मन की बात में पीएम नरेंद्र मोदी : 'सबका साथ, सबका विकास' पड़ोसी देशों के लिए भी है

मन की बात में पीएम नरेंद्र मोदी : 'सबका साथ, सबका विकास' पड़ोसी देशों के लिए भी है

मन की बात (Mann ki Baat) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

खास बातें

  • भारत ने हमेशा से 'सबका साथ-सबका विकास' के मंत्र का अपनाया
  • मूलमंत्र सिर्फ देश के भीतर नहीं, बल्कि वैश्विक परिवेश में भी
  • पीएम मोदी ने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में कहा
नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत ने हमेशा से 'सबका साथ-सबका विकास' के मंत्र को लेकर आगे बढ़ने का प्रयास किया है और उसका यह मूलमंत्र सिर्फ देश के भीतर नहीं, बल्कि वैश्विक परिवेश और अड़ोस-पड़ोस के देशों के लिए भी है.

पीएम मोदी ने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में कहा, ''भारत ने हमेशा 'सबका साथ-सबका विकास' के मंत्र को लेकर आगे बढ़ने का प्रयास किया है. जब हम सबका साथ-सबका विकास की बात करते हैं तो वो सिर्फ भारत के अंदर के लिए नहीं, बल्कि वैश्विक परिवेश और खासकर हमारे अड़ोस-पड़ोस के देशों के लिए भी है.'' 

उन्होंने कहा, ''हम चाहते हैं कि हमारे पड़ोस के देशों का साथ भी हो, हमारे अड़ोस-पड़ोस के देशों का विकास भी हो.'' प्रधानमंत्री ने कहा, ''पांच मई को भारत दक्षिण एशिया उपग्रह का प्रक्षेपण करेगा. इस उपग्रह की क्षमता तथा इससे जुड़ी सुविधाएं दक्षिण एशिया की आर्थिक और विकासात्मक प्राथमिकताओं को पूरा करने में काफी मदद करेगा. यह हमारे पूरे क्षेत्र के आगे बढ़ने में मददगार होगा.'' 

दुनिया में कई स्थानों पर हिंसा और युद्ध की स्थिति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, ''विश्व आज जिन समस्याओं से गुजर रहा है उनको देखते हुए बुद्ध के विचार प्रासंगिक लगते हैं. भारत में अशोक का जीवन युद्ध से बुद्ध की यात्रा का उत्तम प्रतीक हैं.'' 
प्रधानमंत्री ने कहा, 'मेरा सौभाग्य है कि बुद्ध पूर्णिमा के इस महान पर्व पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा मनाए जा रहे वैसाख दिवस में शामिल होऊंगा. श्रीलंका में मुझे भगवान बुद्ध को श्रद्धा-सुमन अर्पित करने का अवसर मिलेगा.' उन्होंने एक मई को श्रमिक दिवस के मौके पर भारतीय मजदूर संघ के जनक दत्तोपंत ठेंगड़ी के विचार को उद्धृत करते हुए कहा, 'एक तरफ माओवाद से प्रेरित विचार था कि दुनिया के मजदूर एक हो जाओ और दत्तोपंत ठेंगड़ी कहते थे कि मजदूरों दुनिया को एक करो. आज श्रमिकों की बात करता हूं तो दत्तोपंत ठेंगड़ी जी को याद करना बहुत स्वाभाविक है.'


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