प्रचारकों की बढ़ती राजनैतिक महत्वाकांक्षा बनी आरएसएस का सिरदर्द

प्रचारकों की बढ़ती राजनैतिक महत्वाकांक्षा बनी आरएसएस का सिरदर्द

नई दिल्ली:

गोवा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के भीतर जो संकट आया, वह अभूतपूर्व है. संघ के 90 साल के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि विभाग संघ चालक को दायित्वमुक्त करने के बाद समूची इकाई ने स्वतंत्र होने का ऐलान कर दिया हो और एक दूसरे आनुषंगिक संगठन (बीजेपी) के विरुद्ध काम कर उसे चुनाव में पराजित करने की सार्वजनिक चुनौती दे डाली हो.

गोवा में ऐसा ही हुआ है. विभाग संघ चालक सुभाष वेलिंगकर को मंगलवार को दायित्वमुक्त किया गया और उसके अगले ही दिन संघ के सैकड़ों कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने स्वयं को अलग कर लिया. हालत यहां तक पहुँच गई कि आरएसएस को चौबीस घंटे के भीतर दूसरी बार गोवा के परिस्थितियों पर बयान जारी करना पड़ा.

सूत्रों के अनुसार वेलिंगकर राज्य की बीजेपी सरकार के खिलाफ काम कर रहे थे. वह भारतीय भाषा सुरक्षा मंच बनाकर अलग से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. उनके भारतीय भाषा सुरक्षा मंच ने अक्टूबर में अलग राजनैतिक दल बनाने का ऐलान किया है. वेलिंगकर ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार की भविष्यवाणी भी की थी. उनकी मांग है कि प्राथमिक शिक्षा में मराठी और कोंकणी भाषाओं को अनिवार्य किया जाए और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को सरकारी मदद रोकी जाए. उनके मंच के कार्यकर्ताओं ने अगस्त के तीसरे हफ़्ते में तिरंगा यात्रा के सिलसिले में राज्य में पहुंचे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के क़ाफ़िले को काले झंडे भी दिखाए थे.

NDTV से बातचीत में वेलिंगकर के तीखे तेवर बरक़रार हैं. उन्होंने मौजूदा संकट के लिए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने ऐलान किया है कि अब उनका एकमात्र लक्ष्य राज्य की बीजेपी सरकार को पराजित करना है. वेलिंगकर की कोशिश राज्य सरकार में बीजेपी की सहयोगी महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी यानी एमजीपी से तालमेल की है.

इस बग़ावत को थामने का फ़िलहाल कोई रास्ता आरएसएस को नहीं सूझ रहा है. संघ ने यह जरूर कहा है कि गोवा विभाग के पदाधिकारियों के नामों का ऐलान जल्द ही कर दिया जाएगा, लेकिन वेलिंगकर के साथ गए सैंकड़ों संघ कार्यकर्ताओं को वापस लाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं, इस बारे में संघ फ़िलहाल कुछ बोलने को तैयार नहीं.

हालांकि विपक्षी पार्टियां इसे आरएसएस और बीजेपी के बीच नूरा-कुश्ती बता रही हैं. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर पूछा है कि क्या यह दोनों के बीच नूरा-कुश्ती नहीं है...? कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बग़ावत आपसी समझ का नतीजा भी हो सकता है, ताकि बीजेपी विरोधी वोटों को कांग्रेस और तेज़ी से पैर पसार रही आम आदमी पार्टी में जाने से रोका जा सके.

संघ में ऐसे हालात पहले भी बने हैं, मगर बात टूट तक नहीं पहुंची. जम्मू-कश्मीर में 2002 के विधानसभा चुनाव में संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने एक अलग राजनीतिक मंच को समर्थन दिया था. बीजेपी को हिन्दू-बहुल जम्मू में इसकी वजह से नुक़सान भी पहुंचा था. इसी तरह गुजरात में केशूभाई पटेल की बग़ावत को संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का समर्थन था, लेकिन वह बग़ावत फुस्स हो गई थी.

संघ के सामने दूसरी समस्या बीजेपी में भेजे गए प्रचारकों की बढ़ती राजनीतिक महत्वाकांक्षा है. इन नेताओं को बीजेपी में संगठन मंत्री और संगठन सहमंत्री की ज़िम्मेदारी दी जाती है. प्रदेश इकाइयों से उनके बढ़ते दखल की शिकायतें लगातार मिल रही हैं. हाल ही में कुछ राज्यों से संगठन मंत्रियों को केंद्र में बुलाया गया. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के राज्य संगठन मंत्रियों को केंद्रीय बीजेपी में जगह दी गई. हालांकि कर्नाटक से दिल्ली बुलाए गए संतोष के बारे में राज्य बीजेपी के कुछ नेता कहते हैं कि वहां के मामलों में उनकी दख़लअंदाज़ी बरक़रार है, क्योंकि वह ऐसे नेताओं का समर्थन कर रहे हैं, जो नहीं चाहते कि पार्टी बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करे.

संघ ने ऐसी शिकायतों के बीच राज्यों के संगठन मंत्रियों और सहमंत्रियों की इसी महीने बैठक बुलाने का फैसला किया है. दिल्ली से सटे सूरजकुंड में तीन दिन की यह बैठक 10 सितंबर से शुरू होगी. हालांकि संघ नेताओं का कहना है कि अगस्त-सितंबर में ऐसी बैठकें हर साल होती हैं. मगर गोवा के मामले को देखते हुए इस बार इस बैठक का महत्व बढ़ गया है. बैठक में संघ महासचिव भैयाजी जोशी भी मौजूद रहेंगे. माना जा रहा है कि संघ के स्वयंसेवकों को राजनीति की फिसलन भरी राह पर संभलकर चलने की नसीहत दी जा सकती है, ताकि संघ नेताओं की बढ़ती राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर लगाम कसी जा सके.


Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com