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This Article is From Jan 24, 2011

राडिया टेप प्रकरण में केंद्र को SC का नोटिस

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने कॉरपोरेट लाबिस्ट नीरा राडिया के सभी टेपों को सार्वजनिक करने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया है। एक एनजीओ की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से चार हफ्ते में जवाब मांगा है। इस याचिका में नीरा राडिया की बातचीत से जुड़े तमाम टेपों को सार्वजनिक करने की मांग की गई है। बताया जा रहा है कि इन टेपों में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और टाटा ग्रुप की पीआर मैनेजर नीरा राडिया की कुल 5800 बार की बातचीत दर्ज है। इसमें टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा के साथ नीरा राडिया की बातचीत भी शामिल है। ये सभी सरकार ने टैप किए थे। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसएस निझज्जर ने सोमवार को इस बारे में केंद्र को नोटिस जारी करते हुए मामले की सुनवाई 2 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी। न्यायालय ने यह आदेश सेंटर फॉर पब्लिक इंट्रस्ट लिटिगेशन की याचिका पर दिया है। इस संस्था ने नेताओं, पत्रकारों और कॉरपोरेट दिग्गजों समेत विभिन्न लोगों से नीरा की बातचीत के 5800 टेपों का खुलासा करने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि इन टेपों का खुलासा करना जनहित में है, क्योंकि इससे विभिन्न सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार का खुलासा हो सकता है। सरकार ने वित्त मंत्रालय में एक शिकायत के बाद नीरा की फोन पर बातचीत टैप की थी। शिकायत में कहा गया था कि वह कथित तौर पर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त है।याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा है कि इन टेपों की पूरी सामग्री का खुलासा इसलिए भी जनहित में है, क्योंकि इससे नेताओं, नौकरशाहों, कॉरपोरेट दिग्गजों, व्यावसायिक घरानों और यहां तक कि पत्रकारों के बीच चल रहे भ्रष्टाचार के पूरे चक्र का खुलासा हो सकता है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया है कि नीरा से जुड़े टेपों को सार्वजनिक करने से संभवत: ऊंचे स्थानों पर जमी भ्रष्टाचार की परतें खुलेंगी। नीरा की विभिन्न लोगों से बातचीत रिकॉर्ड करने के दौरान सरकार ने नीरा की उद्योगपति रतन टाटा से बातचीत भी रिकॉर्ड की थी।टाटा ने इसके बाद अदालत में याचिका दायर करते हुए मांग की थी कि नीरा के साथ उनकी बातचीत के कुछ हिस्से लीक होने के मामले में सरकार को जांच करने के आदेश दिए जाएं। टाटा ने नीरा के साथ अपनी बातचीत लीक होने के खिलाफ अदालत में दस्तक देते हुए कहा था कि यह उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है, जो सम्मान से जीने के उनके अधिकार से जुड़ा है। टाटा ने कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था, याचिकाकर्ता (टाटा) इस बात को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं कि इस तरह की चुराई हुई सामग्री के मुक्त वितरण, इसे वापस लेने के लिए कोई कदम उठाए बिना और इसके लीक होने का स्रोत जाने बिना इसके प्रकाशन की अनुमति देने में सरकार ने लापरवाही भरा रवैया रखा। टाटा ने टेप लीक होने की जांच करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी, जिसका केंद्र ने जवाब दिया था। केंद्र के इस जवाब के बाद टाटा ने यह हलफनामा दाखिल किया था। उद्योगपति टाटा ने कहा था कि उनकी टैप की हुई बातचीत को संरक्षित न रख पाना और इसका बाहरी लोगों तक पहुंचना, हमारे महान कानून की परंपरा का हिस्सा नहीं है। टाटा ने इस बात पर भी जोर दिया कि केंद्र का उच्च न्यायालय में दायर हलफनामा, सरकार का यह रुख पेश करता है कि हालांकि ऐसी टैप की हुई सामग्री का संरक्षण कानून के मुताबिक जरूरी है, पर ऐसा न हो पाने और इसके बाहरी लोगों तक पहुंचने की हालत में इन्हें वापस लाने के लिए सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया जाता और न ही इस बात की जांच होती है कि यह कैसे लीक हुए। टाटा ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि कर नियमों के उल्लंघन संबंधी मामलों की जांच में लोगों की टेलीफोन पर हुई बातचीत को रिकॉर्ड करने की कवायद बढ़ती जा रही है, जबकि इस प्रावधान का मूल तौर पर उपयोग देश की सुरक्षा से जुड़े गंभीर अपराधों की जांच में ही किया जाता था।(इनपुट भाषा से भी)

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