
सचिन पायलट और अशोक गहलोत के साथ राहुल गांधी.
जयपुर:
कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष को एकजुट करने की कवायद काफी दिनों से चल रही है लेकिन कुछ दल एक झंडे के तले आने में परहेज करते दिख रहे हैं. हालिया विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को तीन राज्यों में मिली फतह से एकजुटता का रास्ता प्रबल तो हुआ लेकिन जब स्टालिन ने लोकसभा चुनाव में विपक्ष के नेतृत्व के लिए राहुल गांधी का नाम लिया तो कुछ दलों की भौंहें टेढ़ी हो गईं. इसका असर सोमवार को राजस्थान में नए मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के शपथ समारोह में दिखाई दिया.
शपथ समारोह से बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दूरी बना ली. वामपंथी दलों ने राहुल को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित करने के सुझाव पर आपत्ति जताई और समारोह से किनारा कर लिया.
गुलाबी नगरी जयपुर के अल्बर्ट हॉल में सजे भव्य मंच पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने सोमवार को पद एवं गोपनीयता की शपथ ली तो विपक्ष के कई दिग्गज नेता इसके गवाह बने, लेकिन पार्टी का खुलकर समर्थन करने वाले अखिलेश यादव और मायावती जैसे बड़े नाम यहां नहीं दिखाई दिए. वाम दलों की तरफ से भी बड़ा चेहरा नहीं दिखाई दिया.
कांग्रेस ने अखिलेश और मायावती जैसे विपक्ष के बड़े चेहरों की गैरमौजूदगी को ज्यादा तवज्जो नहीं देने की कोशिश करते हुए कहा कि कांग्रेस में शपथ ग्रहण 'शक्ति प्रदर्शन का अवसर नहीं होता है.' सपा एवं बसपा विपक्षी एकजुटता के साथ हैं. वैसे, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के हालिया विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पटखनी देने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विपक्षी एकजुटता की धुरी बनते दिखे तो दूसरे कई विपक्षी दलों के आला नेताओं की शिरकत ने बीजेपी एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ व्यापक गठबंधन से जुड़ी कांग्रेस की उम्मीदों को पर लगाने का काम किया.
शपथ ग्रहण में राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं एचडी देवगौड़ा और कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के नेता एन चंद्रबाबू नायडू, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार, लोकतांत्रिक जनता दल के शरद यादव, द्रमुक नेता एमके स्टालिन, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एवं जद (एस) नेता एचडी कुमारस्वामी, राजद नेता तेजस्वी यादव, नेशनल कान्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला और तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी शामिल हुए. इनके साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन और हिंदुस्तान अवामी मोर्चा के जीतन राम मांझी भी मौजूद थे. लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, भूपेंद्र हुड्डा, सिद्धरमैया, आनंद शर्मा, तरुण गोगोई, नवजोत सिंह सिद्धू, अविनाश पांडे सहित कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी शपथ ग्रहण कार्यक्रम में पहुंचे.
यह भी पढ़ें : अशोक गहलोत तीसरी बार बने राजस्थान के सीएम, शपथ ग्रहण समारोह में दिखी विपक्ष की एकजुटता
सपा, बसपा और वाम दलों के बड़े नेताओं की गैरमौजूदगी के बारे पूछे जाने पर कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, ''शपथ ग्रहण समारोह शक्ति प्रदर्शन के अवसर नहीं होते हैं. इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि सपा और बसपा ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन दिया है.'' विपक्षी एकजुटता के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ''मतदाता चाहते हैं कि जनता के मुद्दों पर स्वस्थ और साफ-सुथरी राजनीति को बहाल करने में हम एकजुट हों. विपक्षी दल इसी भावना से काम कर रहे हैं.''
VIDEO : अशोक गहलोत ने ली सीएम के पद शपथ
गत मई महीने में कर्नाटक में कांग्रेस-जद(एस) गठबंधन सरकार के शपथ ग्रहण कार्यक्रम के बाद यह दूसरा मौका था जब विपक्षी दलों के नेता इस तरह से एक मंच पर नजर आए हैं. विपक्षी एकजुटता की यह कोशिश उस वक्त दिखी है जब तीन राज्यों में जीत के बाद कांग्रेस और राहुल गांधी राजनीतिक हैसियत की लिहाज से पहले की तुलना में खुद को बहुत बेहतर स्थिति में महसूस कर रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इन तीनों राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद विपक्षी एकजुटता के साथ राहुल गांधी के कद में इजाफा साफ तौर पर दिख रहा है. वैसे, इसकी बानगी शनिवार को तमिलनाडु में देखने को मिली जब द्रमुक नेता स्टालिन ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने पैरवी की.
(इनपुट भाषा से)
शपथ समारोह से बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दूरी बना ली. वामपंथी दलों ने राहुल को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित करने के सुझाव पर आपत्ति जताई और समारोह से किनारा कर लिया.
गुलाबी नगरी जयपुर के अल्बर्ट हॉल में सजे भव्य मंच पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने सोमवार को पद एवं गोपनीयता की शपथ ली तो विपक्ष के कई दिग्गज नेता इसके गवाह बने, लेकिन पार्टी का खुलकर समर्थन करने वाले अखिलेश यादव और मायावती जैसे बड़े नाम यहां नहीं दिखाई दिए. वाम दलों की तरफ से भी बड़ा चेहरा नहीं दिखाई दिया.
कांग्रेस ने अखिलेश और मायावती जैसे विपक्ष के बड़े चेहरों की गैरमौजूदगी को ज्यादा तवज्जो नहीं देने की कोशिश करते हुए कहा कि कांग्रेस में शपथ ग्रहण 'शक्ति प्रदर्शन का अवसर नहीं होता है.' सपा एवं बसपा विपक्षी एकजुटता के साथ हैं. वैसे, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के हालिया विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पटखनी देने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विपक्षी एकजुटता की धुरी बनते दिखे तो दूसरे कई विपक्षी दलों के आला नेताओं की शिरकत ने बीजेपी एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ व्यापक गठबंधन से जुड़ी कांग्रेस की उम्मीदों को पर लगाने का काम किया.
शपथ ग्रहण में राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं एचडी देवगौड़ा और कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के नेता एन चंद्रबाबू नायडू, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार, लोकतांत्रिक जनता दल के शरद यादव, द्रमुक नेता एमके स्टालिन, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एवं जद (एस) नेता एचडी कुमारस्वामी, राजद नेता तेजस्वी यादव, नेशनल कान्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला और तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी शामिल हुए. इनके साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन और हिंदुस्तान अवामी मोर्चा के जीतन राम मांझी भी मौजूद थे. लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, भूपेंद्र हुड्डा, सिद्धरमैया, आनंद शर्मा, तरुण गोगोई, नवजोत सिंह सिद्धू, अविनाश पांडे सहित कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी शपथ ग्रहण कार्यक्रम में पहुंचे.
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सपा, बसपा और वाम दलों के बड़े नेताओं की गैरमौजूदगी के बारे पूछे जाने पर कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, ''शपथ ग्रहण समारोह शक्ति प्रदर्शन के अवसर नहीं होते हैं. इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि सपा और बसपा ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन दिया है.'' विपक्षी एकजुटता के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ''मतदाता चाहते हैं कि जनता के मुद्दों पर स्वस्थ और साफ-सुथरी राजनीति को बहाल करने में हम एकजुट हों. विपक्षी दल इसी भावना से काम कर रहे हैं.''
VIDEO : अशोक गहलोत ने ली सीएम के पद शपथ
गत मई महीने में कर्नाटक में कांग्रेस-जद(एस) गठबंधन सरकार के शपथ ग्रहण कार्यक्रम के बाद यह दूसरा मौका था जब विपक्षी दलों के नेता इस तरह से एक मंच पर नजर आए हैं. विपक्षी एकजुटता की यह कोशिश उस वक्त दिखी है जब तीन राज्यों में जीत के बाद कांग्रेस और राहुल गांधी राजनीतिक हैसियत की लिहाज से पहले की तुलना में खुद को बहुत बेहतर स्थिति में महसूस कर रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इन तीनों राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद विपक्षी एकजुटता के साथ राहुल गांधी के कद में इजाफा साफ तौर पर दिख रहा है. वैसे, इसकी बानगी शनिवार को तमिलनाडु में देखने को मिली जब द्रमुक नेता स्टालिन ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने पैरवी की.
(इनपुट भाषा से)
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