नोबेल पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
नोबेल पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने कालेधन के खिलाफ सरकार की ताजा कार्रवाई को ‘स्वागत योग्य’ बताते हुए कहा है कि इससे बच्चों के खिलाफ संगठित अपराधों में कुछ कमी जरूर आएगी.
बाल-श्रम और बंधुआ मजदूरी पर रोक तथा बाल अधिकार संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित सत्यार्थी ने बाल दिवस 14 नवंबर के उपलक्ष्य में बच्चों के अधिकारों के संरक्षण और उनके विकास के बारे में कहा, ‘बच्चों के खिलाफ संगठित अपराध खुद में कालेधन का बड़ा जरिया है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कालेधन के खिलाफ की गयी कार्रवाई स्वागत योग्य कदम है.’
सत्यार्थी ने कहा कि, ‘पुराने 1000 और 500 रुपये के बड़े नोटों पर पाबंदी से संगठित बाल अपराधों पर थोड़ा बहुत असर निश्चित रूप से पड़ेगा.’ उन्होंने कहा कि ‘प्रधानमंत्री ने इस पहल को भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई से भी जोड़ कर बहुत अच्छा किया है और यह जरूरी भी है.’
अपने संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के एक अध्ययन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि मानव तस्करी, देह-व्यापार, बाल मजदूरी और बच्चों से भिक्षावृत्ति कराने जैसे संगठित अपराधों का सारा का सारा पैसा ब्लैक मनी (काली कमाई) है. ‘दूरदराज के प्रांतों से बालिकाओं को तस्करी कर हरियाणा में शादी के लिए बेचना या दिल्ली, मुंबई और अन्य नगरों में वेश्यवृत्ति और कालगर्ल के धंधे में डालना, बच्चों को बाल-बंधुआ मजदूरी, यौन-शोषण और भिक्षावृत्ति जैसे अपराधों में लाखों करोड़ रुपये की कमाई की जा रही है.’
उन्होंने कहा, ‘तीन साल पहले का हमारा अनुमान है कि यह पूरा धंधा सालना 21 लाख करोड़ रुपये का है.’ सत्यार्थी ने 10 दिसंबर 2010 को ओसलो (स्वीडन) में पाकिस्तानी मानवाधिकार कार्यकर्ता मलाला यूसुफ जई के साथ नोबेल शंति पुरस्कार ग्रहण करते हुए अपने भाषण में कहा था, ‘बच्चों से उनके सपनों को छीनने से बढ़ कर कोई हिंसा नहीं हो सकती.’ विश्व की सरकारों, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, सामाजिक संगठनों और धार्मिक नेताओं बच्चों के खिलाफ सब प्रकार की हिंसा को समाप्त करने की अपील करते हुए कहा था कि ‘किसी भी सभ्य समाज में दासता, मानव तस्करी, बाल विवाह, बाल श्रम, यौन शोषण और अशिक्षा के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए.’
सत्यार्थी दिल्ली में 10-11 दिसंबर को ‘बच्चों के हित में, नोबेल पुरस्कार विजेता और गणमान्य जन’ शीषर्क एक पहल शुरू करने जा रहे हैं जिसके लिए 34 नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने अपनी सहमति भेज दी है. इनमें से कम से कम 14 स्वयं उपस्थित होंगे और बाकी अपना संदेश भेजेंगे. इस सम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी करनेवाले हैं. सत्यार्थी ने कहा कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों के खिलाफ संगठित अपराध रोकें और उनके विकास के लिए ‘इलाके के अधिकारियों की व्यक्तिगत जवाबदेही तय करें.’
उन्होंने उदाहरण के तौर पर कहा, ‘यदि राजधानी में यमुना पुस्ता और संगम विहार इलाके में बच्चों की चोरी की वारदात ज्यादा होती हैं तो वहां के थानाध्यक्ष की इसके लिए व्यक्तिगत जवाबदेही तय हो. यदि सरकारी स्कूलों में पांचवीं पास बच्चे अच्छी तरह गिनती और अपनी पुस्तक का पाठ नहीं कर पाते, शहरों में व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में बाल मजदूरी हो रही है तो इसके लिए स्कूल के प्रधानाध्यापक, जिला शिक्षा अधिकारी और संबंधित क्षेत्र के श्रम विभाग के अधिकारियों की जवाबदेही तय हो.’ सत्यार्थी ने कहा कि संगठित बाल अपराध की समस्या केवल भारत तक सीमित नहीं है. यह पूरी दुनिया की समस्या है. इससे निपटने के लिए ‘राजनीतिक इच्छा शक्ति’ का अभाव है. उन्होंने कहा कि भारत में बाल शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रगति जरूरी हुई है. बाल श्रम पर रोकथाम की दिशा में भी कानून बने हैं पर अभी प्रगति की गति पर्याप्त नहीं है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
बाल-श्रम और बंधुआ मजदूरी पर रोक तथा बाल अधिकार संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित सत्यार्थी ने बाल दिवस 14 नवंबर के उपलक्ष्य में बच्चों के अधिकारों के संरक्षण और उनके विकास के बारे में कहा, ‘बच्चों के खिलाफ संगठित अपराध खुद में कालेधन का बड़ा जरिया है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कालेधन के खिलाफ की गयी कार्रवाई स्वागत योग्य कदम है.’
सत्यार्थी ने कहा कि, ‘पुराने 1000 और 500 रुपये के बड़े नोटों पर पाबंदी से संगठित बाल अपराधों पर थोड़ा बहुत असर निश्चित रूप से पड़ेगा.’ उन्होंने कहा कि ‘प्रधानमंत्री ने इस पहल को भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई से भी जोड़ कर बहुत अच्छा किया है और यह जरूरी भी है.’
अपने संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के एक अध्ययन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि मानव तस्करी, देह-व्यापार, बाल मजदूरी और बच्चों से भिक्षावृत्ति कराने जैसे संगठित अपराधों का सारा का सारा पैसा ब्लैक मनी (काली कमाई) है. ‘दूरदराज के प्रांतों से बालिकाओं को तस्करी कर हरियाणा में शादी के लिए बेचना या दिल्ली, मुंबई और अन्य नगरों में वेश्यवृत्ति और कालगर्ल के धंधे में डालना, बच्चों को बाल-बंधुआ मजदूरी, यौन-शोषण और भिक्षावृत्ति जैसे अपराधों में लाखों करोड़ रुपये की कमाई की जा रही है.’
उन्होंने कहा, ‘तीन साल पहले का हमारा अनुमान है कि यह पूरा धंधा सालना 21 लाख करोड़ रुपये का है.’ सत्यार्थी ने 10 दिसंबर 2010 को ओसलो (स्वीडन) में पाकिस्तानी मानवाधिकार कार्यकर्ता मलाला यूसुफ जई के साथ नोबेल शंति पुरस्कार ग्रहण करते हुए अपने भाषण में कहा था, ‘बच्चों से उनके सपनों को छीनने से बढ़ कर कोई हिंसा नहीं हो सकती.’ विश्व की सरकारों, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, सामाजिक संगठनों और धार्मिक नेताओं बच्चों के खिलाफ सब प्रकार की हिंसा को समाप्त करने की अपील करते हुए कहा था कि ‘किसी भी सभ्य समाज में दासता, मानव तस्करी, बाल विवाह, बाल श्रम, यौन शोषण और अशिक्षा के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए.’
सत्यार्थी दिल्ली में 10-11 दिसंबर को ‘बच्चों के हित में, नोबेल पुरस्कार विजेता और गणमान्य जन’ शीषर्क एक पहल शुरू करने जा रहे हैं जिसके लिए 34 नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने अपनी सहमति भेज दी है. इनमें से कम से कम 14 स्वयं उपस्थित होंगे और बाकी अपना संदेश भेजेंगे. इस सम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी करनेवाले हैं. सत्यार्थी ने कहा कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों के खिलाफ संगठित अपराध रोकें और उनके विकास के लिए ‘इलाके के अधिकारियों की व्यक्तिगत जवाबदेही तय करें.’
उन्होंने उदाहरण के तौर पर कहा, ‘यदि राजधानी में यमुना पुस्ता और संगम विहार इलाके में बच्चों की चोरी की वारदात ज्यादा होती हैं तो वहां के थानाध्यक्ष की इसके लिए व्यक्तिगत जवाबदेही तय हो. यदि सरकारी स्कूलों में पांचवीं पास बच्चे अच्छी तरह गिनती और अपनी पुस्तक का पाठ नहीं कर पाते, शहरों में व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में बाल मजदूरी हो रही है तो इसके लिए स्कूल के प्रधानाध्यापक, जिला शिक्षा अधिकारी और संबंधित क्षेत्र के श्रम विभाग के अधिकारियों की जवाबदेही तय हो.’ सत्यार्थी ने कहा कि संगठित बाल अपराध की समस्या केवल भारत तक सीमित नहीं है. यह पूरी दुनिया की समस्या है. इससे निपटने के लिए ‘राजनीतिक इच्छा शक्ति’ का अभाव है. उन्होंने कहा कि भारत में बाल शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रगति जरूरी हुई है. बाल श्रम पर रोकथाम की दिशा में भी कानून बने हैं पर अभी प्रगति की गति पर्याप्त नहीं है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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