पानी के बहाव से पुल का हिस्सा टूटने के बाद बिजली के खंबे से नदी पार करने को मजबूर हैं यहां लोग

उल्हास नदी पर बने खूबसूरत बांध ने इन दिनों कल्याण तालुका के करीब 10 गांवों की मुसीबतें बढ़ा दी हैं. नदी पार करने के लिए इन गांव वालों के पास यही एक पुल मौजूद है, लेकिन उसकी हालत बहुत खराब है.

मुंबई:

मुंबई से सिर्फ 55 किलोमीटर की दूरी पर कल्याण तालुका के 10 गांव के लोग जान हथेली पर रखकर रोजमर्रा के काम के लिए नदी पार कर रहे हैं. पानी के बहाव के वजह से उल्हास नदी पर बने पुल का एक हिस्सा टूट गया, जिसके बाद अब बिजली के खंबे का इस्तेमाल कर लोग नदी पार कर रहे हैं. उल्हास नदी पर बने खूबसूरत बांध ने इन दिनों कल्याण तालुका के करीब 10 गांवों की मुसीबतें बढ़ा दी हैं. नदी पार करने के लिए इन गांव वालों के पास यही एक पुल मौजूद है, लेकिन उसकी हालत बहुत खराब है. दिन भर पुल के कुछ हिस्सों पर पानी का बहाव दिखता है, बीच का हिस्सा तीन महीने पहले नदी में आए तेज बहाव से टूट गया, तो गांव वालों ने बिजली के खंबो का इस्तेमाल कर इस पुल को जोड़ा. 

आप्टी गांव की रहने वालीं रंजना शिशरे अपने खेतों में उगे स​ब्जियों को बेचने अम्बरनाथ शहर जाती हैं, जिसके लिए वो इसका इस्तेमाल करती हैं. वो बताती हैं कि दूसरा रास्ता उनके यहां से 18 किलोमीटर दूर है और ऑटो से जितने पैसे लगते हैं, उतनी कमाई सब्जी बेचने से भी नहीं होती है. रंजना ने कहा, "जाने आने का रास्ता नहीं है, कभी कभी इतने पानी में जाना पड़ता है. अगर दूसरे रास्ते से जाएंगे तो 200 रुपए का किराया लगता है, उतना तो कमाई भी नहीं है. यहां जाने से 30 रुपये लगते हैं. जाने आने पर केवल 50 रुपये लगते है. एक बार मैं इसमें गिर गई थी, तो वहां के होटल वाले ने मुझे बचाया था."

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नदी के दूसरी तरफ MIDC, कई उद्योग और रिसोर्ट मौजूद हैं, जहां इन लोगों को काम पर जाना पड़ता है. अगर आप बाइक से उस पार जाना चाहते हैं, तो एक बाइक पर कम से कम 3 से 4 लोगों का होना जरूरी है. वो इसलिए क्योंकि बीच पुल में बाइक को उठाना पड़ता है और उसे खंबे पर रख पार ले जाना पड़ता है. पुल का हिस्सा टूटने पर गांव के लोग पैसे इकट्ठा करते हैं और इसी तरह का जुगाड़ कर वो अपने काम पर जाते हैं. इस बार खराब हो चुके बिजली के खंभे का इस्तेमाल किया गया है.

पीड़ित श्याम शिशवे ने बताया, "हमलोग हर साल खुद पैसे निकालकर उसे बनाते हैं और हर साल वो टूट जाता है, लेकिन हम क्या करें यहां रोजगार भी नहीं है. जिसका जो वेतन होता है, वो उस हिसाब से पैसा देता है. क्योंकि घूमकर 25 किलोमीटर से जाना पड़ता है, यहां 8 किलोमीटर में सब होता है. सोचिए 2 गाड़ी है तो 4 आदमी उसे उठाकर दूसरी तरफ रखते हैं. खुद रिस्क लेते हैं, अब क्या करें सरकार और midc कुछ नहीं करता है तो हम ऐसा करते हैं.

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इस मामले में गांव वालों की ओर से प्रशासन के यहां कई बार शिकायत की गई, लेकिन हुआ कुछ नहीं. साथ ही इनका आरोप है कि बांध का हिस्सा बढ़ाया गया, लेकिन पुल का नहीं और इसलिए परेशानी बढ़ी है.

शिक्षक और पूर्व उप सरपंच सुरेश गायकर ने बताया, "2017 में ग्राम सभा ने चिट्ठी लिखा है. 2018 में ग्राम सभा ने भी ठहराव किया, MIDC को भी पत्र लिखा लेकिन कुछ हुआ नहीं."

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उल्हास नदी बचाओ कृति समिति के सदस्य अश्विन भोईर ने बताया, "हाइट बढाने के वजह से पानी का स्टोरेज ज्यादा हो रहा है और इसलिए बहाव भी ज्यादा है. बहाव ज्यादा होने की वजह से यह रास्ता फिसलन भरा हो जाता है और डूब जाता है, जो जहां रहता है, वो वहीं रह जाता है.