विवादों से रहा गहरा नाता फिर भी हर पार्टी की जरूरत बने रहे राम जेठमलानी

विवादों से रहा गहरा नाता फिर भी हर पार्टी की जरूरत बने रहे राम जेठमलानी

नई दिल्‍ली :

चर्चित, हाई-प्रोफाइल और विवादित मुकदमों की पैरवी के साथ विभिन्‍न दलों के साथ जुड़ने और उनसे नाता तोड़ने के क्रम  में प्रसिद्ध वकील राम जेठमलानी अबकी बार बिहार में लालू प्रसाद की राजद की 'बैसाखी' से राज्‍यसभा पहुंचे हैं। 93 वर्षीय जेठमलानी ने जिस तरह अपने पेशेवर जीवन में नेताओं से लेकर अभिनेताओं तक के बड़े चर्चित और विवादित केसों को जीता, संभवतया इसीलिए जिस दल में चाहा, उसमें वह आते-जाते रहे। वक्त के साथ सियासी निष्‍ठाएं बदलते रहे और सत्‍ता के गलियारों में पहुंचते रहे। माना जा रहा है कि वह चारा घोटाले में लालू प्रसाद का केस लड़ रहे हैं। उसी के कारण उनको पार्टी की तरफ से राज्‍यसभा में भेजा गया।

सियासी आगाज
अविभाजित भारत के सिंध प्रांत से ताल्‍लुक रखने वाले जेठमलानी पहली बार महाराष्‍ट्र के उल्‍लासनगर से 1971 में निर्दलीय प्रत्‍याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे। उस चुनाव में उनको भाजपा और शिवसेना ने समर्थन दिया था लेकिन उनको हार का सामना करना पड़ा।

आपातकाल का दौर
1975-77 के दौरान आपातकाल के दौरान उन्‍होंने इंदिरा गांधी का पुरजोर विरोध किया। उसके बाद छठी और सातवीं लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से मुंबई से जीते।

राज्‍यसभा सदस्‍य
पहली बार 1988 में राज्‍यसभा सदस्‍य रहे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कानून और शहरी मंत्रालय और रोजगार मंत्री रहे। माना जाता है कि वाजपेयी के साथ उनके संबंध कभी बहुत मधुर नहीं रहे। 2004 के चुनाव में वह लखनऊ से वाजपेयी के खिलाफ लड़े। इस चक्‍कर में कांग्रेस ने कोई प्रत्‍याशी नहीं उतारा था। लेकिन जेठमलानी चुनाव हार गए। इसके बावजूद 2010 में भाजपा ने उनको राजस्‍थान से राज्‍यसभा भेजा। 2012 में यूपीए सरकार के दौरान उजागर हो रहे भ्रष्‍टाचार के मामलों पर उन्‍होंने भाजपा के ऊपर शांत रहने का आरोप लगाते हुए आलोचना की थी। इसके चलते उनको पार्टी से निकाल दिया गया। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्‍होंने नरेंद्र मोदी का जबर्दस्‍त समर्थन किया था लेकिन काले धन के मसले पर बाद में वह उनके मुखर विरोधी हो गए।
 


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