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This Article is From Jan 11, 2019

आलोक वर्मा को पद से हटाए जाने पर सियासी घमासान तेज, विपक्ष से लेकर कानून के जानकारों तक ने उठाए सवाल

आलोक वर्मा को सीबीआई चीफ के पद से हटाए जाने के बाद पीएम मोदी और उनकी सरकार सवालों के घेरे में आ गई है.

आलोक वर्मा को पद से हटाए जाने पर सियासी घमासान तेज, विपक्ष से लेकर कानून के जानकारों तक ने उठाए सवाल
आलोक वर्मा (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

आलोक वर्मा (Alok Verma) को सीबीआई के निदेशक पद से हटाने पर विपक्षी दलों और कानूनी विशेषज्ञों ने जोरदार हमला बोलते हुए कहा कि यह सरकार की 'हताशा' है 'क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राफेल जेट सौदे में कोई जांच नहीं चाहते हैं' फैसले के आलोचकों ने यह भी पूछा कि चयन समिति वर्मा का पक्ष सुने बिना फैसला कैसे सुना सकती है. कांग्रेस ने समिति के फैसले की आलोचना की और कहा कि मोदी ने यह दिखाया है कि वे राफेल सौदे की जांच से 'बहुत डर गए' हैं. कांग्रेस ने ट्वीट किया, "आलोक वर्मा को उनका पक्ष रखने का मौका दिए बिना, उन्हें पद से हटाकर पीएम मोदी ने एक बार फिर दिखाया है कि वह जांच से बहुत डरते हैं, चाहे वह स्वतंत्र सीबीआई निदेशक द्वारा की जाए या संसद द्वारा जेपीसी के माध्यम से की जाए."

भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि अगर वर्मा को हटाने का बहुमत का फैसला था, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता कि वर्मा को उनके खिलाफ आरोपों का जवाब देने के लिए क्यों नहीं कहा गया. केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को लेकर मेरी राय बहुत खराब है."

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वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने प्रधानमंत्री की भूमिका में 'हितों के टकराव' की बात कही क्योंकि प्रधानमंत्री उस तीन सदस्यीय समिति का हिस्सा हैं जिसने वर्मा को पद से हटाया है. इसमें लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और सर्वोच्च न्यायालय के मनोनीत प्रतिनिधि प्रधान न्यायाधीश द्वारा नामित न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी हैं. 

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उन्होंने कहा, "सीबीआई निदेशक के रूप में पदभार संभालने के एक दिन बाद, मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने फिर से आलोक वर्मा को बिना सुनवाई के जल्दबाजी में हटा दिया, क्योंकि उन्हें डर था कि राफेल घोटाले में मोदी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने की संभावना है।"उन्होंने कहा, "आलोक वर्मा का पक्ष सुने बिना समिति यह कैसे तय कर सकती है? यह सरकार की हताशा को दर्शाता है. इसमें प्रधानमंत्री के हितों का टकराव है. इतनी हताशा, किसी भी जांच को रोकने के लिए है,"

एक अन्य वरिष्ठ वकील व राज्यसभा सदस्य मजीद मेमन ने वर्मा को हटाने को 'सत्ता का अतिक्रमण' करार दिया। मेमन ने कहा, "आलोक वर्मा के खिलाफ चयन समिति का फैसला पूरी तरह से 'सत्ता का अतिक्रमण' है. समिति को उनकी बात सुननी चाहिए थी. मामले में सीवीसी की भूमिका भी संदेह के घेरे में है."

कांग्रेस नेता व वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्मा को आरोपों के आधार पर हटा दिया गया, जबकि सीवीसी की कोई विश्वसनीयता नहीं है. उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री इस बात से आशंकित हैं कि उनके खिलाफ जांच होने पर कई सबूत सामने आएंगे"

(इनपुट आईएएनएस)

 

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