प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों पर सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण आधारभूत संरचनाओं के विकास से जुड़ी परियोजनाओं को नजरअंदाज कर रक्षा हितों से समझौता करने का आरोप लगाया और कहा कि इस दौरान वह ‘‘फाइलें पलटती'' रही जिससे लड़ाकू विमानों, हथियार और अन्य सैन्य साजों सामान जमा करने में देरी हुई. उन्होंने कहा कि देश की रक्षा जरूरतों और रक्षा हितों का ध्यान रखना उनकी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है. प्रधानमंत्री ने प्रदेश के रोहतांग में 10 हजार फुट की ऊंचाई पर निर्मित और सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण ‘‘अटल सुरंग'' के उद्घाटन के बाद दो जनसभाओं को भी संबोधित किया और कहा कि कृषि सुधार कानून हर प्रकार से किसानों को लाभ पहुंचाने वाले और बिचौलियों व दलालों के तंत्र पर प्रहार करने वाले हैं.
कृषि सुधारों का विरोध कर रहे राजनीतिक दलों पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछली शताब्दी के नियमों व कानूनों से अगली शताब्दी में नहीं पहुंचा जा सकता. उन्होंने कहा ‘‘इसलिए समाज और व्यवस्थाओं में बदलाव के विरोधी जितनी भी अपने स्वार्थ की राजनीति करें, देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सुधारों का सिलसिला लगातार चलता रहेगा.''मनाली को लाहौल-स्पीति घाटी से जोड़ने वाली 9.02 किलोमीटर लंबी अटल सुरंग दुनिया की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग है. सामरिक रूप से महत्वपूर्ण यह सुरंग हिमालय की पीर पंजाल श्रृंखला में औसत समुद्र तल से 10,000 फीट की ऊंचाई पर अति-आधुनिक विशिष्टताओं के साथ बनाई गई है.
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मोदी ने कहा कि हमेशा से यहां अवसंरचनाओं को बेहतर बनाने की मांग उठती रही, लेकिन लंबे समय तक देश में सीमा से जुड़ी विकास की परियोजनाएं या तो योजना के स्तर से बाहर ही नहीं निकल सकीं. उन्होंने कहा कि जो (परियोजनाएं) निकली भी वो या तो अटक गईं या फिर लटक गईं और भटक गईं.
अटल सुरंग का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि साल 2002 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस सुरंग के लिए अप्रोच रोड का शिलान्यास किया था, लेकिन उनकी सरकार जाने के बाद इस काम को भी भुला दिया गया. उन्होंने कहा, ‘‘हालत ये थी कि साल 2013-14 तक सुरंग के लिए सिर्फ 1300 मीटर का काम हो पाया था. विशेषज्ञ बताते हैं जिस रफ्तार से उस समय अटल सुरंग का काम हो रहा था, उसी रफ्तार से यदि काम होता तो यह 40 साल में जाकर शायद पूरा हो पाता.''
प्रधानमंत्री ने कहा कि अवसंरचना की इतनी बड़ी परियोजना के निर्माण में देरी से देश का हर तरह से नुकसान होता है. इससे लोगों को सुविधा मिलने में तो देरी होती ही है, इसका खामियाजा देश को आर्थिक स्तर पर भी उठाना पड़ता है. उन्होंने कहा, ‘‘अगर उसी रफ्तार से काम चला होता तो ये सुरंग साल 2040 में जाकर पूरा हो पाती. आपकी आज जो उम्र है, उसमें 20 वर्ष और जोड़ लीजिए, तब जाकर लोगों के जीवन में ये दिन आता, उनका सपना पूरा होता.'' उन्होंने कहा कि उस वक्त के लिहाज से इसके निर्माण में तीन गुना से अधिक खर्च आया. ‘‘अंदाजा लगाइए जब इसमें 20 साल और लग जाते तो क्या स्थिति होती.''
उन्होंने कहा कि संपर्क का देश के विकास से सीधा संबंध होता है और सीमा से जुड़े इलाकों में तो संपर्क देश की रक्षा जरूरतों से जुड़ी होती है. उन्होंने सवाल किया, ‘‘लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी के रूप में सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण एयर स्ट्रिप 40-45 साल तक बंद रही. क्या मजबूरी थी, क्या दबाव था. क्यों राजनीतिक इच्छाशक्ति नजर नहीं आई? मैं ऐसे दर्जनों परियोजनाएं बता सकता हूं, जो सामरिक दृष्टि से, सुविधा की दृष्टि से भले ही कितनी महत्वपूर्ण रही हों, लेकिन वर्षों तक नजरअंदाज की गई.''
इस क्रम में प्रधानमंत्री ने सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण असम के डिब्रूगढ़ शहर के पास बोगीबील में ब्रह्मपुत्र नदी पर बने बोगीबील पुल और बिहार में कोसी महासेतु का जिक्र किया और कहा कि 2014 में केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद इन परियोजाओं की गति में तेजी लाई गई और उन्हें पूरा किया गया.
उन्होंने कहा, ‘‘देश के हर हिस्से में संपर्क की बड़ी-बड़ी परियोजनाओं का यही हाल रहा, लेकिन अब स्थिति बदल रही है. इस दिशा में अभूतपूर्व प्रयास किया गया है. सीमा क्षेत्र के विकास के लिए पूरी ताकत लगा दी गई है.'' उन्होंने कहा कि सर्दी के मौसम में भी देश की रक्षा से जुड़े सारे साजों सामान दूसरे छोर पर आसानी से पहुंचाएं जा सके, इसके लिए सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘‘देश की रक्षा जरूरतों, रक्षा करने वालों की जरूरतों का ध्यान रखना, उनके हितों का ध्यान रखना हमारी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है.'' उन्होंने कहा, ‘‘देश हित से बड़ा, देश की रक्षा से बड़ा हमारे लिए और कुछ नहीं. लेकिन देश ने लंबे समय तक वो दौर भी देखा है जब देश के रक्षा हितों के साथ समझौता किया गया.'' उन्होंने कहा कि देश में ही आधुनिक अस्त्र-शस्त्र बने, मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत हथियार बनें, इसके लिए बड़े सुधार किए गए हैं. उन्होंने पिछले छह सालों में देश की सेनाओं की मजबूती के लिए उठाए गए कदमों का उदाहरण देते हुए कहा कि देश की सेनाओं की आवश्यकताओं के अनुसार साजों सामान जुटाए जा रहे और उत्पादन भी किया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘‘आत्मनिर्भर भारत का आत्मविश्वास जनमानस का हिस्सा बन चुका है.'' मोदी ने कहा कि भारत को अपने बढ़ते हुए वैश्विक कद के अनुरूप ही अपने बुनियादी ढांचे और अपनी आर्थिक तथा रणनीतिक क्षमता को भी उसी गति से सुधारना होगा.
उन्होंने इस सुरंग में दक्षिण पोर्टल से उत्तरी पोर्टल तक यात्रा की और मुख्य टनल में ही बनाई गई आपातकालीन टनल का भी निरीक्षण किया. उन्होंने इस अवसर पर ‘द मेकिंग ऑफ अटल टनल' पर एक चित्रात्मक प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया. इस अवसर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर, प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत, थल सेना प्रमुख एम एम नरवणे और सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे.
गौरतलब है कि अटल सुरंग से मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी और यात्रा का समय भी चार से पांच घंटे कम हो जाएगा. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने रोहतांग दर्रे के नीचे सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस सुरंग का निर्माण कराने का निर्णय किया था और सुरंग के दक्षिणी पोर्टल पर संपर्क मार्ग की आधारशिला 26 मई 2002 को रखी गई थी. मोदी सरकार ने दिसम्बर 2019 में पूर्व प्रधानमंत्री के सम्मान में सुरंग का नाम अटल सुरंग रखने का निर्णय किया था. इस परियोजना की आधारशीला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी ने वर्ष 2010 में रखी थी.
कुल्लू स्थित सोलंग घाटी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए मोदी ने कृषि सुधार कानूनों के बारे में चर्चा की और कहा उनकी सरकार का प्रयास है कि आम जन की परेशानी कम करना और उन्हें उनके हक का पूरा लाभ पहुंचाना है. उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे अनेक सुधारों से लोगों का समय और पैसा दोनों बच रहा है और भ्रष्टाचार के रास्ते भी बंद हो रहे हैं. देश में आज जो सुधार किए जा रहा जा रहे हैं, उनसे ऐसे लोग परेशान हो गए हैं जिन्होंने हमेशा अपने राजनीतिक हितों के लिए काम किया है.''
उन्होंने कहा कि सुधारों और व्यवस्थाओं में बदलाव के विरोधी अपने स्वार्थ की जितनी भी राजनीति कर लें, यह देश रुकने वाला नहीं है. मोदी ने कहा, ‘‘कृषि सुधार कानूनों का विरोध करने वाले कहते हैं कि यथास्थिति बनाए रखो. सदी बदल गई लेकिन उनकी सोच नहीं बदली. अब सदी बदल गई है तो सोच भी बदलनी होगी. पिछली सदी में जीना है तो उन्हें जीने दो, लेकिन देश आज परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध है.''
उन्होंने कहा, ‘‘आज जब इन सुधारों से बिचौलियों और दलालों के तंत्र पर प्रहार हो रहा है तो वह बौखला रहे हैं. बिचौलियों को बढ़ावा देने वालों ने देश की स्थिति क्या कर दी थी, यह देश भलीभांति जानता है.'' प्रधानमंत्री ने कहा कि ये वही सुधार हैं जिन्हें कांग्रेस ने भी सोचा था लेकिन उन्हें लागू करने की उनमें राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी. उन्होंने कहा, ‘‘उनमें हिम्मत की कमी थी , हमारे अंदर हिम्मत है. उनके लिए चुनाव सामने थे, हमारे लिए देश का किसान सामने है. हमारे लिए किसान का उज्जवल भविष्य सामने है. इसलिए हम फैसले लेकर किसान को आगे ले जाना चाहते हैं.''
मोदी ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों की आय बढ़ाने और खेती से जुड़ी उनकी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है. इससे पहले लाहौल के सिस्सू गांव में आयोजित एक जनसभा में मोदी ने कहा कि उनकी सरकार में ‘‘नयी सोच'' के साथ काम हो रहा है, जिसमें योजनाओं को मूर्त रूप देने में लक्ष्य यह होता है कि विकास की दौड़ में कोई पीछे न छूट जाए.
कोरोना महामारी के दौर में प्रधानमंत्री की यह पहली रैली थी जिसमें वह खुद शामिल हुए और मंच से भाषण दिया. देश में जब से कोरोना महामारी फैली है, प्रधानमंत्री डिजिटल माध्यमों का उपयोग कर ही जनसभाओं और सरकारी कार्यक्रमों को संबोधित करते रहे हैं. मोदी ने कहा, ‘‘अब देश में नई सोच के साथ काम हो रहा है. सबके साथ से, सबके विश्वास से, सबका विकास हो रहा है. अब योजनाएं इस आधार पर नहीं बनतीं कि कहां कितने वोट हैं. अब प्रयास इस बात का है कि कोई भारतीय छूट ना जाए, पीछे न रह जाए. इस बदलाव का एक बहुत बड़ा उदाहरण लाहौल-स्पीति है.''
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