जन्मदिन विशेष : आज भी दिलों में राज करते हैं फिराक गोरखपुरी, पढ़ें उनके चुनिंदा शेर

जन्मदिन विशेष : आज भी दिलों में राज करते हैं फिराक गोरखपुरी, पढ़ें उनके चुनिंदा शेर

खास बातें

  • फिराक गोरखपुरी का 28 अगस्त 1896 को हुआ था जन्म.
  • जन्मदिन के मौके पर ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे हैं फिराक.
  • साहित्यप्रेमी ट्विटर पर उनके लिखे शेर पोस्ट कर रहे हैं.
नई दिल्ली:

उर्दू के प्रसिद्ध रचनाकार रघुपति सहाय 'फिराक गोरखपुरी' की जिंदगी की कहानी किसी से छिपी नहीं है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 28 अगस्त 1896 को जन्मे फिराक नेसिविल सर्विसेस की अपनी नौकरी छोड़ दी थी. जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें कांग्रेस भवन में अवर सचिव की नौकरी दी, लेकिन बाद में नेहरू के यूरोप जाने के बाद उन्होंने वह भी छोड़ दी.

सन 1970 में उनके उर्दू काव्य 'गुले नग्मा' के लिए उन्हें ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार पाने वाले फिराक के जीवन का एक किस्सा मशहूर है कि एक बार एक मुशायरे में मीना कुमारी के आने की खबर सुनकर वह मुशायरा छोड़कर चले गए थे. इसका वाकये जिक्र ‘फिराक गोरखपुरी: द पोयट ऑफ पेन एंड एक्सटैसी’ नामक पुस्तक में किया गया है.

अपने जीवनकाल में फिराक ने कई गजल, शेर, कविताएं और कहानियां लिखीं. 'साधु और कुटिया' नाम का उपन्यास भी उन्होंने लिखा. उन्हें फारसी, हिंदी, ब्रजभाषा और भारतीय संस्कृति की गहरी समझ थी, इस वजह से उनकी कृतियों में भारत की असली छवि नजर आती थी. उन्हें सन 1968 में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. 3 मार्च 1982 को उनकी मौत हो गई थी.

फिराक गोरखपुरी के जन्मदिन के मौके पर साहित्यप्रेमी ट्विटर पर उनके लिखे शेर पोस्ट कर रहे हैं. ट्विटर पर सुबह से 'Firaq'ट्रेंड कर रहे हैं. आनंद प्रधान और इयान वूलफोर्ड ने भी उनकी शायरी के जरिए उन्हें याद किया.
 


ऑस्ट्रेलिया की ला ट्रॉब युनिवर्सिटी में हिंदी के प्राध्यापक इयान वूलफॉर्ड ने भी गोरखपुरी के शेर ट्वीट किए.
 


 
 
 

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