भुवनेश्वर (उड़ीसा):
ओडिशा के पुरी जिले में पीपली निवासी उस दलित लड़की की गुरुवार को कटक स्थित एक अस्पताल में मौत हो गई, जिसका बलात्कार करने के बाद गला घोटने की कोशिश की गई थी। यह लड़की छह माह से कोमा में थी।
एससीबी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के आपात चिकित्सा अधिकारी डॉ बीएन महाराणा ने बताया कि इस लड़की की हालत बहुत गंभीर थी। सेप्टीसेमिया (रक्त में संक्रमण) और श्वास तथा हृदय संबंधी जटिलताओं के बाद उसकी मौत हो गई। इस लड़की को 9 जनवरी, 2012 को यहां के कैपिटल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद 19 वर्षीय इस पीड़ित को 11 जनवरी को एसबीसी अस्पताल लाया गया था।
अपराध शाखा की पुलिस ने पीपली की अदालत में आठ व्यक्तियों के खिलाफ चार आरोपपत्र दाखिल किए हैं। इन आठ आरोपियों में से एक बर्खास्त पुलिस इंस्पेक्टर और तीन डॉक्टर हैं। इन चारों को हिरासत में नहीं लिया गया है, जबकि अन्य चार को गिरफ्तार किया जा चुका है।
पीड़ित एससीबी अस्पताल के आईसीयू में रखी गई थी, जहां डॉक्टरों का एक दल उसका इलाज कर रहा था। हाईकोर्ट के आदेश के बाद उसका इलाज मुफ्त किया जा रहा था। पिछले साल 28 नवंबर को उसका बलात्कार हुआ था और गला घोटकर जान से मारने की कोशिश की गई थी। पीड़ित के इलाज की निगरानी कर रहे हाईकोर्ट ने दो दिन पहले ही राज्य सरकार को उसे बेहतर इलाज मुहैया कराने तथा इलाज में कोई भी उपेक्षा महसूस होने पर उसके वकील प्रबीर दास को अदालत से संपर्क करने की छूट देने को कहा था। प्रबीर एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं।
जांच कर रहे पुलिस अधिकारी द्वारा दाखिल स्थिति पत्र को देखते हुए हाईकोर्ट ने यह जानना चाहा था कि बर्खास्त पुलिसकर्मी और डॉक्टरों को क्यों गिरफ्तार नहीं किया गया। जांच अधिकारी ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 41 के तहत हुए अपराध में एक साल से भी कम सजा का प्रावधान है, इसलिए उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया। पुलिस को पीड़ित के कोमा से बाहर आने का इंतजार था, ताकि वह जांच आगे बढ़ा सके।
बलात्कार की इस घटना के बाद पीपली के विधायक और तत्कालीन कृषि मंत्री प्रदीप महारथी को मामले में कथित भूमिका के आरोपों के चलते इस्तीफा देना पड़ा था। इस मामले पर रुख के लिए पीपली के पुलिस अधिकारियों की भी आलोचना हुई थी। पीड़ित को तत्काल इलाज मुहैया न कराने के आरोपों के चलते कैपिटल हॉस्पिटल और एससीबी अस्पताल के डॉक्टर भी आलोचना के घेरे में आए थे। पीड़ित को पूर्व में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी।
जनता के दबाव के आगे झुकते हुए राज्य सरकार ने मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट और ओडिशा राज्य मानवाधिकार आयोग ने जहां चिंता जताई, वहीं विपक्षी कांग्रेस और बीजेपी ने घटना की सीबीआई जांच की मांग की थी।
एससीबी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के आपात चिकित्सा अधिकारी डॉ बीएन महाराणा ने बताया कि इस लड़की की हालत बहुत गंभीर थी। सेप्टीसेमिया (रक्त में संक्रमण) और श्वास तथा हृदय संबंधी जटिलताओं के बाद उसकी मौत हो गई। इस लड़की को 9 जनवरी, 2012 को यहां के कैपिटल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद 19 वर्षीय इस पीड़ित को 11 जनवरी को एसबीसी अस्पताल लाया गया था।
अपराध शाखा की पुलिस ने पीपली की अदालत में आठ व्यक्तियों के खिलाफ चार आरोपपत्र दाखिल किए हैं। इन आठ आरोपियों में से एक बर्खास्त पुलिस इंस्पेक्टर और तीन डॉक्टर हैं। इन चारों को हिरासत में नहीं लिया गया है, जबकि अन्य चार को गिरफ्तार किया जा चुका है।
पीड़ित एससीबी अस्पताल के आईसीयू में रखी गई थी, जहां डॉक्टरों का एक दल उसका इलाज कर रहा था। हाईकोर्ट के आदेश के बाद उसका इलाज मुफ्त किया जा रहा था। पिछले साल 28 नवंबर को उसका बलात्कार हुआ था और गला घोटकर जान से मारने की कोशिश की गई थी। पीड़ित के इलाज की निगरानी कर रहे हाईकोर्ट ने दो दिन पहले ही राज्य सरकार को उसे बेहतर इलाज मुहैया कराने तथा इलाज में कोई भी उपेक्षा महसूस होने पर उसके वकील प्रबीर दास को अदालत से संपर्क करने की छूट देने को कहा था। प्रबीर एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं।
जांच कर रहे पुलिस अधिकारी द्वारा दाखिल स्थिति पत्र को देखते हुए हाईकोर्ट ने यह जानना चाहा था कि बर्खास्त पुलिसकर्मी और डॉक्टरों को क्यों गिरफ्तार नहीं किया गया। जांच अधिकारी ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 41 के तहत हुए अपराध में एक साल से भी कम सजा का प्रावधान है, इसलिए उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया। पुलिस को पीड़ित के कोमा से बाहर आने का इंतजार था, ताकि वह जांच आगे बढ़ा सके।
बलात्कार की इस घटना के बाद पीपली के विधायक और तत्कालीन कृषि मंत्री प्रदीप महारथी को मामले में कथित भूमिका के आरोपों के चलते इस्तीफा देना पड़ा था। इस मामले पर रुख के लिए पीपली के पुलिस अधिकारियों की भी आलोचना हुई थी। पीड़ित को तत्काल इलाज मुहैया न कराने के आरोपों के चलते कैपिटल हॉस्पिटल और एससीबी अस्पताल के डॉक्टर भी आलोचना के घेरे में आए थे। पीड़ित को पूर्व में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी।
जनता के दबाव के आगे झुकते हुए राज्य सरकार ने मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट और ओडिशा राज्य मानवाधिकार आयोग ने जहां चिंता जताई, वहीं विपक्षी कांग्रेस और बीजेपी ने घटना की सीबीआई जांच की मांग की थी।
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