विज्ञापन
This Article is From Sep 07, 2016

पिछले 7 दशकों में बहुत सरकारें बनीं, लेकिन व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई अभी बाकी : गोविंदाचार्य

पिछले 7 दशकों में बहुत सरकारें बनीं, लेकिन व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई अभी बाकी : गोविंदाचार्य
केएन गोविंदाचार्य का फाइल फोटो...
नई दिल्‍ली: आजादी के 69 साल बाद भी देश में असंतोष बढ़ने पर चिंता व्यक्त करते हुए जाने-माने चिंतक केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि पिछले सात दशकों में देश ने बहुत सरकारें देखी, बहुत सारी व्यवस्थाएं भी बनीं, लेकिन रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार, शिक्षा में से एक का भी पूर्णत: इंतजाम नहीं हो सका. ऐसे में व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई अभी बाकी है. प्रकृति केंद्रित विकास को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत की अर्थनीति और राजनीति गौ, गंगा के अनुकूल हो यही व्यापक लोकहित में उठाया गया कदम होगा.

आखिर, आजाद भारत में इतना असंतोष क्यों?
गोविंदाचार्य ने सवाल किया, 'आखिर, आजाद भारत में इतना असंतोष क्यों है, इसका क्या कारण हो सकता है? और दिन पर दिन असंतोष की खाई बढ़ती ही जा रही है..ऐसा क्यों हो रहा है? देश में फैल रहे इन असंतोषों से कैसे निपटेंगे? वास्तव में इस व्यवस्था में इसका कोई पुख्ता हल है क्या? उन्होंने कहा कि देश ने पिछले 69 सालों में बहुत सरकारें देखी, यहां से वहां तक बहुत सारी व्यवस्थाएं भी बनीं, लेकिन किसी भी प्रकार से रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार, शिक्षा में किसी एक का भी पूर्णत: इंतजाम नहीं हो सका. इसके लिए किसको जिम्मेदार ठहराया जाए? उन्होंने कहा कि आजादी के बाद हमने अंग्रेजों की अनेक व्यवस्थाओं को अपनाया जो लूट सिस्टम था. अंग्रेजी व्यवस्था बनीं ही थी भारत को बांटकर, आपस में लड़ाकर हमेशा राज कायम रखने की और उस व्यवस्था को ही आज हम अपने उत्थान का मार्ग मान बैठे हैं.

गांधीजी की स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई सत्ता हस्तांतरण के लिए नहीं थी: गोविंदाचार्य
गोविंदाचार्य ने कहा कि गांधीजी कहा करते थे कि अंग्रेजों की व्यवस्था चली जाए तो ही मैं समझूंगा कि स्वराज आ गया. अंग्रेज चले जाएं पर उनकी व्यवस्थाएं रह जाएं तो मै समझूंगा कि स्वराज नहीं आया. गांधीजी की स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई सिर्फ सत्ता हस्तांतरण के लिए नहीं, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन ही उनका मुख्य उदेश्य था, क्योंकि अंग्रेजों की बनाई प्रशासनिक, शैक्षणिक, राजनैतिक और सामाजिक व्यवस्था भारत को कमजोर करके भारतीयों पर राज करने की थी.

'अंग्रेजों ने एक व्यवस्था बनाई थी जो बांटो और राज करो पर आधारित थी'
आरएसएस के प्रचारक रहे गोविंदाचार्य ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत पर राज कायम रखने के लिए 90 सालों में कई व्यवस्थाएं बनाई थीं, जिसका एक इतिहास है. इसे समझने की जरूरत है. 1935 में भारत शासन अधिनियम के तौर पर अंग्रेजों ने एक व्यवस्था बनाई थी जो बांटो और राज करो पर आधारित थी. गोविंदाचार्य ने कहा कि अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था में बैठने वाला व्यक्ति समरसता को तोड़ने वाली दुर्बलताओं के चलते बेहद शक्तिशाली और निरंकुश बन जाता है. इसी कारण जिस नेता को हम चुनते हैं और जब वह कुर्सी पर बैठता है तो वो भी अंग्रजों की तरह व्यवहार करने लगता है. हमको बांटता है, लूटता है और सिर्फ राजनीति करता है. प्रशासनिक सेवक और अन्य अधिकारी भी अंग्रेजों की लूट व्यवस्था को हथियार बना लेते हैं, जिस कारण हम आजाद होकर भी, मनमुताबिक विकास के लिए तरस रहे हैं. जल, जमीन के संरक्षण एवं प्रकृति आधारित विकास के महत्व को रेखांकित करते हुए गोविंदाचार्य ने कहा कि न्यूजीलैंड में इस साल के अंत तक जमीन और नदियों को एक व्यक्तित्व मानकर कानून बनाने की बात कही गई है. भारत में इस संदर्भ की चर्चा जोर पकड़ रही है. इसका जुड़ाव मूलत: इस बहस से है कि मनुष्य प्रकृति का विजेता है या हिस्सा.

'सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों की पूरी तरह अवहेलना हो रही है'
उन्होंने कहा कि जो प्रकृति का हिस्सा मानते है उनके विकास की समझ, दिशा और तरीका अलग होगा. जो मानव को प्रकृति का विजेता मानते है वो पिछले 500 वर्षों से चले आर्थिक, राजनैतिक व्यवस्थाओं की आज की परिणीति के प्रति जबावदेह होंगे. उन्होंने कहा कि आज का यह मानव केंद्रित विकास की क्षमता के मूल में उन्मुक्त उपभोगवादी शोषणजनक आधे अधूरे विकास के रूप में दिखता है. सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों की पूरी तरह अवहेलना हो रही है. यह प्रक्रिया हथियारवाद, उपनिवेशवाद, सरकारवाद से गुजरती हुई पाशविक उपभोगवादी बाजारवाद की स्थिति तक पंहुची.

'गंगा की निर्मलता के लिए जरूरी है उसकी अविरलता'
गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कराने को रेखांकित करते हुए गोविंदाचार्य ने कहा कि गंगा की निर्मलता के लिए जरूरी है अविरलता. अविरलता के लिए जरूरी है निर्बाध न्यूनतम प्रवाह, लेकिन गंगा की जमीन कितनी है? इसकी नापजोख और अभी के राजस्व रिकॉर्ड से उसका आंकलन होना है. गोविंदाचार्य ने कहा कि नदी के बांध स्तर के दोनों तरफ कम से कम 500 मीटर गंगा की जमीन मानी जाए. तभी अतिक्रमण सुनिश्चित रूप से परिभाषित हो पाएगा. उन्होंने कहा कि इसलिए अविरल गंगा निर्मल गंगा की लड़ाई इन दो मुद्दों पर केंद्रित होगी कि गंगा में न्न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित हो. नदी के मुख्य प्रवाह में 70 प्रतिशत पानी बना रहे. इसके पीछे भावना यह है कि नदी केवल मनुष्यों के उपभोग के लिए जल संसाधन मात्र नहीं है. उसका अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व है. पहाड़, जमीन, जैव विविधता पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि प्रकार के जीव सृष्टि का भी अधिकार है. मनुष्य का अस्तित्व ही सृष्टि संरक्षण के लिए प्रकृति द्वारा क्षमता युक्त योनि के रूप में सृजित हुआ.

'भारत की अर्थनीति और राजनीति गौ, गंगा के अनुकूल हो'
गोविंदाचार्य ने कहा कि जो बात गंगा के बारे में लागू होगी वही बात अन्य नदी, झील, पोखर, तालाब, कुंआ आदि पर भी होगी. समुद्र भी इसी प्रकृति का हिस्सा माना जाएगा. इन सब के अनुकूल रहते हुए मानव को अपनी समृद्धि और संस्कृति के लिए आवश्यक राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संरचना खड़ी करनी होगी. यही मानव केंद्रित विकास की बजाय प्रकृति केंद्रित विकास का महत्वपूर्ण तत्व होगा. उन्होंने कहा कि जो बात गंगा और तदनुसार सभी जल सृष्टि के अवयवों के बारे में लागू होती है, वही बात गौमाता के बारे में भी लागू होगी। इसलिए भारत की अर्थनीति और राजनीति गौ, गंगा के अनुकूल हो.. यही व्यापक लोकहित में उठाया गया कदम होगा.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
केएन गोविंदाचार्य, भारत, गंगा, भारतीय राजनीति, गाय, KN Govindacharya, India, Indian Governments, Cow, Ganga River
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com