले साल जानकारी दी थी कि सोनी एक वर्ष के अध्ययन अवकाश पर जा रहे हैं। उनका यह अवकाश अब समाप्त हो रहा है। उन्हें अब संघ के भीतर ही कोई नया दायित्व दिया जाएगा। यह संभावना नहीं है कि बीजेपी के साथ समन्वय की ज़िम्मेदारी उन्हें फिर सौंपी जाए। ग़ौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान सरकार पर व्यापम घोटाले में आरएसएस के कई नेताओं के दबाव में काम करने का आरोप लगाया था और इसमें सुरेश सोनी का नाम भी लिया गया था। हालांकि एमपी सरकार ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया था।
सोरी की वापसी से आरएसएस के भीतरी समीकरणों पर भी असर पड़ेगा
सोनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद क़रीबी हैं। उनकी वापसी से आरएसएस के भीतरी समीकरणों पर भी असर पड़ेगा। बीजेपी में भी इसका असर देखा जा सकेगा। हाल ही में मोदी सरकार में कई सरकारी पदों और संस्थानों में नियुक्तियों पर विवाद हुआ है और यग माना जाता है कि ये नियुक्तियाँ संघ के इशारे पर हुईं। बीजेपी के भीतर मोर्चा खोल कर बैठे हुए सुब्रमण्यम स्वामी को बीजेपी लाकर राज्य सभा दिलवाने में भी संघ नेताओं की बड़ी भूमिका रही मगर अब इस फ़ैसले के औचित्य पर ही सवाल उठ रहे हैं।
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