CM नीतीश कुमार ने बीजेपी के दबाव में तो नहीं किया स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के प्रधान सचिव का तबादला!

माना जा रहा है कि नीतीश ने उप मुख्य मंत्री सुशील मोदी और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के दबाव में कोरोना के लड़ाई के बीच में 'सेनापति' को बदला है और वह भी एक ऐसे अधिकारी को जिसकी ईमानदारी और विभागीय कामकाज पर सरकार के विरोधी भी उंगुली नहीं उठाते थे.

CM नीतीश कुमार ने बीजेपी के दबाव में तो नहीं किया स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के प्रधान सचिव का तबादला!

माना जा रहा है सीएम ने बीजेपी के दबाव में प्रधान सचिव संजय कुमार का ट्रांसफर किया है

पटना :

बिहार (Bihar) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) यूं तो प्रधान सचिव और सचिव की पोस्टिंग और ट्रांसफर अपनी इच्छा और विवेक के अनुसार करते हैं, लेकिन पिछले हफ़्ते उन्होंने जब स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार (Sanjay Kumar) का तबादला किया तो इन अटकलों ने जोर पकड़ लिया कि यह तबादला राज्‍य की सत्‍ता में सहयोगी दल बीजेपी (BJP) के दबाव में किया गया है. माना जा रहा हैं कि नीतीश ने उप मुख्य मंत्री सुशील मोदी और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के दबाव में कोरोना के लड़ाई के बीच में 'सेनापति' को बदला है और वह भी एक ऐसे अधिकारी को जिसकी ईमानदारी और विभागीय कामकाज पर सरकार के विरोधी भी उंगुली नहीं उठाते थे. हालांकि बीजेपी के लोगों का कहना है कि मंत्री मंगल पांडेय और स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार के बीच रिश्ते इतने ख़राब हो गये थे कि एक का जाना तय था. इनके बीच रिश्‍ते इतने तल्‍ख हो गए थे कि दोनों के बीच बातचीत भी बंद थी. इस बारे में ख़ुद उप मुख्य मंत्री सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को जानकारी दी थी. इस बीच, जब एक दिन स्वास्थ्य विभाग की वीडियो कॉन्‍फेंसिंग के जरिये हुई नियमित समीक्षा बैठक के दौरान मंगल पांडेय ने संजय कुमार के साथ स्वास्थ्य विभाग के अपने चेंबर में बैठने से इनकार कर दिया और तब नीतीश को अहसास हुआ कि पानी सर से ऊपर जा चुका है और उन्हें इन दोनों में से एक को चुनना होगा.

2020 के चुनावी वर्ष होने और राज्‍य के विधानसभा चुनावों को लेकर अनिश्चितता के इस माहौल में नीतीश कुमार ने शायद ये आकलन किया कि फ़िलहाल उनकी स्थिति BJP को नाख़ुश करने की नहीं है इसलिए उन्होंने मजबूरी में संजय कुमार का एक तरह से गठबंधन की राजनीति के लिए 'बलिदान' कर दिया. वैसे, जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेता भी मानते हैं कि इस निर्णय से नीतीश कुमार की छवि को धक्का लगा है और एक संदेश गया है कि वो अगर अपने पर बन जाए तो ईमानदार और क़ाबिल अफ़सरों को भी 'बलि चढ़ाने' में देर नहीं लगाते. इसके साथ ही बिहार में अधिकारियों को यह संदेश भी गया है कि वे जेडीयू के मंत्रियों की बात मानें या न माने, लेकिन BJP के मंत्रियों को ख़ुश रखना उनके अपने भविष्य के लिए जरूरी है. हालांकि चुनावी वर्ष में नीतीश ने पिछले वर्ष एक विवादास्पद पुलिस अधिकारी, जिस पर आय से अधिक संपत्ति रखने का केस चल रहा हैं, का निलंबन ख़त्म कर उसकी पोस्टिंग लोकसभा चुनाव के बीच की थी. माना जा रहा था कि उसके जाति के विधायकों के दबाव में यह फैसला किया गया. ऐसे ही शराबबंदी के अपने सबसे महत्वपूर्ण अभियान पर जब अपने पार्टी के नेता पर बन आई् तो उन्होंने केके पाठक जैसे तेजतर्रार अधिकारी का भी तबादला कर दिया. इसके बाद से आज तक राज्‍य में शराबबंदी मज़ाक़ बनकर ही रह गया हैं .

हालांकि बिहार बीजेपी के नेता कहते हैं मंगल पांडेय को जबरदस्ती 'विलेन' बताया जा रहा है बल्कि सच्चाई यह है कि नीतीश ख़ुद ही संजय कुमार से पीछा छुड़ाना चाहते थे. इन BJP नेताओं ने पिछले माह पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एक डॉक्टर के ख़िलाफ़ संजय कुमार द्वारा की गई  निलंबन की कार्रवाई की ओर इशारा किया. इन नेताओं का कहना है कि ये डॉक्टर चूंकि नीतीश के स्वजातीय हैं इसलिए सीएम उसी समय से संजय कुमार से ख़फ़ा चल रहे थे.

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