नई दिल्ली:
करीब 70 साल से नागरिकता की आस में बैठे पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी खुद को ठगा हुआ महूसस कर रहे हैं, क्योंकि जिस भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उन्हें भारतीय नागरिकता दिलाने के नाम पर वोट बटोरे, वह आज 'यू-टर्न' ले चुकी है, और इसकी वजह बनी है जम्मू एवं कश्मीर की सरकार. दरअसल, राज्य की सत्ता में भागीदार बीजेपी ने पीडीपी के सामने घुटने टेकते हुए इन शरणार्थियों को स्थायी नागरिकता दिए जाने के स्थान पर सिर्फ एक प्रमाणपत्र देने पर मुहर लगा दी है.
वैसे, अगर आप अमेरिका में एक निर्धारित अवधि तक रह लें, तो आपको वहां की नागरिकता स्वतः मिल जाती है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में रह रहे लाखों शरणार्थी पिछले 70 साल से भारतीय नागरिकता के लिए तरस ही रहे हैं. बंटवारे के समय पश्चिमी पाकिस्तान से आए ये शरणार्थी सिर्फ संसदीय चुनाव में मतदान कर सकते हैं, और नगरपालिका और विधानसभा के लिए होने वाले चुनाव में मतदान का अधिकार इन्हें नहीं मिला है. वे न तो राज्य सरकार की नौकरी कर सकते हैं, न उन्हें राज्य सरकार से मिलने वाली सुविधा हासिल हो सकती हैं.
अब पिछले डेढ़ साल से बीजेपी जम्मू-कश्मीर में सत्तासान है, और हर मंच पर समर्थन का वादा करने के बावजूद उसने अब पीडीपी के दबाव में शरणार्थियों को राज्य का नागरिक बनाए जाने के स्थान पर सिर्फ डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने का ऐलान करने को मंज़ूरी दे दी. शरणार्थियों का मानना है कि उन्हें जो प्रमाणपत्र दिए जा रहे हैं, वे सिर्फ केंद्र सरकार के मामलों में काम आने वाले हैं, जबकि राज्य के नागरिकों को मिलने वाले अधिकारों से वे पहले की तरह वंचित ही रह जाएंगे.
और तो और, इन एक लाख से भी ज़्यादा शरणार्थियों को उस समय भी ज़ोरदार झटका लगा, जब लोकसभा चुनाव के वक्त इन्हें वोटबैंक की तरह इस्तेमाल करने वाले नेशनल कांफ्रेस और कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दलों ने भी हुर्रियत द्वारा किए जा रहे इनके विरोध का समर्थन कर डाला. इतना ही नहीं, बीजेपी ने भी, जो 70 साल से विस्थापितों के रूप में रह रहे इन लोगों के प्रत्येक परिवार को 35 लाख रुपये का मुआवज़ा दिलाने की मांग का समर्थन करती आ रही थी, केंद्र तथा राज्य में सत्ता में बैठ जाने के बाद मुआवज़ा घटकर पांच लाख रह जाना स्वीकार कर लिया.
वैसे, अगर आप अमेरिका में एक निर्धारित अवधि तक रह लें, तो आपको वहां की नागरिकता स्वतः मिल जाती है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में रह रहे लाखों शरणार्थी पिछले 70 साल से भारतीय नागरिकता के लिए तरस ही रहे हैं. बंटवारे के समय पश्चिमी पाकिस्तान से आए ये शरणार्थी सिर्फ संसदीय चुनाव में मतदान कर सकते हैं, और नगरपालिका और विधानसभा के लिए होने वाले चुनाव में मतदान का अधिकार इन्हें नहीं मिला है. वे न तो राज्य सरकार की नौकरी कर सकते हैं, न उन्हें राज्य सरकार से मिलने वाली सुविधा हासिल हो सकती हैं.
अब पिछले डेढ़ साल से बीजेपी जम्मू-कश्मीर में सत्तासान है, और हर मंच पर समर्थन का वादा करने के बावजूद उसने अब पीडीपी के दबाव में शरणार्थियों को राज्य का नागरिक बनाए जाने के स्थान पर सिर्फ डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने का ऐलान करने को मंज़ूरी दे दी. शरणार्थियों का मानना है कि उन्हें जो प्रमाणपत्र दिए जा रहे हैं, वे सिर्फ केंद्र सरकार के मामलों में काम आने वाले हैं, जबकि राज्य के नागरिकों को मिलने वाले अधिकारों से वे पहले की तरह वंचित ही रह जाएंगे.
और तो और, इन एक लाख से भी ज़्यादा शरणार्थियों को उस समय भी ज़ोरदार झटका लगा, जब लोकसभा चुनाव के वक्त इन्हें वोटबैंक की तरह इस्तेमाल करने वाले नेशनल कांफ्रेस और कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दलों ने भी हुर्रियत द्वारा किए जा रहे इनके विरोध का समर्थन कर डाला. इतना ही नहीं, बीजेपी ने भी, जो 70 साल से विस्थापितों के रूप में रह रहे इन लोगों के प्रत्येक परिवार को 35 लाख रुपये का मुआवज़ा दिलाने की मांग का समर्थन करती आ रही थी, केंद्र तथा राज्य में सत्ता में बैठ जाने के बाद मुआवज़ा घटकर पांच लाख रह जाना स्वीकार कर लिया.
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