नई दिल्ली:
सोमवार को केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा कि आरटीआई के दायरे में सभी राजनीतिक दलों को आना चाहिए वहीं मंगलवार को तमाम राजनीतिक दलों ने इसके ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें याद आ रहा है कि वे जनता के प्रति उत्तरदायी हैं आरटीआई के प्रति नहीं।
कांग्रेस पार्टी के प्रमुख प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी ने कहा है कि वह केंद्रीय सूचना आयोग के उस आदेश को अस्वीकार करती है जिसके तहय यह आदेश दिया गया था कि राजनीतिक दल सूचना के अधिकार के तहत आते हैं और उन्हें जनता को जवाब देना चाहिए।
जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस निर्णय से असहमत है। उन्होंने कहा कि सारी राजनीतिक पार्टियां किसी कानून से नहीं बनी हैं। यह सरकारी ग्रांट पर नहीं चलती हैं। आम आदमी की जिंदगी में भी सरकारी सहायता की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि यह लोगों की संस्थाएं हैं जो अपने सदस्यों के प्रति जवाबदेह है।
गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी ने ही सूचना का अधिकार कानून बनाया था और इसके लिए खूब वाहवाही लूटी। अब खुद पार्टी ही इसके उलट यह कह रही है कि वह इस फैसले से सहमत नहीं है।
इस फैसले पर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि बीजेपी राजनीतिक क्षेत्र में पारदर्शिता और शुचिता के पक्ष में हैं। हम आय कर विभाग और चुनाव आयोग के क़ानूनों का पालन करते हैं। हम सूचना आयोग के निर्देश का पालन करेंगे। हम इसका विरोध नहीं करते हैं। हम हमेशा पारदर्शिता के पक्षधर हैं। इसके खिलाफ अदालत नहीं जाएंगे।
सीपीएम ने भी लगभग कांग्रेस की ही लाइन ली है। सीपीएम का कहना है कि वह ऐसा आदेश नहीं मान सकती जिसमें राजनीतिक दलों को सार्वजनिक संस्था बताया जाए। सीपीएम के मुताबिक ये फैसला राजनीतिक दलों के गलत आकलन पर आधारित है।
जेडीयू ने भी केंद्रीय सूचना आयोग के इस फैसले को गलत बताया है। पार्टी को डर है कि अगर राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाया गया तो इसका गलत इस्तेमाल हो सकता है।
समाजवादी पार्टी ने इस अहम सवाल पर अपना रुख अब तक साफ नहीं किया है। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब मुलायम सिंह यादव से यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने अपने मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश यादव की ओर इशारा कर दिया कहा इनसे पूछिए।
राजनीतिक पार्टियां भी अब सूचना के अधिकार के दायरे में आएंगी। केंद्रीय सूचना आयोग की पूरी बेंच ने एक जनहित याचिका की सुनवाई पर यह आदेश सोमवार को दिया था।
मुख्य सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा और सूचना आयुक्तों एमएल शर्मा तथा अन्नपूर्णा दीक्षित की आयोग की पूर्ण पीठ ने कहा कि छह दल- कांग्रेस, भाजपा, माकपा, भाकपा, राकांपा और बसपा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकार के मानदंड को पूरा करते हैं। इन दलों से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी गई थी।
पीठ ने निर्देश किया, ‘इन दलों के अध्यक्षों, महासचिवों को निर्देश दिया जाता है कि छह सप्ताह के अंदर अपने मुख्यालयों पर सीपीआईओ और अपीलीय प्राधिकरण मनोनीत करें। नियुक्त किए गए सीपीआईओ इस आदेश के नतीजतन आरटीआई आवेदनों पर चार हफ्ते में जवाब देंगे।’ पीठ ने उन्हें आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत दिए गए अनिवार्य खुलासों से जुड़े खंडों के प्रावधानों का पालन करने का भी निर्देश दिया है।
मामला आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनिल बैरवाल की आरटीआई अर्जियों से जुड़ा है। उन्होंने इन दलों द्वारा प्राप्त चंदे आदि के बारे में जानकारी मांगी थी और दानदाताओं के नाम, पते आदि का ब्योरा पूछा था जिसे देने से राजनीतिक दलों ने मना कर दिया था और कहा था कि वे आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं आते।
कांग्रेस पार्टी के प्रमुख प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी ने कहा है कि वह केंद्रीय सूचना आयोग के उस आदेश को अस्वीकार करती है जिसके तहय यह आदेश दिया गया था कि राजनीतिक दल सूचना के अधिकार के तहत आते हैं और उन्हें जनता को जवाब देना चाहिए।
जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस निर्णय से असहमत है। उन्होंने कहा कि सारी राजनीतिक पार्टियां किसी कानून से नहीं बनी हैं। यह सरकारी ग्रांट पर नहीं चलती हैं। आम आदमी की जिंदगी में भी सरकारी सहायता की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि यह लोगों की संस्थाएं हैं जो अपने सदस्यों के प्रति जवाबदेह है।
गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी ने ही सूचना का अधिकार कानून बनाया था और इसके लिए खूब वाहवाही लूटी। अब खुद पार्टी ही इसके उलट यह कह रही है कि वह इस फैसले से सहमत नहीं है।
इस फैसले पर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि बीजेपी राजनीतिक क्षेत्र में पारदर्शिता और शुचिता के पक्ष में हैं। हम आय कर विभाग और चुनाव आयोग के क़ानूनों का पालन करते हैं। हम सूचना आयोग के निर्देश का पालन करेंगे। हम इसका विरोध नहीं करते हैं। हम हमेशा पारदर्शिता के पक्षधर हैं। इसके खिलाफ अदालत नहीं जाएंगे।
सीपीएम ने भी लगभग कांग्रेस की ही लाइन ली है। सीपीएम का कहना है कि वह ऐसा आदेश नहीं मान सकती जिसमें राजनीतिक दलों को सार्वजनिक संस्था बताया जाए। सीपीएम के मुताबिक ये फैसला राजनीतिक दलों के गलत आकलन पर आधारित है।
जेडीयू ने भी केंद्रीय सूचना आयोग के इस फैसले को गलत बताया है। पार्टी को डर है कि अगर राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाया गया तो इसका गलत इस्तेमाल हो सकता है।
समाजवादी पार्टी ने इस अहम सवाल पर अपना रुख अब तक साफ नहीं किया है। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब मुलायम सिंह यादव से यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने अपने मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश यादव की ओर इशारा कर दिया कहा इनसे पूछिए।
राजनीतिक पार्टियां भी अब सूचना के अधिकार के दायरे में आएंगी। केंद्रीय सूचना आयोग की पूरी बेंच ने एक जनहित याचिका की सुनवाई पर यह आदेश सोमवार को दिया था।
मुख्य सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा और सूचना आयुक्तों एमएल शर्मा तथा अन्नपूर्णा दीक्षित की आयोग की पूर्ण पीठ ने कहा कि छह दल- कांग्रेस, भाजपा, माकपा, भाकपा, राकांपा और बसपा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकार के मानदंड को पूरा करते हैं। इन दलों से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी गई थी।
पीठ ने निर्देश किया, ‘इन दलों के अध्यक्षों, महासचिवों को निर्देश दिया जाता है कि छह सप्ताह के अंदर अपने मुख्यालयों पर सीपीआईओ और अपीलीय प्राधिकरण मनोनीत करें। नियुक्त किए गए सीपीआईओ इस आदेश के नतीजतन आरटीआई आवेदनों पर चार हफ्ते में जवाब देंगे।’ पीठ ने उन्हें आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत दिए गए अनिवार्य खुलासों से जुड़े खंडों के प्रावधानों का पालन करने का भी निर्देश दिया है।
मामला आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल और एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनिल बैरवाल की आरटीआई अर्जियों से जुड़ा है। उन्होंने इन दलों द्वारा प्राप्त चंदे आदि के बारे में जानकारी मांगी थी और दानदाताओं के नाम, पते आदि का ब्योरा पूछा था जिसे देने से राजनीतिक दलों ने मना कर दिया था और कहा था कि वे आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं आते।