नई दिल्ली:
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में कहा कि भ्रष्टाचार ऐसी समस्या बन गया है जो देश को खोखला कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस बुराई का विरोध जायज है लेकिन यह लोकतांत्रिक संस्थाओं पर आक्रमण करने का बहाना नहीं बन सकता।
राष्ट्र के नाम अपने पहले सम्बोधन में मुखर्जी ने कहा, "चारों ओर फैले भ्रष्टाचार के विरुद्घ रोष तथा इस बुराई के विरुद्घ विरोध जायज है, क्योंकि यह हमारे राष्ट्र की क्षमता और शक्ति को खोखला कर रहा है। कभी-कभी लोग धैर्य खो देते हैं लेकिन यह हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं पर आक्रमण का बहाना नहीं बन सकता।"
संवैधानिक संस्थाओं पर आए दिन किए जा रहे हमलों पर राष्ट्रपति ने कहा, "संस्थाएं हमारे संविधान के दिखाई देने वाले आधार स्तंभ हैं और अगर इनमें दरार आती है तो हमारे संविधान का आदर्शवाद कायम नहीं रह पाएगा। वे सिद्घांतों और लोगों को जोड़ने का माध्यम हैं। हो सकता है कि हमारी संस्थाएं समय के साथ पुरानी पड़ गई हों, परंतु जो बना हुआ है, उसे नष्ट करना कोई समाधान नहीं है, इसके बजाय हमें इन्हें इस ढंग से पुनर्निर्मित करना होगा ताकि ये पहले से अधिक मजबूत बनें। संस्थाएं हमारी स्वतंत्रता की रक्षक हैं।"
राष्ट्रपति ने स्वीकार किया कि राजनीति, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के उन क्षेत्रों की विश्वसनीयता को बहाल करना होगा, जहां आत्मतुष्टि, थकावट या भ्रष्टाचार के कारण परिणाम प्राप्त करने में बाधा आ रही है। उन्होंने कहा कि लोगों को अपने असंतोष को व्यक्त करने का अधिकार है। परंतु हमें यह भी समझना चाहिए कि विधायिका से कानून को या न्यायपालिका से न्याय को अलग नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, "जब प्राधिकारी निरंकुश हो जाते हैं तो लोकतंत्र को नुकसान पहुंचता है परंतु जब विरोध बार-बार होते हैं तब हम अव्यवस्था को न्यौता देते हैं। लोकतंत्र एक साझा प्रक्रिया है। हम सभी की, जीत या हार साथ-साथ होती है। लोकतांत्रिक नजरिए के लिए गरिमापूर्ण व्यवहार और विरोधी विचारों को सहन करने की जरूरत होती है।"
मुखर्जी ने कहा, "संसद अपने समय पर और अपनी गति से काम करेगी। कभी-कभी इसकी गति असहज लगती है; लेकिन लोकतंत्र में सदैव एक न्याय का दिन, चुनाव का दिन आता है।"
"मैं ऐसा चेतावनी के रूप में नहीं, बल्कि इस अनुरोध के साथ कह रहा हूं कि साधारण घटनाक्रमों के पीछे छिपे अस्तित्ववादी मुद्दों को और अच्छे ढंग से समझा जाए। लोकतंत्र में, जवाबदेही की महवपूर्ण संस्था स्वतंत्र चुनावों के जरिए शिकायतों के समाधान का एक बेजोड़ अवसर प्रदान किया गया है।"
असम में पिछले दिनों फैली हिंसा पर चिंता व्यक्त करते हुए मुखर्जी ने कहा, "असम में हिंसा देखकर मुझे विशेषकर पीड़ा हुई है। हमारे अल्पसंख्यकों को सांत्वना की, सद्भावना की और आक्रामकता से बचाए जाने की जरूरत है।" उन्होंने कहा, "हिंसा कोई विकल्प नहीं है। हिंसा से और अधिक हिंसा को आमंत्रण मिलता है। असम के जख्मों को भरने के लिए, हमारे युवा और प्रिय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा तैयार किए गए असम समझौते सहित, ठोस प्रयास किए गए हैं। हमें उन पर फिर से विचार करना चाहिए, और न्याय की भावना और राष्ट्र के हित में मौजूदा हालात के अनुसार उन्हें ढालना चाहिए। हमें एक नई आर्थिक क्रांति के लिए शांति की आवश्यकता है जिससे हिंसा के प्रतिस्पर्धात्मक कारणों को समाप्त किया जा सके।"
राष्ट्र के नाम अपने पहले सम्बोधन में मुखर्जी ने कहा, "चारों ओर फैले भ्रष्टाचार के विरुद्घ रोष तथा इस बुराई के विरुद्घ विरोध जायज है, क्योंकि यह हमारे राष्ट्र की क्षमता और शक्ति को खोखला कर रहा है। कभी-कभी लोग धैर्य खो देते हैं लेकिन यह हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं पर आक्रमण का बहाना नहीं बन सकता।"
संवैधानिक संस्थाओं पर आए दिन किए जा रहे हमलों पर राष्ट्रपति ने कहा, "संस्थाएं हमारे संविधान के दिखाई देने वाले आधार स्तंभ हैं और अगर इनमें दरार आती है तो हमारे संविधान का आदर्शवाद कायम नहीं रह पाएगा। वे सिद्घांतों और लोगों को जोड़ने का माध्यम हैं। हो सकता है कि हमारी संस्थाएं समय के साथ पुरानी पड़ गई हों, परंतु जो बना हुआ है, उसे नष्ट करना कोई समाधान नहीं है, इसके बजाय हमें इन्हें इस ढंग से पुनर्निर्मित करना होगा ताकि ये पहले से अधिक मजबूत बनें। संस्थाएं हमारी स्वतंत्रता की रक्षक हैं।"
राष्ट्रपति ने स्वीकार किया कि राजनीति, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के उन क्षेत्रों की विश्वसनीयता को बहाल करना होगा, जहां आत्मतुष्टि, थकावट या भ्रष्टाचार के कारण परिणाम प्राप्त करने में बाधा आ रही है। उन्होंने कहा कि लोगों को अपने असंतोष को व्यक्त करने का अधिकार है। परंतु हमें यह भी समझना चाहिए कि विधायिका से कानून को या न्यायपालिका से न्याय को अलग नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, "जब प्राधिकारी निरंकुश हो जाते हैं तो लोकतंत्र को नुकसान पहुंचता है परंतु जब विरोध बार-बार होते हैं तब हम अव्यवस्था को न्यौता देते हैं। लोकतंत्र एक साझा प्रक्रिया है। हम सभी की, जीत या हार साथ-साथ होती है। लोकतांत्रिक नजरिए के लिए गरिमापूर्ण व्यवहार और विरोधी विचारों को सहन करने की जरूरत होती है।"
मुखर्जी ने कहा, "संसद अपने समय पर और अपनी गति से काम करेगी। कभी-कभी इसकी गति असहज लगती है; लेकिन लोकतंत्र में सदैव एक न्याय का दिन, चुनाव का दिन आता है।"
"मैं ऐसा चेतावनी के रूप में नहीं, बल्कि इस अनुरोध के साथ कह रहा हूं कि साधारण घटनाक्रमों के पीछे छिपे अस्तित्ववादी मुद्दों को और अच्छे ढंग से समझा जाए। लोकतंत्र में, जवाबदेही की महवपूर्ण संस्था स्वतंत्र चुनावों के जरिए शिकायतों के समाधान का एक बेजोड़ अवसर प्रदान किया गया है।"
असम में पिछले दिनों फैली हिंसा पर चिंता व्यक्त करते हुए मुखर्जी ने कहा, "असम में हिंसा देखकर मुझे विशेषकर पीड़ा हुई है। हमारे अल्पसंख्यकों को सांत्वना की, सद्भावना की और आक्रामकता से बचाए जाने की जरूरत है।" उन्होंने कहा, "हिंसा कोई विकल्प नहीं है। हिंसा से और अधिक हिंसा को आमंत्रण मिलता है। असम के जख्मों को भरने के लिए, हमारे युवा और प्रिय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा तैयार किए गए असम समझौते सहित, ठोस प्रयास किए गए हैं। हमें उन पर फिर से विचार करना चाहिए, और न्याय की भावना और राष्ट्र के हित में मौजूदा हालात के अनुसार उन्हें ढालना चाहिए। हमें एक नई आर्थिक क्रांति के लिए शांति की आवश्यकता है जिससे हिंसा के प्रतिस्पर्धात्मक कारणों को समाप्त किया जा सके।"
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