यह ख़बर 03 मार्च, 2014 को प्रकाशित हुई थी

प्राइम टाइम इंट्रो : बिहार को विशेष दर्जा

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार... बिहार को विशेष राज्य का दर्जा चाहिए। जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस और बीजेपी मूल रूप ये चार प्रकार के दल विशेष राज्य का दर्जा देने पर सहमत हैं, मगर नहीं मिला। सब आपस में एक दूसरे से मांगते रह गए और चुनाव आ गया। सब कहते हैं कि मांग का उनका तरीका सीरियस है, बाकी का नौटंकी। हमारी नीयत उनकी नीयत से सफेद है।

नीतीश कुमार ने रविवार को जब स्कूल, कॉलेज और दफ्तर बंद रहते हैं, बिहार बंद का आह्वान कर इस मुद्दे को जनता के बीच रखने का प्रयास किया, तो लालू ने चुटकी ले ली। इतवार को तो ऐसी ही बंद रहता है। वैसे रविवार के दिन बंद करने का आइडिया बुरा नहीं है, लोगों को दिक्कत कम होगी।

 

इससे पहले शनिवार शाम को ही नीतीश कुमार ने थरिया बर्तन बजाकर केंद्र को जगाने का प्रयास किया, लेकिन जब केंद्र नहीं जागा तो उसके अगले दिन पटना के गांधी मैदान में पांच घंटे के लिए धरने पर बैठ गए। अरविंद केजरीवाल ने जब धरना किया था, तब कितना संवैधानिक, नैतिक प्रश्न खड़ा हो गया था।

 

आंध्र प्रदेश के बंटवारे के बाद जब पांच साल के लिए सीमांध्र इलाके को विशेष दर्जा दिया गया, नीतीश ने अपना मुद्दा फिर से उठा दिया है। कहा कि कांग्रेस, बीजेपी ने सीमांध्र के लिए तो डील कर ली और इसी डील के तहत बिहार को छोड़ दिया। सीमांध्र के लिए तो मांग भी नहीं थी, जबकि बिहार के लिए कब से मांग है। विपक्षी दल बीजेपी ने क्यों नहीं दबाव डाला। कांग्रेस ने रघुरामराजन रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की। सितंबर 2013 में रिपोर्ट आई थी, जिसमें बिहार और अन्य पिछड़े राज्यों के लिए विशेष दर्जा देने का रास्ता सुझाया है। इसमें विशेष राज्य का दर्जा जैसा शब्द तो नहीं था, मगर बिहार को देश के दस सबसे कम विकसित राज्यों में शुमार किया गया है।

 

साल 2009 में बिहार विधानसभा ने और 2010 में विधान परिषद ने सवर्सम्मति से विशेष राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव पास किया था। पांच साल बीत जाने के बाद भी यह मामला फर्स्ट ईयर की तरह हर बार उठता रहता है। 17 मार्च 2013 को दिल्ली के रामलीला मैदान में नीतीश कुमार ने इसे लेकर रैली भी की। जून 2013 में बीजेपी से अलग भी हो गए। मोदी विरोध के अलावा इसे एक बड़ा कारण बताया। फिर भी दर्जा नहीं मिला। नीतीश इस मुद्दे पर विरोधियों को घेरना चाहते हैं, मगर आज बीजेपी नेता अरुण जेटली ने भी उन्हें घेरने का प्रयास किया।

 

जेटली का आरोप है कि पिछले दो साल से कांग्रेस जेडीयू को विशेष राज्य के दर्जे का लालच दिखा रही है। 2013 के अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने संकेत भी दिया था कि एक कमेटी बनाकर बिहार के दावे पर विचार किया जाएगा। जेटली ने लिखा है कि यह आश्वासन पूरी तरह से राजनीतिक था, ताकि जेडीयू बीजेपी से अलग हो जाए। मुझे नहीं मालूम कि जेडीयू का चतुर नेतृत्व भी इस झांसे में कैसे आ गया।

 

जेटली ब्लॉग लिखते हैं और मोदी मुजफ्फरपुर की रैली में इस पर चुप रहते हैं। जबकि बीजेपी 28 फरवरी को नीतीश से पहले बिहार में इस मांग को लेकर रेल रोको आंदोलन भी करती है। गूगल से इस मसले पर कुछ लेख प्राप्त हुए हैं। रेडिफ डॉट कॉम पर दिल्ली के इंडियन स्टैटिकल इंस्टिट्यूट की विजिटिंग प्रोफेसर इंदिरा राजारमन ने लिखा है कि बिहार की दावेदारी नहीं बनती है। बिहार को अपना गौरव इस बात में तलाशना चाहिए कि उसे विशेष राज्य का दर्जा नहीं चाहिए।

 

मई 2013 के इकोनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली में गोविंद भट्टाचार्य ने लिखा है कि विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के जो भी मानक हैं, बिहार उन पर खरा नहीं उतरता। बिहार का पिछड़ापन भौगोलिक कमियों के कारण नहीं है, बल्कि अतीत के खराब गवर्नेंस के कारण है। खराब गवर्नेंस के आधार पर दर्जा नहीं मिल सकता। ऐसे तो कई राज्य इसमें आ जाएंगे।

 

गोविंद का कहना है अभी बिहार को केंद्र से जो भी पैसा मिलता है, उसका सबसे बड़ा हिस्सा सीधे जिलों को जाता है जिन पर राज्य का कोई नियंत्रण नहीं होता। वैसे भी विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए जो गाडगिल मुखर्जी फार्मूला तैयार किया गया था, उसमें अब तीन की जगह 11 राज्य आ गए हैं, जबकि योजना राशि में कोई वृद्धि नहीं हुई है। इसलिए विशेष राज्य का दर्जा मिल भी जाए, तो कोई बहुत पैसा नहीं मिलने वाला है। अगर नीतीश विशेष दर्जा की जगह जिलो को दिए जाने वाले पैसे पर नियंत्रण मांग लें, तो ज्यादा लाभ हो सकता है।

 

एक लेख एन के सिंह का भी है। जिन्हें नीतीश ने राज्य सभा का सदस्य फिर से नहीं बनाया। पता नहीं इस वक्त एनके सिंह का क्या मत है, लेकिन मार्च 2013 के इकोनोमिक टाइम्स में उन्होंने इसकी वकालत करते हुए लिखा था कि बैकवर्ड रीजन ग्रांट फंड का प्रावधान तो है ही केंद्र के पास। 2000 में जब बिहार का पुनगर्ठन हुआ तब भी बिहार को विशेष प्रोत्साहन राशि देने की बात हुई थी जो नहीं मिली। बारहवीं योजना में 12 हजार करोड़ देने का प्रस्ताव हुआ था, मगर कैबिनेट ने मंजूरी नहीं दी।

 

केंद्रीय योजना मदों के बंटवारे का मामला टेक्निकल और जटिल भी है। इसी फरवरी में राज्य सरकार के आर्थिक सर्वे के अनुसार 2012−13 में ग्रोथ रेट 13.5 प्रतिशत है। पिछले सात साल में 12 प्रतिशत का सालाना औसत है। 2013 के नेशनल सैंपल सर्वे संगठन के आंकड़े के अनुसार बिहार में गरीबी 54 प्रतिशत से घटकर 33.7 प्रतिशत रह गई है। फिर बिहार को क्यों चाहिए? क्या नीतीश इस मुद्दे पर बिहार की जनता को लालू-कांग्रेस या बीजेपी-पासवान खेमे की तरफ जाने से रोक पाएंगे? सचमुच बिहार इसका हकदार है या महज ये सभी दलों का एक दूसरे के खिलाफ हथियार बन गया है। देखें पूरा वीडियो


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