जानिए क्‍या है, संथारा और हाईकोर्ट ने इसे आत्‍महत्‍या जैसा क्‍यों कहा ...

जयपुर:

राजस्थान हाईकोर्ट ने जैनों के धार्मिक रिवाज ‘संथारा’ (मृत्यु तक उपवास) को अवैध बताते हुए उसे भारतीय दंड संहिता 306 तथा 309 के तहत दंडनीय बताया।

अदालत ने कहा, संथारा या मृत्यु पर्यंत उपवास जैन धर्म का आवश्यक अंग नहीं है। इसे मानवीय नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह मूल मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है।

वकील निखिल सोनी ने वर्ष 2006 में ‘संथारा’ की वैधता को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की थी।

याचिका दायर करने वाले के वकील ने ‘संथारा’, जो कि अन्न जल त्याग कर मृत्यु पर्यंत उपवास है, को जीवन के अधिकार का उल्लंघन बताया था।

जाने क्या है संथारा प्रथा
जैन समाज में यह पुरानी प्रथा कि जब व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो खुद को कमरे में बंद कर खाना-पीना त्याग देता है। जैन शास्त्रों में इस तरह की मृत्यु को संथारा कहा जाता है। इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है, जिसके आधार पर व्यक्ति मृत्यु को पास देखकर सबकुछ त्याग देता है।  धै

जबरदस्ती बंद नहीं किया जाता अन्न
ऐसा नहीं है कि संथारा लेने वाले व्यक्ति का भोजन जबरन बंद करा दिया जाता हो। संथारा में लेने वाला व्यक्ति स्वयं धीरे-धीरे अपना भोजन कम कर देता है। जैन-ग्रंथों में स्पष्ट लिखा है कि उस समय यदि उस व्यक्ति को नियम के अनुसार भोजन दिया जाता है। जो अन्न बंद करने की बात कही जाती है, वह मात्र उसी स्थिति के लिए होती है, जब अन्न का पाचन असम्भव हो जाए।

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पक्ष में तर्क
इसके पक्ष में कुछ लोग तर्क देते हैं कि आजकल अंतिम समय में वेंटिलेटर पर शरीर का त्याग करते हैं। ऐसे में ये लोग न अपनों से मिल पाते हैं, न ही भगवान का नाम ले पाते हैं। यूं मौत का इंतजार करने से बेहतर है, संथारा प्रथा। धैर्य पूर्वक अंतिम समय तक जीवन को सम्मान के साथ जीने की कला है ये।