प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
रेलवे बोर्ड महानगरों और अन्य शहरों के बाहर खाली पड़ी जमीन के उपयोग के लिए पीपीपी (सार्वजनिक निजी भागीदारी) मॉडल का इस्तेमाल कर सकता है. दरअसल, बोर्ड को संसदीय समिति ने इस बाबत एक सुझाव दिया है. समिति का कहना है कि ऐसा करके रेलवे नियमित मात्रा में राजस्व प्राप्त कर सकेगा. हाल ही में लोकसभा में पेश हुए इस रिपोर्ट मे कहा गया है रेलवे के पास 4 . 76 लाख हेक्टेयर ऐसी खाली जमीन है जिसपर रेलवे का स्वामित्व या अधिकार है.
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इसमें से 4 . 25 लाख हेक्टेयर भूमि रेलवे ट्रैक एवं यार्ड, ढांचा एवं भवन के अंतर्गत आती हैं. जबकि लगभग 0.51 लाख हेक्टेयर भूमि खाली पड़ी है जो अधिकतर रेल पटरियों के साथ संकरी पट्टी, रखरखाव, रेलवे के भावी विस्तार की जरूरतों को पूरा करने के लिए है. समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि रेलवे केवल रेल विकास भूमि प्राधिकरण को भूमि के वाणिज्यिक विकास का काम सौंपने की बजाए अन्य गैर परंपरागत तरीकों पर विचार करे.
VIDEO: रेलवे बजट में खाली पदों की नहीं दी जाती जानकारी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि महानगरों और अन्य शहरों में रेलवे की काफी बड़ी मात्रा में वाणिज्यिक महत्व की खाली भूमि है, जिनका उपयोग पीपीपी मॉडल के तहत किया जा सकता है. उदाहरण के लिए अकेले कोलकाता शहर में 51648 हेक्टेयर खाली जमीन है. इसके अलावा लगभग सभी महानगरों तथा महत्वपूर्ण शहरों में रेलवे कालोनियां काफी जीर्ण शीर्ण तथा खराब स्थिति में है.
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रिपोर्ट में कहा गया है कि महानगरों और अन्य शहरों में रेलवे की काफी बड़ी मात्रा में वाणिज्यिक महत्व की खाली भूमि है, जिनका उपयोग पीपीपी मॉडल के तहत किया जा सकता है. उदाहरण के लिए अकेले कोलकाता शहर में 51648 हेक्टेयर खाली जमीन है. इसके अलावा लगभग सभी महानगरों तथा महत्वपूर्ण शहरों में रेलवे कालोनियां काफी जीर्ण शीर्ण तथा खराब स्थिति में है.
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